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उत्तराखण्ड : पहाड़ की बेटी बनी वन अधिकारी… ट्रैनिंग के दौरान सर्वश्रेष्ठ ट्रैनर हुई घोषित

alt="shiwangi dimri become forest officer"

रात नहीं ख्वाब बदलता है,
मंजिल नहीं कारवाँ बदलता है;
जज्बा रखो जीतने का क्यूंकि,
किस्मत बदले न बदले ,
पर वक्त जरुर बदलता है

इन्हीं चंद पंक्तियों पर विश्वास जताते हुए राज्य की एक ओर होनहार बेटी ने अपनी संघर्षरत जिन्दगी के बीच सफल होकर उत्तराखंड का नाम रोशन किया है। जी हां… हम बात कर रहे हैं राज्य के चमोली जिले की रहने वाली शिवांगी डिमरी की, जिनको हिमाचल प्रदेश में 18 महीनों तक चली प्रशिक्षु वन अधिकारियों की ट्रैनिंग के दौरान सर्वश्रेष्ठ ट्रैनर चुना गया है। सर्वश्रेष्ठ ट्रैनर बनने वाली शिवांगी को हिमाचल प्रदेश के वन मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने एक गोल्ड मैडल सहित दो सिल्वर मैडल देकर सम्मानित किया। बताते चलें कि शिवांगी ने यह सफलता ऐसे समय में सफलता प्राप्त की है जब पहले उसके सर से पिता का साया उठ गया और फिर रही-सही कसर मां के बीमार होने से पूरी हो गया। ऐसी मुश्किल घड़ी किसी जांबाज इंसान को भी तोड़ कर रख सकती है। परंतु शिवांगी ने ऐसे मुश्किल वक्त में भी वन अधिकारी बनकर माता-पिता के उस सपने को पूरा किया जो उन्होंने बेटी के भविष्य के लिए बचपन में देखा था। शिवांगी की इस सफलता से परे क्षेत्र में हर्षोल्लास का माहौल है।




बता दें कि लोक सेवा आयोग द्वारा प्रशिक्षु वन अधिकारियों के लिए वर्ष 2018-19 में हिमाचल प्रदेश के रेंजर ट्रैनिंग सेंटर सुंदरनगर में पिछले 18 महीनों से प्रशिक्षण कैंप का आयोजन किया गया था। जिसमें उत्तराखंड के 24 प्रशिक्षुओं सहित कुल 30 प्रशिक्षुओं ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। बुधवार 4 सितंबर को आयोजित हुए प्रशिक्षण के दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि गोविंद सिंह ठाकुर ने सभी प्रशिक्षुओं को प्रशस्ति पत्र प्रदान करते हुए बधाई दी। इस दौरान उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ की रहने वाली को सर्वश्रेष्ठ ट्रैनर चुना गया जिसके लिए वन मंत्री ने उन्हें एक गोल्डन मैडल एवं दो सिल्वर मैडल देकर सम्मानित किया। बताते चलें कि जोशीमठ के रविग्राम की रहने वाली शिवांगी ने सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षु का खिताब उस समय जीता जिस समय उन पर मुसीबतों का पहाड़ टुटा हुआ था। एक सामान्य परिवार की बेटी शिवांगी के माता-पिता अध्यापन का कार्य करते थे। सब कुछ सही चल रहा था कि इसी वर्ष अप्रैल माह में हुई घटनाओं ने जीवन का पूरा परिदृश्य ही बदल गया। पहले पिता का साया परिवार से उठ गया और फिर मां ने भी बीमारी के कारण बिस्तर पकड़ लिया। इन सबके बावजूद भी शिवांगी ने अपने हौसले को टूटने नहीं दिया और एक सफल वन‌ अधिकारी बनकर पिता के सपनों को पूरा किया।




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