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उत्तराखण्ड के गहत की दाल स्वाद में लाजवाब.. गम्भीर बीमारियों के लिए रामबाण इलाज

uttarakhand: पहाड़ी भोजन में शामिल गहत की दाल है पथरी समेत बहुत सी बीमारियों का रामबाण इलाज…alt="uttarakhand gahth pulse"

उत्तराखंड(uttarakhand) का पर्वतीय क्षेत्र वाकई लाजवाब है। चाहे वहां का खूबसूरत नजारा हो या फिर सुंदर एवं स्वच्छ वातावरण, वहां के मूल निवासियों की सभ्यता एवं संस्कृति हो या फिर मेहमान नवाजी का तरीका, देवभूमि(uttarakhand) की हर चीज देश-विदेश में प्रसिद्ध है। जिस तरह देवभूमि(uttarakhand) के पहाड़ और पहाड़ी पूरे विश्व में सबसे निराले हैं उसी तरह यहां के खान-पान का तरीका भी सबसे जुदा है। बेशक आज हम पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव एवं इस नयेपन की दुनिया में वो सब कुछ भुलते जा रहे हैं परन्तु हमारे पूर्वजों द्वारा समयानुसार अपनाई गई लाजबाव व्यंजनों के चमत्कारी गुणों की प्रशंसा आज विज्ञान और वैज्ञानिक भी डंके की चोट पर करते हैं। चाहे स्वाद की दृष्टि से हो या फिर सेहत की दृष्टि से हम पहाड़ियों के भोजन का कोई सानी नहीं है। आज हम आपको एक ऐसे ही पहाड़ी व्यंजन के बारे में बता रहे हैं जो स्वयं में क‌ई गुणों की खान है। जिसके प्रयोग से जहां प्राचीन समय में बड़ी-बड़ी चट्टानों में विस्फोट हो जाते थे वहीं वर्तमान समय में उसका पानी पथरी का सबसे अचूक उपाय है। जी हां.. हम बात कर रहे हैं गहत की दाल की। जाड़े के मौसम में हमारे भोजन के प्रमुख अंग गहत के क‌ई व्यंजन जहां खाने में लाजवाब है वहीं अपने आप में कई गुणों को भी समाएं हुए हैं।


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गर्म तासीर की दाल है गहत इसलिए जाड़ों के प्रमुख व्यंजनों में है शामिल: हमारे पूर्वजों ने ठण्ड के मौसम के लिए जिस किस्म के भोजन का चयन किया वह पर्याप्त कैलोरी और पौष्टिकता देने के साथ-साथ गर्म तासीर वाला भी है और यही सब गुण गहत की दाल में भी पाए जाते हैं इसलिए इसका उपयोग सितम्बर से फरवरी के बीच ठंड के मौसम में अधिक किया जाता है। बता दें कि देवभूमि उत्तराखंड में गहत या गौथ के नाम से प्रचलित इस दाल का वानस्पतिक नाम मैक्रोटाइलोमा यूनीफ्लोरम (Macrotyloma uniflorum) है। देवभूमि उत्तराखंड(uttarakhand) के साथ-साथ यह हिमाचल प्रदेश एवं उत्तर-पूर्व के साथ-साथ दक्षिण भारत में भी खूब खाई जाती है। भारत के विभिन्न राज्यों में इसे गहत, गौथ, कुलथी, हुराली और मद्रास ग्राम सहित कई अन्य नामों से जाना जाता है। भारत में इसकी दाल, डुबके/फाणू, रस, खिचड़ी, चटनी, रसम, सांभर, सूप और भरवां परांठे आदि व्यंजन खासे लोकप्रिय है। बात अगर देवभूमि उत्तराखंड की करें तो राज्य के वाशिंदों का यह सर्दियों में प्रमुख एवं सबसे पसंदीदा भोजन है। राज्य में इसकी दाल में गढेरी डालकर इसको खासा पसंद किया जाता है। इसके साथ ही इसके डुबके और चढक्वानी भी हम पहाड़ी बड़े चांव से खाते हैं। खरीफ की फसल में राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में पैदा होने वाली गहत की यह दाल काले एवं भूरे रंग की होती है।


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आयुर्वेद में भी गहत को दिया गया है चिकित्सकीय गुणों वाले भोजन का दर्जा:- गुणों की खान गहत की दाल में दवाओं के भी कई गुण पाए जाते है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आयुर्वेद में भी इसको चिकित्सकीय गुणों वाले भोजन का दर्जा दिया गया है। आयुर्वेद में इसके चिकित्सकीय गुणों का वर्णन करते हुए बताया गया है कि गहत में क‌ई पौष्टिक तत्त्व जैसे कि प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर और कई तरह के विटामिन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। अपने चिकित्सकीय गुणों के कारण यह कई बीमारियों के इलाज में भी कारगर मानी जाती है। आर्युवेद के साथ-साथ वानस्पतिक और चिकित्सकीय अनुसंधानों के द्वारा की गई तमाम रिसर्चों ने भी इसके औषधीय गुणों का वर्णन करते हुए इसे गुणकारी भोजन का दर्जा दिया है। चिकित्सकों का कहना है कि जहां गहत इन्सुलिन के प्रतिरोध को कम करती है वहीं वजन को नियंत्रित करने के साथ ही यह लिवर के लिए भी काफी फायदेमंद है। इसके साथ ही यह दाल एंटी हायपर ग्लायसेमिक गुणों से भी भरपूर है। यही कारण है कि भारत के अलावा क‌ई अन्य देशों जैसे- नेपाल, बर्मा, भूटान, श्रीलंका, मलेशिया और वेस्टइंडीज सहित कई अन्य देशों में भी गहत भोजन का अभिन्न अंग है।


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कभी विस्फोटक के रूप में प्रयोग होता था इसका रस आज पथरी का है रामबाण इलाज:- सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन डायनामाइट से पहले इसका उपयोग ब्लास्टिंग के लिए एक विस्फोटक के रूप में होता था। अर्थात जिस तरह से आजकल चट्टान तोड़ने के लिए डाइनामाइट का इस्तेमाल होता है, उसी तरह से पुराने वक्त में चट्टान तोड़ने के लिए गहत का इस्तेमाल होता था। किंवदंतियों के अनुसार 19वीं सदी तक भी इसका उपयोग बड़ी-बड़ी चट्टानों को तोड़ने के लिए किया गया था। इस बारे में कहा जाता है कि औजारों से न टूटने वाले बड़े पत्थरों में छैनी-हथौड़ी से छेद कर उसमें गहत की दाल को उबालकर उसका गर्म पानी उड़ेल दिया जाता था जिससे गहत की गर्मी के कारण उस पत्थर में दरार आ जाती थी, जिसके बाद उसे आसानी से तोड़ा जा सकता था। इसी गुण के कारण आज इसको पथरी जैसे असाध्य रोग का रामबाण इलाज माना जाता है। आम लोगों के साथ ही चिकित्सकों का भी कहना है कि इसमें गुर्दे की पथरी को गलाने की अद्भुत क्षमता है। इसलिए लोग गहत की दाल को रातभर भिगोकर सुबह इसका पानी पीते हैं। बार-बार गहत का ऐसा पानी पीने से गुर्दे की पथरी की कमजोर होकर बाहर निकलने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है।


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