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उत्तराखण्ड के पहले लोकगायक पहाड़ी पहचान रत्न दिनेश उनियाल जिन्होंने टी सीरीज में अपने गीत दिए




उत्तराखण्ड के लोकगीतों की बात करे तो यहाँ ऐसे ऐसे महान लोकगायक है जिन्होंने उत्तराखण्ड के लोकगीतों को एक नया आयाम दिया और एक नयी उचाई पर पहुँचाया हां वो बात अलग है की आज उनमे से बहुत से प्रसिद्द लोकगायक और लोकगायिकाएँ धूमिल सी हो चुकी है। इन्ही लोकगायकों में एक प्रसिद्द नाम आता है “पहाड़ी पहचान रत्न” से सम्मानित टिहरी गढ़वाल के नैचोली के मूल निवासी दिनेश उनियाल का जिन्होंने गढ़वाली गीतों के माध्यम से अपनी एक विशेष छवि लोगो के दिलो में बनाई थी जो उस दौर के सभी उभरते हुए संगीतकारों के लिए एक प्रेरणास्रोत बने और उन सभी उभरते हुए संगीतकारों के मार्गदर्शक भी बने। उत्तराखण्ड लोकसंगीत के क्षेत्र में अन्य गायको गजेंद्र राणा ,मीना राणा ,संगीता ढौडियाल ,पवन सेमवाल और प्रीतम भरतवाण इत्यादि को दिनेश उनियाल ही लाएं और इनका मार्गदर्शन भी किया ।

उत्तराखण्ड के पहले लोकगायक दिनेश उनियाल जिन्होंने टी सीरीज में अपने गीत दिए – आपको जानकार आश्चर्य  होगा की गुलशन कुमार के टी सीरीज में अपने गीतों से एक विशेष ख्याति प्राप्त करने वाले उत्तराखण्ड के एकमात्र लोकगायक दिनेश उनियाल है, जिनके गीतों में वो मधुरता और गहराई थी जो सुनने वाले के दिलो को झकझोर कर रख देता था। सन सन 1988 से उन्होंने मात्र 23 साल की उम्र में अपने एक से एक गढ़वाली गीत देने शुरु कर दिए थे। उसी दौर में उनके 40 कैसेट निकले जिनमे से बांदर हरामी , दुई ब्यो का हाल ,दीदा कु ब्यो, भली बान्द, प्यार कि निसानि, इत्यादि बहुत प्रसिद्द थे। उन्होंने टी सीरीज के लिए 198े8 में  गीत देने शुरु कर दिए थे जहाँ से उनकी निम्न कैसेट निकली चन्द्रु दिदा जमानु बिगिडीगे, नथुला वालि बौ, बिगरैलु रुप।




पहाड़ी पहचान रत्न 2015 से है सम्मानित-





वरिष्ठ लोकगायक दिनेश उनियाल को उनके द्वारा उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति एवं लोक गायन के क्षेत्र में दिए गए अनुपम योगदान हेतु ” पहाड़ी पहचान रत्न 2015 से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें पहाड़ी पहचान जनमंत्र के द्वारा प्रदान किया गया था।



उत्तराखण्ड लोकगीतों में इतनी ख्याति प्राप्त करने के बाद क्यों हुए धूमि – देवभूमी दर्शन के साथ एक खाश बात चित में उनके बड़े बेटे पंकज उनियाल ने बताया की उनके पिता की जिंदगी में एक बहुत बड़ा हादसा हो गया था जिसमे की उनकी आवाज की समस्या उत्पन्न हो गयी थी जिसके बाद से उन्होंने अपने गीत गाने बंद कर दिए थे। इसको किस्मत की ही एक बहुत बड़ी मार कहंगे की दुर्भाग्यवश उन्हें अपने संगीत कला की दुनिया छोड़ कर एक साधारण इंसान की तरह जीवन व्यापन करना पड़ रहा है। उनकी अंतिम कैसेट 2007  में मीना राणा के साथ निकली थी जिसका नाम था तेरी थगयोना मायाउनके बेटे पंकज उनियाल भी संगीत प्रेमी है और उत्तराखण्ड के लोकगीतों में उनका बहुत रुझान है। वो कहते है की आने वाले समय में वो उत्तराखण्ड के लोकगीतों को अपने पिता दिनेश उनियाल और नरेंद्र नेगी की भाँति एक नयी पहचान देंगे।

 





 यह भी पढ़े –संगीता ढौंडियाल जो उत्तराखण्ड़ के लोकगीतों और संस्कृति को राष्र्टीय स्तर पर ले आई

गढ़रत्न नरेंद्र नेगी ने लखनऊ आकाशवाणी से की थी घोषणा- पंकज उनियाल ने अपनी बात चित में बताया की जब 1990-2000 के बिच उत्तराखण्ड के लोकगीत प्रसारित हुआ करते थे तब दिनेश उनियाल को उनके एक कैसेट के 20 हजार रूपये मिला करते थे और नरेंद्र नेगी को 16- 17 हजार रूपये मिला करते थे। पंकज उनियाल ने बताया की नरेंद्र नेगी ने लखनऊ आकाशवाणी के माध्यम से कहा था की “अगर मुझे कोई संगीत कला के क्षेत्र में टक्कर दे सकता हैं तो वो सिर्फ दिनेश उनियाल जी हैं’।

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