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उत्तराखण्ड

उत्तराखंड: कोरोना की आंशका से गर्भवती महिला को इधर-उधर रेफर करते रहे डॉक्टर, देर शाम हुई मौत

कोरोना संक्रमित होने की आंशका से डॉक्टरों ने नहीं किया गर्भवती महिला (Pregnant Women) का उपचार, जांच के लिए करते रहे एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल (Almora Hospital ) रेफर, इलाज के अभाव में देर शाम हुई मौत..

कोरोना के कारण आज एक बार फिर न सिर्फ मानवता को शर्मशार होना पड़ा है बल्कि धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर भी कलंकित हुए हैं। आम लोगों के हृदय को झकझोर देने वाली ऐसी दुखद खबर आज राज्य के अल्मोड़ा जिले से सामने आ रही है जहां डॉक्टर इसलिए एक गर्भवती महिला (Pregnant Women) को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल रेफर करते रहे क्योकि उन्हें भय था कि कहीं महिला कोरोना संक्रमित ना निकले। कोरोना की आंशका के चलते डाक्टरों ने तब तक उस गर्भवती का इलाज करने से इंकार कर दिया जब तक उसकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव ना आ जाए। डाक्टरों के इस अड़ियल रवैए से परिजन गर्भवती महिला को इस आशा से एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल ले जाते रहे कि कहीं तो उसे उपचार के लिए भर्ती किया जाएगा परंतु दुःख की बात है कि कहीं भी महिला को कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आने से पहले भर्ती नहीं किया गया। अंत में डाक्टरों के इस उदासीन और भयभीत रवैए से थक-हारकर महिला ने इधर-उधर भटकते हुए ही देर शाम जिला अस्पताल (Almora Hospital) पहुंचने से पहले दम तोड दिया। बताया गया है कि महिला को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी, उसे कुछ समय पहले टाइफाइड भी हुआ था।
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दिन भर महिला को लेकर तीन अस्पतालों में भटकते रहे परिजन, देर शाम निगेटिव आई कोरोना रिपोर्ट:-

प्राप्त जानकारी के अनुसार मूल रूप से राज्य के अल्मोड़ा जिले के कोसी कटारमल निवासी मुन्ना सिंह की पत्नी आशा देवी गर्भवती थी। इन दिनों आशा का पांचवां महीना चल रहा था। बृहस्पतिवार को अचानक आशा की तबीयत खराब हो गई जिस पर परिजन उसे उपचार के लिए नजदीकी निजी अस्पताल में ले गए जहां चिकित्सकों ने उसके कोरोना संक्रमित होने की आंशका जताते हुए परिजनों को यह कहकर कोरोना जांच के लिए भेज दिया कि वह तब तक आशा का इलाज नहीं करेंगे जब तक उसकी रिपोर्ट निगेटिव ना आ जाए। जिस पर परिजन उसे जिला अस्पताल अल्मोड़ा ले गए। जहां से भी उसे कोरोना जांच के लिए बेस अस्पताल रेफर कर दिया गया। बेस अस्पताल में आशा की कोरोना जांच हुई जिसकी रिपोर्ट बृहस्पतिवार देर शाम आई। रिपोर्ट तो निगेटिव थी परंतु दिनभर उपचार ना मिलने के कारण आशा की हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी। रिपोर्ट निगेटिव आने पर परिजन उसे पुनः जिला अस्पताल लेकर गए परंतु अस्पताल पहुंचने से पहले ही आशा ने दम तोड दिया। आशा की मौत से जहां परिवार में कोहराम मचा हुआ है वहीं व्यवस्था के प्रति आक्रोश भी है। उनका कहना है कि पूरे दिन भर वह तीन अस्पतालों के चक्कर काटते रहे यदि समय से उपचार मिल जाता तो शायद आशा की जान बच सकती थी।

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Sunil

सुनील चंद्र खर्कवाल पिछले 8 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे राजनीति और खेल जगत से जुड़ी रिपोर्टिंग के साथ-साथ उत्तराखंड की लोक संस्कृति व परंपराओं पर लेखन करते हैं। उनकी लेखनी में क्षेत्रीय सरोकारों की गूंज और समसामयिक मुद्दों की गहराई देखने को मिलती है, जो पाठकों को विषय से जोड़ती है।

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