उत्तराखण्ड (UTTARAKHAND) में एक बार फिर हो सकता है नेतृत्व परिवर्तन, संवैधानिक संकट के कारण पड़ेगी मुख्यमंत्री (CM) बदलने की जरूरत, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री ने किया बड़ा दावा, राष्ट्रपति शासन भी लगा सकती है केन्द्र सरकार..
9 मार्च 2021, इस दिन को भला उत्तराखण्डवासी कैसे भूल सकते हैं। राज्य (UTTARAKHAND) में इसी दिन उस समय राजनैतिक संकट देखने को मिला था जब तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके ठीक एक दिन बाद वर्तमान मुख्यमंत्री (CM) तीरथ सिंह रावत ने पद और गोपनीयता की शपथ ली थी। हालांकि राज्य के बीस वर्षों के इतिहास में ऐसा पहली बार नहीं हुआ था जब सत्ताधारी दल ने नेतृत्व परिवर्तन कर मुख्यमंत्री बदल दिया हों। सच तो यह है कि हम उत्तराखण्डवासियों को तो अब जैसे पांच वर्ष के भीतर दो या उससे अधिक मुख्यमंत्री देखने की आदत ही पड़ गई हों। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता कि पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के अतिरिक्त राज्य में कोई ऐसा मुख्यमंत्री नहीं रहा जो अपना पांच वर्षीय कार्यकाल पूर्ण कर पाया हों। अब एक बार फिर से राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के कयास लगाए जा रहे हैं। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इसकी पुष्टि करते हुए राज्य में संवैधानिक संकट का हवाला दिया है। ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व किसी अन्य नेता को प्रदेश के मुखिया की जिम्मेदारी सौंपता है या फिर राज्य में एक बार फिर से राष्ट्रपति शासन देखने को मिलता है?
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विदित हो कि बीते 10 मार्च को प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले तीरथ सिंह रावत वर्तमान विधानसभा के सदस्य नहीं हैं। संविधान के अनुच्छेद 164 (4) के प्रावधानों के मुताबिक अगर निरन्तर 6 माह के अन्दर गैर सदस्य मंत्री विधायिका की सदस्यता ग्रहण नहीं कर पाए तो उस अवधि के बाद वह मंत्री नहीं रह पाएगा। मुख्यमंत्री के रूप में तीरथ सिंह रावत की छः महीने की यह समय सीमा आगामी 9 सितम्बर को समाप्त हो रही है। अर्थात 2022 तक मुख्यमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए तीरथ सिंह रावत को 9 सितम्बर से पहले हर हाल में चुनाव जीतकर विधानसभा की सदस्यता हासिल करनी होगी। परंतु लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151(क) के नियमों के अनुसार यदि किसी राज्य में आम चुनाव के लिए एक साल से कम समय बचा हो तो वहां पर उप चुनाव नहीं कराए जा सकते। हालांकि वर्तमान में राज्य की दो विधानसभा सीटें हल्द्वानी और गंगोत्री विधायकों के आकस्मिक निधन के कारण रिक्त हैं। परन्तु कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं राज्य के पूर्व मंत्री नव प्रभात ने दावा किया है कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151(क) के नियमों के हिसाब से संवैधानिक संकट पैदा हो गया है। उन्होंने कहा कि इसके कारण वर्तमान में राज्य में किसी भी सीट पर उपचुनाव होना संभव नहीं है, जिस कारण प्रदेश में एक बार फिर से सरकार के नेतृत्व में बदलाव देखने को मिलेगा। हालांकि यह भी संभव है कि संवैधानिक संकट को देखते हुए केंद्र सरकार उत्तराखण्ड में एक बार फिर राष्ट्रपति शासन लगा दें।
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