singer Prahlad Mehra biography: महज 53 वर्ष की उम्र में हमेशा के लिए अलविदा कह गए लोकगायक प्रहलाद सिंह मेहरा, उत्तराखण्ड संगीत जगत को अपूर्णीय क्षति…
singer Prahlad Mehra biography
उत्तराखण्ड संगीत जगत को अनेकों खूबसूरत गीत देकर दर्शकों को थिरकने को मजबूर करने वाले सुप्रसिद्ध लोकगायक प्रहलाद सिंह मेहरा अब हमारे बीच नहीं हैं। बुधवार को उनका आकस्मिक निधन हो गया। भले ही लोकगायक प्रहलाद सिंह मेहरा ने दुनिया को अलविदा कह दिया हों परंतु उनके खूबसूरत गीत सदियों तक पहाड़ी जनमानस के दिलों दिमाग पर बसे रहेंगे। आज हम आपको स्वगीर्य प्रहलाद सिंह मेहरा के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं से रूबरू कराने जा रहे हैं। बता दें कि लोकगायक प्रहलाद सिंह मेहरा मूल रूप से राज्य के पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी क्षेत्र के ग्राम चामी भैंसकोट भराड़ी के रहने वाले थे। उनका जन्म 4 जनवरी 1971 को हुआ था। महज 53 वर्ष की उम्र में पहाड़ की जनता को हमेशा के लिए अलविदा कहने वाले लोकगायक प्रहलाद एक बेहद सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता हेम सिंह जहां एक शिक्षक थे वहीं उनकी मां लाली देवी एक कुशल गृहिणी थी। यह भी पढ़ें- Prahlad Mehra Singer Uttarakhand: उत्तराखंड सुप्रसिद्ध लोक गायक प्रहलाद मेहरा का निधन ..
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बता दें कि बचपन से ही गीत संगीत के शौकीन लोकगायक प्रहलाद सिंह मेहरा स्वर सम्राट गोपाल बाबू गोस्वामी से प्रभावित होकर वो उत्तराखंडी संगीत जगत में आए थे। उन्हें पहाड़ के सुप्रसिद्ध स्वगीर्य लोकगायक हीरा सिंह राणा के कद का गायक माना जाता है। अपनी सुमधुर गायकी से लोगों के दिलों में खास जगह बनाने वाले लोकगायक प्रहलाद सिंह मेहरा की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोग उन्हें प्यार से प्रहलाद दा कहकर बुलाते थे। उनके हर एक गीत में पहाड़ का वर्णन होता था। उनके गीत सुनते ही लोग खुद ब खुद थिरकने को मजबूर हो जाते थे। बताते चलें कि वर्ष 1989 में अल्मोड़ा आकाशवाणी में स्वर परीक्षा पास करने वाले प्रहलाद मेहरा वर्तमान में अल्मोड़ा आकाशवाणी में A श्रेणी के गायकों में शामिल थे। उन्होंने उत्तराखण्ड संगीत जगत को कई सुपरहिट कुमाऊंनी गीत देकर दर्शकों को थिरकने को मजबूर किया था। जिनमें पहाड़ की चेली ले, दु रवाटा कभे न खाया.., ओ हिमा जाग…का छ तेरो जलेबी को डाब, चंदी बटना दाज्यू, कुर्ती कॉलर मां मेरी मधुली… , एजा मेरा दानपुरा शामिल हैं। ये वे गीत है जिनसे न केवल प्रहलाद मेहरा ने पहाड़ के आम जनमानस के दिलों में खास पहचान बनाई थी बल्कि उनके यह खूबसूरत गीत वर्तमान तक लोगों के दिलों दिमाग में बसे हुए हैं।
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बता दें कि वर्तमान में उनका परिवार नैनीताल जिले के लालकुआं क्षेत्र के बिंदुखत्ता में रहता है। अपने शुरुआती सफर को याद करते हुए प्रहलाद सिंह मेहरा ने मीडिया से बातचीत में बताया था कि जब पहली बार उन्होंने स्टेज से गाना गाया तो वहां लड़ाई हो गई और उन्हें अपना कार्यक्रम अधूरा छोड़कर वहां से जाना पड़ा। जिसके बाद उन्होंने रामलीला एवं झोड़ा चांचरी से सार्वजनिक रूप से गीत गाने शुरू किए। धीरे धीरे लोग उनकी आवाज को इस कदर पसंद करने लगे कि उनकी गिनती उत्तराखण्ड के सुप्रसिद्ध लोकगायकों में होने लगी। खासतौर पर वर्ष 2000 उनके लिए काफी फायदेमंद रहा। इस दौरान उनके कई एल्बम रिलीज हुए। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के अभियान से प्रभावित होकर उन्होंने बेटियों को बचाने के लिए ‘गर्भ भितेरा बेटी ना मार…’ गीत को अपनी सुमधुर आवाज दी, जिसे लोगों द्वारा काफी पसंद किया गया।