पत्नी बीमार होकर पहुंची अस्पताल, सरकार को अभी तक नहीं आया लापता जवान राजेंद्र का ख्याल
uttarakhand: परिजनों को यूनिट वाले कहते है हम जवान को खोज रहे है, लेकिन अभी तक कोई खबर नहीं…
देखते ही देखते आज 10 तारीख हो चुकी है, आज से ठीक एक महीने पहले जम्मू कश्मीर के गुलमर्ग इलाके से एक ऐसी मनहूस खबर आई थी जिसने समूचे उत्तराखण्ड(uttarakhand) को हिला कर रख दिया था। वह मनहूस खबर थी गुलमर्ग में तैनात राज्य(uttarakhand) के वीर सपूत हवलदार राजेंद्र सिंह नेगी के पाकिस्तान बार्डर पर लापता होने की। आज एक महीना बीत गया, वैसे तो इस एक महीने में बहुत कुछ हुआ, कुछ समय यह खबर राज्य(uttarakhand) में प्रकाशित दैनिक अखबारों के एक छोटे से टुकड़े का हिस्सा बनी, सोशल मीडिया पर जवान को वापस लाने की मुहिम भी चली, देवभूमि दर्शन के पिछले आलेख के बाद सोशल मीडिया के माध्यम से राज्य(uttarakhand) के पक्ष-विपक्ष के नेताओं के टूटे-फूटे बयान भी सुनाई दिए, और सबसे बड़ी बात देश की राजधानी दिल्ली में चुनाव भी सम्पन्न हुए परंतु फिर भी इस एक महीने में हम उत्तराखंडियों ने लापता हवलदार राजेंद्र की सकुशल वापसी का जो सपना देखा था वो पूरा होना तो दूर उनके बारे में कोई भी खबर सुनने को नहीं मिली। कहने को तो ये मूद्दा देश की संसद में भी गूंजा और सांसदो ने खूब वाहवाही बटोरी परंतु सत्ता के आसन पर विराजमान हुक्मरानों के कानों में जूं तक नही रेंगी, हर छोटी से छोटी बात पर सरकार को घेरने एवं संसद से बायकॉट करने वाला विपक्ष भी इस मुद्दे से बचता हुआ ही नजर आया। चाहे खुद को भारतीय सैनिकों का सबसे बड़ा हिमायती बताने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हो या फिर देश के रक्षामंत्री और विदेश मंत्री सभी न जाने कितनी ही बार दिल्ली के चुनावों में मंचासीन हुए और कई बार देश की संसद में भी मौजूद रहे लेकिन ना तो किसी के मुंह से इस मुद्दे पर कोई आवाज निकली और ना ही कोई बयान लिखित रूप में सामने आया वहीं दूसरी ओर राजेंद्र के परिजनों की हालत दिन-प्रतिदिन खस्ता होती जा रही है आज खबर आई है कि उनकी पत्नी को खराब स्वास्थ्य के कारण सेना के अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
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लापता हवलदार राजेंद्र की पत्नी का स्वास्थ्य खराब, अस्पताल में है भर्ती: गौरतलब है कि राज्य के चमोली जिले के पजियाणा गांव निवासी एवं भारतीय सेना की गढ़वाल राइफल्स में हवलदार के पद पर तैनात राजेंद्र बीते 9 जनवरी को गुलमर्ग में ड्यूटी के दौरान पाकिस्तान सीमा पर लापता हो गए थे और उनके पाकिस्तान में चले जाने की आंशका जताई जा रही थी। जिसके बाद से उनके परिजन बहुत परेशान हैं। अब तो घर की आर्थिक हालत भी खस्ता होने लगी है। सेना से बार-बार पुछताछ करने पर यही उत्तर सुनाई दे रहा है कि हम राजेंद्र की खोजबीन कर रहे हैं, खबर मिलते ही आपको सूचना दी जाएगी परंतु बार-बार यह उत्तर सुनकर परिवार परेशान होकर मानसिक तनाव से ग्रस्त हो रहा