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munsiyari Pithoragarh pregnant woman news

उत्तराखण्ड

पिथौरागढ़

उत्तराखण्ड: पहाड़ की बदहाली, महिला ने नदी किनारे दिया जुड़वां बच्चों को जन्म, एक की मौत

munsiyari Pithoragarh news: सड़क के अभाव में डोली पर बैठाकर महिला को अस्पताल ले जा रहे थे महिला के परिजन और ग्रामीण, तभी हुई असहनीय पीड़ा के कारण नदी किनारे करना पड़ा प्रसव….

munsiyari Pithoragarh news
अपने पहाड़ जैसे बुलंद इरादों और हिम्मत के लिए पहचाने जाने वाले राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों के लोग 21वीं सदी में भी सुविधाओं के अभाव से ग्रस्त होकर अपनी बेबसी और मजबूरी का रोना रोने का मजबूर हैं। इसे पहाड़ के लोगों का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि पृथक उत्तराखण्ड राज्य बनने के 23 वर्षों बाद भी पहाड़ में अभी तक बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। सबसे बड़ी समस्या तो स्वास्थ्य सेवाओं की है। आलम यह है कि समय पर उपचार ना मिल पाने के कारण प्रतिवर्ष पहाड़ के हजारों लोग काल का ग्रास बन रहे हैं। इस समस्या का सबसे अधिक खामियाजा गर्भवती महिलाओं, नवजात शिशुओं एवं बुजुर्गों को भुगतना पड़ रहा है। आज फिर एक ऐसी ही दुखद खबर राज्य के सीमांत जिले पिथौरागढ़ से सामने आ रही है जहां जन्म लेने के कुछ ही देर बाद एक नवजात शिशु ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। यह पूरी घटना मुनस्यारी विकासखंड के रुईसपाटा गांव की है, जहां की एक महिला का प्रसव नदी किनारे कराना पड़ा। बताया गया है कि महिला ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया। जिनमें से एक शिशु की मौत हो गई।
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अभी तक मिल रही जानकारी के मुताबिक मूल रूप से राज्य के सीमांत जिले पिथौरागढ़ के मुनस्यारी विकासखंड के रुईसपाटा गांव के सिरमोला तोक निवासी कवींद्र सिंह की पत्नी हेमा देवी इन दिनों गर्भवती थी। बताया गया है कि बीते रोज उसे एकाएक प्रसव पीड़ा होने लगी। गांव तक सड़क ना होने के कारण हेमा देवी को अस्पताल पहुंचाने के लिए डोली का इंतजाम किया। अभी हेमा के परिजन अन्य ग्रामीणों के साथ उसे पालकी पर बिठाकर अस्पताल की ओर ले जा ही रहे थे कि गांव से लगभग तीन किमी दूर फूली नदी के पास पैदल रास्ते में हेमा देवी को तेज प्रसव पीड़ा होने लगी। हेमा की हालत देख वहां मौजूद आशा कार्यकर्ता पुष्पा देवी सहित अन्य महिलाओं ने नदी किनारे ही उसका प्रसव कराने का निर्णय लिया। महिला तो बच ग‌ई लेकिन उसके नवजात जुड़वां बच्चों में से एक ने हमेशा के लिए अपनी आंखें मूंद ली। इस संबंध में ग्रामीणों का कहना था कि गांव से सड़क 6 किलोमीटर और अस्पताल 25 किमी दूर है। वे वर्ष 2009 से सड़क की मांग कर रहे हैं लेकिन शासन प्रशासन उनकी सुध नहीं ले रहा है। यदि हेमा तुरंत अस्पताल पहुंच जाती तो शायद उसके बच्चे की जान बच सकती थी।

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