पूजा ने अपने हुनर से ऐंपण कला को बनाया स्वरोजगार का जरिया, देश-विदेशो से हो रही डिमांड
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देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इन दिनों आत्मनिर्भर भारत पर जोर दे रहे हैं। भारत को आत्मनिर्भर बनाने से उनका मतलब जहां हर भारतीय की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने से है वहीं देश के पारम्परिक रीति रिवाजों, काष्ठ कला एवं प्राचीनतम सभ्यता संस्कृति को सहेजने से भी है। बात जब भारतवर्ष को आत्मनिर्भर बनाने की हो तो उत्तराखण्ड कैसे पीछे रह सकता है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य के युवा भी अब आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं और इसका सबसे बड़ा उदाहरण कुमाऊं की विलुप्त प्राय ऐपण (Aipan) कला को पुनर्जीवित होते हुए देखकर लगाया जा सकता है। जी हां.. कुमाऊं के प्रतिभाशाली युवाओं ने विलुप्त होती ऐंपण कला को सहेजकर न केवल पुनर्जीवित किया है बल्कि युवा अब इसमें अपना कैरियर भी बनाने लगे हैं। राज्य की एक ऐसी ही प्रतिभावान बेटी है नैनीताल जिले की पूजा पडियार (Pooja padiyar)। पूजा राज्य की उन होनहार बेटियों में से एक है जिन्होंने अब तक देहरी दीवारों तक सीमित ऐपण कला की पहुंच को कहीं अधिक बढ़ा दिया है। पूजा के इस प्रयास को लोगों द्वारा काफी पसंद किया जा रहा है। इतना ही नहीं बीते दिनों मशहूर अभिनेता रोनित रॉय ने भी एक मुलाकात के दौरान पूजा के इस सराहनीय कदम की प्रशंसा की। इस दौरान पूजा ने रोनित को ऐपण उकेरी हुई चाय की केतली और फोटो फ्रेम भेंट की।
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बता दें कि नैनीताल जिले के दूरस्थतम ओखलकांडा ब्लाक के भीड़ापानी गांव की रहने वाली पूजा पडियार वर्तमान में न केवल कुमाऊं की पारंपरिक लोक कला ऐपण को संरक्षित करने का कार्य कर रही है, बल्कि देश-विदेश में इसका प्रचार-प्रसार भी कर रही है। बीते दिनों पूजा ने राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को भी ऐपण उकेरी हुई नेम प्लेट भेंट की। जिसकी मुख्यमंत्री ने काफी सराहना की। वर्तमान में कुमाऊं विश्वविद्यालय से बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स की पढ़ाई कर रही पूजा ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा केंद्रीय विद्यालय भीमताल से प्राप्त की। देवभूमि दर्शन से खास बातचीत में पूजा बताती है कि अपनी मां और दादी को शुभ अवसरों पर देहरी पर ऐपण बनाते देख उन्होंने ऐंपण बनाना सीखा। जिसके बाद 9 वीं कक्षा से उन्होंने त्योहारों के अवसरों पर घर की देहरी दीवारों पर ऐपण उकेरना शुरू किया। इससे न केवल उन्हें ऐपण की बारिकियां अच्छे से समझ में आई बल्कि धीरे-धीरे उनका ऐंपण के प्रति प्रेम भी बढ़ने लगा। धीरे-धीरे वह नेम प्लेट, फोटो फ्रेम, काष्ठ के उत्पादों पर भी ऐंपण के खूबसूरत डिजाइन देने लगी। अपने ऐपण कला के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने सोशल मीडिया को ही माध्यम बनाया। इसी का नतीजा है कि उनका यह हुनर अब स्वरोजगार का जरिया बन चुका है। पूजा कहती हैं कि वर्तमान में देश-विदेश में उनके ऐपण उकेरे हुए उत्पादों की मांग बढ़ रही है। बीते वर्ष ही उन्हें न्यूयॉर्क से ऑर्डर मिला था।
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सुनील चंद्र खर्कवाल पिछले 8 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे राजनीति और खेल जगत से जुड़ी रिपोर्टिंग के साथ-साथ उत्तराखंड की लोक संस्कृति व परंपराओं पर लेखन करते हैं। उनकी लेखनी में क्षेत्रीय सरोकारों की गूंज और समसामयिक मुद्दों की गहराई देखने को मिलती है, जो पाठकों को विषय से जोड़ती है।
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