है। इसी तनाव के कारण आज राजेन्द्र की पत्नी राजेश्वरी देवी की तबीयत इतनी खराब हो गई है कि उन्हें देहरादून स्थित सेना के अस्पताल में एडमिट कराना पड़ा। बार-बार देश-प्रदेश की सरकारों के यह बयान सुनाई देते हैं कि सैनिक हमारी आन-बान-शान है, सरकार हमेशा सैनिकों और उनके परिजन के साथ खड़ी है। किसी जवान के शहीद होने पर भी यही घिसे-पिटे बयान और ट्विट किए जाते हैं परन्तु हम लोग इन्हीं बयानों पर विश्वास कर जाते हैं और ऐसा ही विश्वास राजेंद्र के परिजनों ने दिल्ली की गद्दी पर आसीन सरकार पर किया था परन्तु आज हालात यह है परिजन गुहार लगा-लगाकर थक चुके हैं परन्तु दिल्ली की सरकार कुछ बोलने को तैयार नहीं है और प्रदेश के नेताओं से उन्हें केवल आश्वासन ही सुनाई दे रहें हैं।
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सत्तापक्ष-विपक्ष और राष्ट्रीय मीडिया की इस खामोशी पर हमारा सवाल “आखिर क्यों सरकार को अभी तक नहीं आया लापता हवलदार राजेंद्र सिंह और उनके परिजनों का ख्याल??”:- हवलदार राजेंद्र के लापता होने के मामले में नेताओं की चुप्पी का कारण चाहे जो भी रहा हो परन्तु इतने संवेदनशील मुद्दे पर पक्ष-विपक्ष की ये खामोशी बहुत कुछ बयां कर जाती है। नेताओं की संवेदनहीनता को दिखाती इस खामोशी पर हमें आज यह कहने में बिल्कुल भी हैरानी नहीं होनी चाहिए कि ये संवेदनहीन नेता सिर्फ सत्ता चाहते हैं, इन्हें केवल वोट बटोरना आता है। राजनीति में साम-दाम-दंड-भेद की परिभाषा भी इस बात को सच साबित करती है कि नेताओं को केवल जनता के वोट से मतलब है चाहे वह किसी भी कीमत पर आएं। अब यहां यह कहना बिल्कुल भी ग़लत नहीं होगा कि ना तो नेताओं को जनता की परेशानियों से कोई सरोकार है और ना ही वतन की रक्षा करने के लिए देश की सीमाओं पर तैनात वीर जवान की चिंता। वैसे इस मुद्दे पर सरकार और विपक्ष को दोषी ठहराया जाना भी तब तक बेईमानी होगा जब तक लोकतंत्र के चौथे स्तंभ और जनता के सबसे बड़े हमदर्द राष्टीय मीडिया से कोई सवाल ना पूछा जाए। हैरानी की बात तो यह कि देश का राष्ट्रीय मीडिया भी इस संवेदनशील मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। इस मुद्दे पर राष्ट्रीय मीडिया की चुप्पी का कारण तो हमें समझ नहीं आता परन्तु इतना जरूर समझ आ रहा है कि आज मीडिया मात्र मदारी के इशारों पर नाचने वाला बंदर बनकर रह गया है। आज मीडिया को भी देश की जनता को ज़बाब देना चाहिए कि शाहीनबाग और जवान के लापता होने में कौन सा मुद्दा महत्वपूर्ण है? राजधानी के चुनावों पर पक्ष-विपक्ष के नेताओं की बड़ी-बड़ी बहस कराने वाली इस मीडिया से एक सवाल यह भी है कि क्या उसके पास इस संवेदनशील मुद्दे के लिए समय है? आखिर क्यों सरकार से कोई सवाल नही पूछा जा रहा? आखिर क्यों पक्ष-विपक्ष के नेताओं को इतने अहम मुद्दे पर कुछ करने के लिए मजबूर नहीं किया जा रहा? आखिर क्यों ऐसी परिस्थिति में जवान और उसके परिजनों को अकेला छोड़ा जा रहा है? आखिर क्यों…??
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