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Rakesh rawat pauri garhwal Devbhoomi Darshan Dhoop

उत्तराखण्ड

पौड़ी गढ़वाल

उत्तराखंड: नौकरी छोड़ राकेश रावत ने पहाड़ में किया ऐसा स्वरोजगार सालाना कमाई 12 लाख से ऊपर

Devbhoomi Darshan Dhoop: पौड़ी गढ़वाल के राकेश रावत ने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ गौ-पालन को बनाया स्वरोजगार का जरिया, दूध घी की बिक्री के साथ ही गोबर से धूप बनाकर कर रहे सालाना लाखों रुपए की कमाई….

Devbhoomi Darshan Dhoop
विषम परिस्थितियों से घिरे उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों की अधिकांश आबादी पृथक राज्य गठन से पूर्व तक पशुपालन एवं खेती-बाड़ी पर ही निर्भर थी। आज भले ही पहाड़ के अधिकांश युवा रोजगार की तलाश में बड़े शहरों की ओर रूख करने को अपनी प्राथमिकता समझते हों परंतु उस दौर में हमारे बड़े बुजुर्गो ने न केवल पशुपालन एवं खेती-बाड़ी के सहारे अपने परिवार का भरण पोषण किया बल्कि पहाड़ी जीवनशैली से अपने स्वास्थ्य को भी कभी गिरने नहीं दिया। बात पशुपालन और रोजगार की हों रही है तो आज हम आपको राज्य के एक ऐसे होनहार युवा से रूबरू कराने जा रहे हैं जो वर्तमान में भी पशुपालन कर न केवल स्वरोजगार की अलख जगा रहे हैं बल्कि उनकी प्रतिवर्ष की कमाई भी शहरों में छोटी-मोटी नौकरी करने वाले लोगों से काफी अधिक 12 से 14 लाख रुपए तक है। जी हां… हम बात कर रहे हैं दिल्ली से इंजीनियर की नौकरी छोड़कर घर लौटे राकेश रावत की, जो मूल रूप से पौड़ी गढ़वाल जिले के भाकड़, नरसिया गांव के रहने वाले हैं।
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Rakesh Rawat Pauri Garhwal
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दिल्ली की अच्छी खासी नौकरी छोड़ने के उपरांत राकेश ने अपने दोस्त शीशपाल रावत के साथ मिलकर गौ पालन शुरू किया। वह न केवल गाय से मिलने वाले दूध और घी को बाजार में बेचकर अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं बल्कि गाय के गोबर, जिसे अधिकांश जगह ख़ाली फेक दिया जाता है, का भी सदुपयोग कर इससे धूप बना रहे हैं। इसके साथ ही वह गोमूत्र को भी बाजार में बेच रहे हैं। आपको बता दें कि वर्ष 2017 से अपने गांव वापस लौटकर स्वरोजगार की अलख जगाने वाले राकेश अपने धूप को देवभूमि दर्शन के नाम से प्रदेश के अन्य जिलों के साथ ही देश के बड़े बड़े शहरों में भी बेच रहे हैं। देवभूमि दर्शन नाम से उनकी गोबर से बनी यह धूप केमिकल रहित है। देश प्रदेश में लोगों के घरों और मंदिर को महकाने वाली इस धूप को गाय के गोबर के अतिरिक्त कुंजा और सुमैया की जड़ के साथ ही जटामासी जैसे औषधियों की जड़ों का भी प्रयोग किया गया है। उनकी यह धूप दो से तीन अलग-अलग प्रकार की सुगंध से युक्त है। उनकी सफलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज उनकी यह धूप उत्तराखण्ड के चारों धामों के अतिरिक्त वृंदावन, बालाजी, खाटूश्याम जैसे प्रसिद्ध मंदिरों में भगवान की पूजा के लिए प्रयोग की जा रही है। इसके अतिरिक्त दिल्ली एनसीआर के साथ ही देश के अन्य शहरों में भी उनकी इस धूप की काफी डिमांड है।

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