पिथौरागढ़- बेटी को ‘परी’ नाम दे गई रिद्धिमा, छोड़ गई दुधमुही बच्ची और छह साल के बच्चे को
uttarakhand: मासूम बच्ची को जन्म देकर चार घंटे बाद ही काल के मुंह में समा गई रिद्धिमा..
राज्य(uttarakhand) के पर्वतीय क्षेत्रों में अस्पताल मात्र रेफरल सेंटर बन कर रह गए हैं। यहां तक कि यह हालात पर्वतीय जिला मुख्यालय में स्थित सरकारी अस्पतालों के भी है। कहीं डॉक्टर और स्टाफ नहीं है तो कहीं चिकित्सकीय उपकरणों, बेड आदि की कमी। राज्य(uttarakhand) के सीमांत जिले पिथौरागढ़ के अस्पताल भी इससे अछूते नहीं हैं। अब बात अगर पिथौरागढ़ जिले के महिला अस्पताल की करें तो यहां तो हालात और भी खराब है। यह अस्पताल आजकल प्रसव के बाद गर्भवती महिलाओं की मौतों के कारण चर्चा में है। कल शनिवार को भी यहां एक गर्भवती महिला रिद्धिमा की प्रसव के चार घंटे बाद मौत हो गई थी। अभी कुछ दिन पहले ही बीते 3 फरवरी को एक और गर्भवती महिला नीलम (नेहा) बोरा की आपरेशन से प्रसव के 24 घंटे बाद मौत हो गई थी। बता दें कि पिथौरागढ़ के इस महिला अस्पताल में बीते दो महीने में चार गर्भवती महिलाओं की मौत हो चुकी है। सच कहें तो अब यह अस्पताल गर्भवती महिलाओं के लिए मौत का कुआं ही बन गया है। अब आपको इस अस्पताल के बदतर हालातों के बारे में बताते हैं। अस्पताल में 62 बेड स्वीकृत है परन्तु जगह की कमी के कारण मात्र 42 बेड ही धरातल पर संचालित हो पा रहे हैं। यहां तक कि नवजातों के सेहत की देखरेख के भी इस अस्पताल में पूरे इंतजाम नहीं हैं। ठंड से बचाव के लिए मात्र तीन बेड लगे हैं। जिनमें कई बार चार-चार बच्चों को भी भर्ती करना पड़ता है। बच्चों की देखरेख के लिए पिछले आठ वर्षो से मात्र एक डॉक्टर हैं जिन्हें सीएमएस का दायित्व भी संभालना पड़ रहा है। इसके विपरित मानकों के हिसाब से अस्पताल में तीन बाल रोग विशेषज्ञ जरूरी हैं।
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सांस थमने से पहले बेटी को ‘परी’ नाम दे गई रिद्धिमा:- गौरतलब है कि राज्य(uttarakhand) के पिथौरागढ़ जिले के धारचूला तहसील के कालिका के गोठी गांव की रहने वाली रिद्धिमा पत्नी गोविंद गुंज्याल हाल निवासी बस्ते की शनिवार को प्रसव के बाद अस्पताल परिसर में ही मौत हो गई थी। जिस पर परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन पर लापरवाही के आरोप लगाते हुए अस्पताल परिसर में खूब हंगामा भी किया था। दरअसल हुआ ये था रिद्धिमा के परिजन उसे बीते शुक्रवार को रूटीन चेकअप के लिए महिला चिकित्सालय लाए थे। जहां शनिवार सुबह 7.55 बजे सामान्य प्रसव से एक फूल सी प्यारी बच्ची को जन्म दिया। प्रसव के बाद जच्चा-बच्चा को चिकित्सकों द्वारा पूरी तरह से स्वस्थ बताया गया लेकिन दोपहर पौने एक बजे रिद्धिमा को सांस लेने में तकलीफ होने लगी और डॉक्टर को दिखाने से पहले ही उसे अस्पताल परिसर में चक्कर आ गया और वह गश खाकर गिर पड़ी। आनन-फानन में उसे स्टाफ द्वारा ऑपरेशन थियेटर ले जाया गया। जहां जांच में रिद्धिमा के शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर महज पांच ग्राम मिला जबकि गर्भवती महिलाओं में 13 से 14 मिलीग्राम हीमोग्लोबिन होना चाहिए। डाॅक्टरों ने महिला को खून चढ़ाया लेकिन लगातार उखड़ी हुई सांसों के कारण उसकी हालत बिगड़ती गई और उसने ओटी में ही दम तोड दिया लेकिन सांस थमने से पहले रिद्धिमा चार घंटे के दौरान ही अपने परिजनों से कह गई कि बेटी का नाम हम ‘परी’ रखेंगे।
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व्यवस्थाओं की कमी ने छिना एक छः वर्ष के मासूम बच्चे से मां का साया, आईसीयू की सुविधा होती तो बच सकती थी जान:- बता दें कि मृतक रिद्धिमा के पति गोविंद सिंह गुंज्याल पिथौरागढ़ पुलिस लाइन में तैनात हैं। अस्पताल में व्यवस्थाओं की कमी से मृतक रिद्धिमा अपने पीछे एक दिन की फूल की कली जैसी बच्ची के साथ ही एक छः वर्ष के मासूम बेटे अंशुमन को भी छोड़कर चली गई। अस्पतालों में व्यवस्थाओं की कमी ने आज फिर दो बच्चों के सर से मां का साया उठा लिया। मां का शव घर पहुंचने पर भी वह घर में एकत्रित भीड़ से अपनी मां के बारे में पूछता रहा। अंत में मां को जमीन में लेटा देखकर उसके आंखों से अश्रुओं की धारा बह निकली। परिजनों ने उसे बहलाकर बमुश्किल शांत कराया। जहां परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप लगाया है वहीं महिला अस्पताल की सर्जन डॉ. भागीरथी टोलिया का कहना है कि हमने अस्पताल में उपलब्ध सुविधा के अनुरूप सभी प्रयास किए लेकिन आइसीयू की कमी खली। अब सच क्या है ये तो जांच के बाद ही ही सामने आएगा बहरहाल आपको यह जानकर हैरानी होगी कि पांच लाख की आबादी वाले और चम्पावत और नेपाल के मरीजों का अतिरिक्त जिम्मा पिथौरागढ़ जिले में अब तक आइसीयू की सुविधा नहीं है। बशर्ते जिला चिकित्सालय में करोड़ों की लागत से आइसीयू तैयार किया गया है, लेकिन स्टाफ की तैनाती नहीं होने से इसका संचालन अभी तक शुरू नहीं हुआ है। शनिवार को रिद्धिमा को आइसीयू की सख्त जरूरत थी, अगर आईसीयू उपलब्ध होता तो शायद उसकी जान बच जाती।
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