उत्तराखण्ड सिनेमा जगत में रोजाना कोई न कोई पहाड़ी गीत जरूर रिलीज होता है , जिनमे कुछ सुपरहिट तो कुछ फ्लॉप हो जाते है , लेकिन ऐसे बहुत कम गीत निकलते है जो समाज के और पहाड़ के दर्द को बयाँ करते हो। पहाड़ का दर्द बेरोजगारी जिसकी वजह से आज पूरी देवभूमि पलायन भूमि में तब्दील हो गयी , इसी दर्द की पीड़ा को अपने गीत के माधयम से आम जनता तक पहुचाने का प्रयास कर रहे है सुप्रसिद्ध लोकगायक दिनेश उनियाल के सुपुत्र पंकज उनियाल। जो देवभूमि दर्शन से बात चित में कहते है की इस गीत के माध्यम से उनका किसी राजनितिक पार्टी पर या किसी व्यक्ति विशेष पर कटाक्ष – व्यंग्य करना नहीं है, बल्कि ये उद्देश्य है की किसी की भी सरकार आए लेकिन हमे उत्तराखण्ड में रोजगार चाहिए। पंकज कहते हैं की पहाड़ में अगर रोजगार मिल गया तो लोगो को शहरो की और पलायन की जरुरत ही नहीं होगी और इसके लिए सरकार को सही समय पर सही कदम उठा लेना चाहिए।
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उत्तराखण्ड लोकगीतों की बात करे तो ऐसे सुप्रसिद्ध और महान लोकगायक भी रहे , जिन्होंने उत्तराखण्ड लोकगीतों के माध्यम से पहाड़ी संस्कृति को एक नयी पहचान दिलाने का पूरा प्रयास किया लेकिन आज किसी कारण वस वो उत्तराखण्ड सिने जगत से काफी दूर है। जी हां हम बात कर रहे है “पहाड़ी पहचान रत्न” से सम्मानित टिहरी गढ़वाल के नैचोली के मूल निवासी दिनेश उनियाल के बारे में जिन्होंने गढ़वाली गीतों के माध्यम से अपनी एक विशेष छवि लोगो के दिलो में बनाई थी जो उस दौर के सभी उभरते हुए संगीतकारों के लिए एक प्रेरणास्रोत बने और उन सभी उभरते हुए संगीतकारों के मार्गदर्शक भी बने। बताते चले की युवा गायक पंकज उनियाल सुप्रसिद्ध लोकगायक दिनेश उनियाल के बड़े बेटे है जो खुद की कविता और अन्य लेखन कार्य भी बखूबी करते है।
Devbhoomi Darshan Desk
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