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Uttarakhand: Railgadi school in yamkeshwar block pauri garhwal rishikesh

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उत्तराखंड : यह रेलगाड़ी का डब्बा नहीं, पहाड़ में बच्चों के लिए तैयार हुआ रेलगाड़ी वाला स्कूल है

Uttarakhand: कोरोना काल के दौरान ही बना बच्चों के लिए यमकेश्वर ब्लॉक(Yamkeshwar)  में रेलगाड़ी वाला स्कूल(Railgadi School) , बच्चो में देखने को मिला बेहद उत्साह

उत्तराखंड(Uttarakhand) के विभिन्न राजकीय विद्यालयों में समय समय पर कुछ न कुछ रोचक कार्य किए जाते है, जिस से बच्चों में शिक्षा के प्रति रुचि जागृत हो और विद्यालय जाने का उत्साह भी बना रहे। इसके लिए अधिकतर विद्यालय परिसर में खूबसूरत चित्रकारी की जाती है, लेकिन आज हम पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर ब्लॉक(Yamkeshwar) के एक ऐसे विद्यालय की बात करने जा रहे है जिसने बच्चों को आकर्षित करने और विधालय को सुन्दर सुसज्जित बनाने के लिए उसे रेलगाड़ी का डिजाइन(Railgadi School) दिया है। जी हां पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लॉक स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय लक्ष्मणझूला के भवन को अब रेलगाड़ी नुमा बनाकर (यमकेश्वर एक्सप्रेस) का स्वरूप दिया गया है। विद्यालय के इस नए रूप से बच्चों में काफी उत्साह देखने को मिला। चौथी कक्षा की छात्रा तमन्ना कहती है कि उसने आज तक ट्रेन नहीं देखी, लेकिन विद्यालय को देखकर लग रहा है कि उसका सपना पूरा हो गया।
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राजकीय प्राथमिक विद्यालय लक्ष्मणझूला का भवन वर्ष 1962 में स्थापित किया गया था और उस दौर में क्षेत्र में काफी अच्छा विद्यालय हुआ करता था लेकिन लंबे समय से देख रेख न होने के कारण इसकी चहारदीवारी क्षतिग्रस्त होने से विद्यालय की स्थति भी जर्जर हो गयी। यह देख विद्यालय की प्रधानाध्यापक लक्ष्मी बड़थ्वाल ने विद्यालय से जुड़ी ‘प्रयास एक’ सामाजिक संस्था के अध्यक्ष अश्वनी गुप्ता से इस संबंध में बात की। अध्यक्ष अश्वनी गुप्ता ने विद्यालय की इस समस्या से क्षेत्रीय विधायक रितु खंडूड़ी को अवगत कराया। जिसके लिए उन्होंने विधायक निधि से चार लाख रुपये की स्वीकृति देते हुए विद्यालय भवन को एक नए रूप में विकसित करने के निर्देश दिए। जिसके बाद प्रधानाध्यापक लक्ष्मी बड़थ्वाल और संस्था के अध्यक्ष अश्वनी ने विद्यालय भवन के नए स्वरुप के लिए एक विशेष और काफी प्रभावी थीम पर काम करने का निर्णय लिया। आखिरकार दक्षिण भारत के एक विद्यालय के डिज़ाइन को यहां मूर्त रूप देने पर विचार हुआ और सभी की मेहनत से लगभग एक माह के कड़े परिश्रम के बाद विद्यालय भवन को रेलगाड़ी का रूप दिया गया।
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