सुर कोकिला मीना राणा और लोकगायक फौजी ईश्वर मेहरा की जुगलबंदी से बना खूबसूरत पहाड़ी गीत
उत्तराखण्ड संगीत जगत में आए दिन एक से एक मॉडर्न और मैशअप गीत तो जरूर रिलीज हो रहे है, लेकिन उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति जिन गीतों से जुड़ी है उनमे झोड़ा चाचरी और न्योली अपना एक विशेष स्थान रखते है। ये झोड़ा चाचरी न ही अब कही सुनने को मिलते है न ही देखने को कहा जाए तो धीरे धीरे विलुप्ति के कगार पर ही है, लेकिन एक बार फिर लोकगायक ईश्वर मेहरा और सुर कोकिला लोकगायिका मीना राणा (Meena Rana) बहुत ही शानदार उत्तराखण्डी झोड़ा गीत “दिल लागल काँ” लाए है जिसमे लुप्त होती झोड़ा चाचरी को बहुत खूबसूरत अंदाज में अपनी आवाज में पिरोया गया है। देवभूमि दर्शन से बातचीत में फौजी लोकगायक ईश्वर मेहरा बताते है की उनकी सबसे पहली एल्बम ” सरहद” जो 2004 में रिलीज हुई जिसमें उन्होंने एक सेन्य जीवन के ऊपर बहुत ही मार्मिक गीत बनाये और खुद ही उनको स्वर भी दिया। वे कहते है की सेना में कार्यरत होने से गीतों के लिए बहुत कम मौका मिल पाता था और जब भी उन्हें मौका मिलता तो पूरी कोशिश करते की वे अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए कुछ विशेष करे।
झोड़ा -चाचरी गीतों को उत्तराखण्ड संस्कृति की धरोहर मानने वाले लोकगायक ईश्वर मेहरा यू तो बहुत सारे लोक गीत गा चुके है पर इस गीत में लोकगायिका मीना राणा के साथ उनकी जुगलबंदी से गीत में जरूर चार चाँद लग गए। बताते चले की ये गीत चैनल आई एम स्टार ग्रुप के बैनर तले रिलीज किया गया है, और एक सप्ताह में 60हजार व्यूज ले चुका है। वैसे लोकगायक ईश्वर मेहरा की एक खाश बात ये भी है की वो बहुचर्चित शब्दो का अनोखा मिश्रण करने की कला से भी परिपूर्ण है। देवभूमि दर्शन से बात चित में उन्होंने बताया की बहुत जल्दी देशभक्ति के जज्बा से भरपूर करने वाला गीत भारत माँ बहुत जल्दी रिलीज होने वाला है।
गीत के मुख्य कलाकार:
स्वर : ईश्वर मेहरा व मीना राणा
संगीत: वी केश
रिकॉर्डर : विक्की जुयाल
कैमरा : विकास कोटनाला
सहयोग : पुष्कर महर
निर्माता : निर्देशक -कमला मेहरा व पुष्कर पवार