लोकगायक रजनीकांत सेमवाल की बेमिसाल गायिकी के अंदाज में रिलीज होते ही हिट हुआ पहाड़ी गीत
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अपने गीतों (Uttarakhand Songs) के माध्यम से विलुप्त होती पहाड़ी संस्कृति को बचाने का भरसक प्रयास करने वाले लोकगायक रजनीकांत सेमवाल (Rajnikant Semwal) आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। अपने गीतों में पहाड़ी संस्कृति, सभ्यता और प्राचीन परंपराओं को हमेशा सर्वोपरि स्थान देने वाले रजनीकांत को यूं ही नहीं उत्तराखण्ड संगीत जगत में विशेष स्थान प्राप्त है बल्कि उनके गीत आज भी डीजे गीतों से कहीं दूर वास्तविक पहाड़ी संस्कृति को सहेजे हुए हैं। वास्तव में उनके गीतों की वीडियो देखकर तो किसी को भी अपने गांव अपने पहाड़ की याद आ जाएं। आज एक बार फिर लोकगायक रंजनीकात सेमवाल अपना नया गीत डांड्यू क्या फूल फुलाला लेकर आए हैं। इस गीत में जहां बुग्यालों में खिलने वाले सुन्दर पुष्पों की महिमा का गुणगान किया गया है वहीं उन्हें देवताओं की शोभा, मेलों के उत्साह तथा तीज-त्योहारों पर मायके जाने वाली बहू-बेटियों की खुशी बताया गया है। सबसे खास बात तो यह है कि पहाड़ी संस्कृति की अनमोल विरासत झोडा़-चाचरी के रूप में गाये इस गीत को प्रसिद्ध लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी भी अपनी मधुर आवाज दे चुके हैं। वैसे इस सुंदर गीत की आवाज उत्तरकाशी जिले के भागीरथी नदी घाटी क्षेत्र में प्राचीन समय से मेलों, कौशिक आदि में सामूहिक रूप से गूंजती रही है।
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पहाड़ी संगीत की प्राचीनतम विधाओं में गाए गए लोकगायक रंजनीकात सेमवाल के इस नए गीत की छटा देखते ही बनती है। देवभूमि दर्शन से खास बातचीत में लोकगायक रंजनीकात सेमवाल बताते हैं कि गीत में शेल्कू भाद्रपद मेला, आषाढ़ी थौळ, खरसाड़ी के थडिया चौंफला और तीज त्यौहारों में मायके आती बहू बेटियों से जोड़कर ऊंचे-ऊंचे बुग्यालों और घाटियों में खिलने वाले ब्रह्मी कमल पुष्पों के साथ ही नीले-पीले जयांण पुष्पों का जो गुणगान किया गया है वो वाकई अद्भुत है। इससे भी अधिक पुष्पों को देवता की शोभा बताकर सोमेश्वर देवता की जो स्तुति की गई है कि वो यह बताने के लिए काफी है कि संसाधनों की कमी के बावजूद हमारे बड़े-बुर्जुगों की कल्पना शक्ति कितनी अधिक रहीं होगी। इस गीत में प्रकृति और फूलों को लोक देवता से जोड़कर जितना पूजनीय बना दिया है उतना शायद ही किसी और लोक-संस्कृति के गीतों में किया गया हो। बात अगर रजनीकांत के इस गीत की वीडियो की करें तो क्रियेटिव बुड़बक की टीम ने रजनीकांत के निर्देशन में कड़ी मेहनत कर गीत की सुंदरता में चार चांद लगा दिए हैं। वीडियो में उत्तरकाशी के इस क्षेत्र के मेलों, कौथिग और थौळ को भी दर्शाया गया है साथ ही मौसम के साथ रंग बदलते वीडियो के दृश्य जहां आंखों को सुखद अनुभव का अहसास कराते हैं वहीं गोविंद नेगी की बेहतरीन एडिटिंग विडियो की सुंदरता को और बढ़ा देती है। रंजीत सिंह के बेहतरीन संगीत से भरे इस गीत को रजनीकांत सेमवाल की मधुर आवाज काफी लोकप्रिय बनाती है। गीत की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रिलीज होने के दो दिनों के भीतर ही 61 हजार से अधिक लोग वीडियो देख चुके हैं।
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