Tota Ghati History: उत्तराखंड के तोता घाटी का इतिहास है अपने आप में बेहद खास दुर्गम चट्टानों के बीच बना डाली जब सड़क
आप सब कभी न कभी पहाड़ों के रास्ते होते हुए देवप्रयाग से देहरादून, ऋषिकेश तो आये ही होंगे और आप सब ने देवप्रयाग और ऋषिकेश के बीच में बहुत ही दुर्गम चट्टानों में स्थित तोता घाटी को जरूर देखा होगा। पर क्या अपने कभी सोचा है की आखिर दुर्गम चट्टानों से सजी हुई इस घाटी का नाम तोता घाटी क्यों पड़ा? आखिर उस जमाने मे इतने दुर्गम पहाड़ों और चटानो को काटकर सड़क निर्माण कैसे किया गया होगा? अगर आपके मन में भी यह सवाल उठ रहे है तो चलिए आज हम आपको बताएंगे उत्तराखंड के टिहरी जिले मे स्तिथ तोता घाटी के बारे मे। तोता घाटी बद्रीनाथ मार्ग पर ऋषिकेश से आगे व्यासी और देवप्रयाग के बीच सकनीधार से 10 किमी पहले पड़ने वाली घाटी है। इसके नीचे गंगा नदी बहती है, गंगा नदी के किनारे पर खड़ा इस पहाड़ और इस घाटी का रास्ता और रोड जितना दुर्गम है उतना ही रोमांचक इस घाटी का इतिहास और कहानी है।(Tota Ghati History)
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तोता घाटी व्यासी–देवप्रयाग मार्ग पर सकनीधार से 10 किमी पहले पड़ने वाली घाटी है जिसका नाम ठेकेदार तोता सिंह रांगड़ के नाम पर तोता घाटी पड़ा। यह घाटी अत्यधिक मजबूत चुने के डोलोमाइट चटानो से मिलकर बना है जिसको भू वैज्ञनिकों ने सबसे मजबूत चट्टानों का दर्जा दिया है। इन चट्टानों को तोड़ पाना लगभग असंभव है। यह वही घाटी है जिस पर साल 2020 मे सरकार द्वारा चार धाम यात्रा सुगम बनाने के लिए ऑल वेदर रोड का काम हुआ था। लगभग 6 महीने तक इस रोड पर काम चला था और रोड़ बनाने के लिए तरह–तरह के आधुनिक मशीनों को लगाने के बाद भी NH और सरकार के पसीने छूट गए थे। इस घाटी पर ठेकेदार तोता सिंह रांगड़ ने 90 साल पहले सड़क बनाई थी और घाटी को तोड़कर सड़क बनाने मे उनकी जमा पूंजी के साथ–साथ उन्हें अपनी संपत्ति तक गवानी पड़ी। तो चलिए अब हम आपको तोता सिंह और इस रोड़ का इतिहास क्या रहा है इसके बारे मे बताते हैं।
तोता सिंह रांगड़ एक ठेकेदार थे जो टिहरी जिले में स्थित प्रतापनगर के निवासी थे। ये अपने ईमानदारी के लिए काफी प्रसिद्ध होने के साथ–साथ बहूत मेहनती और साहसी ठेकेदार थे। सन 1930 में टिहरी के राजा नरेन्द्र शाह ने कीर्तिनगर में स्थित अपने घर जाने के लिए ऋषिकेश से कीर्तिनगर तक सड़क निर्माण की इच्छा जताई। लेकिन इस स्थान पर सड़क निर्माण के लिए कोई भी ठेकेदार तैयार नही था। कारण यह की इस रोड पर व्यासी–देवप्रयाग के बीच में पड़ने वाली तोता घाटी जो अत्यधिक मजबूत डोलोमाइट चुना पत्थर से भी मजबूत चट्टानों से मिलकर बना था। जिसे तोड़ और काट पाना बड़ा मुश्किल और नामुनकिन था। अचानक राजा को किसी ने ठेकेदार तोता सिंह रांगड़ के बारे मे बताया। राजा ने उन्हें अपने पास बुलाकर अपनी रोड बनाने की इच्छा जताई और यह आदेश दिया कि वो बस ऋषिकेश–कीर्तिनगर रोड पर व्यासी–देवप्रयाग के बीच में पड़ने वाली घाटी पर 10 किमी तक सड़क निर्माण करना है। तोता सिंह रांगड़ ने राजा को हां कह दिया और सन 1931 में अपने साथ 50 मजदूरों और गांव वालों को लेकर रोड निर्माण का कार्य करने लगे।
मगर इस घाटी में इतने खतरनाक पत्थर और चट्टाने थी कि कई मजदूर बीच में ही काम को छोड़कर चले गए और कई मजदूरों की जान तक चले गई। सबसे बड़ी मुश्किल तब आई जब इस रोड पर लगने वाला खर्चा समाप्त हो गया क्योंकि राजा ने तोता सिंह को रोड निर्माण के लिए बस 40 चांदी के सिकके दिए थे। सभी मजदूर काम छोड़कर जाने लगे और जो मजदूर बचे हुए थे उनको बस दो समय का खाना दिया जाने लगा। तब तोता सिंह ने अपने जिंदगीभर की जमा की गई पूंजी इस रोड पर लगा दी और अपने पत्नी के सारे गहने बेच दिए। तोता सिंह और उनके मजदूर दिनभर कमर पर रस्सी बांधकर पहाड़ों को तोड़ते हुए लगभग 4 साल तक रोड निर्माण का कार्य किया। सन 1935 में इस रोड निर्माण का कार्य ठेकेदार तोता सिंह द्वारा पूरा हुआ। तोता घाटी पर रोड का निर्माण तो हो गया था किन्तु इसके बाद तोता सिंह रांगड़ का पूरा परिवार रोड पर आ गया था। क्योंकि इस रोड पर उनके 70 हजार चांदी के सिक्के लगे थे। इसके बाद जब राजा नरेंद्र शाह को इस बात का पता लगा तो राजा ने उनको को न सिर्फ जमीन दी बल्कि उस घाटी पर बने रोड का नाम तोता सिंह रांगड़ के नाम पर तोता घाटी रखा दिया। इसलिए आज इस घाटी को तोता घाटी कहते हैं। तो ये थे वो महान मेहनती ओर सहासी ठकेदार तोता सिंह रांगड़ जिनकी वीरता और साहस से इस दुर्गम घाटी पर रोड का निर्माण हो सका।