कुमाऊंनी कविता- पलायन…Megha Nagila poem
आमा – बुबू छाड़ी बेर ।
कहीं जाला भाजी बेर।।
आमा – बुबू चायी रौल ।
पान – बाखली लिपि रौल
आस तुमरी करी रौल
हर फसल बचाई रौल।।
पहाड़ ऐजा लौट बेर ।
के करला दिल दुखाई बेर।।
आमा – बुबू बैठी रौल ।
छाज्ज तुमार छाजी रौल
आपुन दुःख लुकाई रौल
याद तुमरी आई रौल।।
उनु के एकल छाड़ी बेर ।
के करला भाबर जाई बेर।।
रचना- मेघा नागिला, ग्राम हाटभंडार, बेरीनाग, पिथौरागढ़ (उत्तराखण्ड)
Megha Nagila poem
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देवभूमि दर्शन मीडिया उत्तराखंड लोक-संस्कृति भाषा – बोली और लोक परंपरा को बढ़ावा देने हेतु एक पहाड़ी कविता प्रतियोगिता कुमाऊनी गढ़वाली एवं जौनसारी में आयोजित करवाने जा रहा है। कविता उत्तराखंड के किसी भी मुद्दे पर हो सकती है अथवा लोक संस्कृति और लोक परंपरा पर भी आधारित हो सकती है लेकिन स्वरचित होनी चाहिए। आपकी यह कविता आपके नाम से हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित होगी और उसका लिंक आपके साथ भी साझा किया जाएगा।
आप दिनांक 17 से 24 तक अपनी कविताएं हमें अपने पते, फोटो और संपर्क सूत्र के साथ मेल आईडी : [email protected]
अथवा व्हाट्सएप:
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पर भेज सकते हैं।
रिजल्ट:
इस प्रतियोगिता का परिणाम 30 जनवरी को आएगा। काव्य संकलन प्रभाग के निर्णायक समिति का निर्णय सर्वमान्य होगा।
प्रथम विजेता को उपहार:-
2 हजार+ गिफ्ट हैंपर।
द्वितीय विजेता को
1 हजार+ गिफ्ट हैंपर
तृतीय विजेता को
गिफ्ट हैंपर
देवभूमि दर्शन मीडिया
(काव्य संकलन प्रभाग)