यात्रा वृतांत :मानसून की चादर से ढका वातावरण और गौरी कुंड से होते हुए केदारनाथ की यात्रा
मेरा नाम अनुराग रावत है ,मैं मूल रूप से टिहरी गढ़वाल का रहने वाला हूँ और वर्तमान में देहरादून ग्राफ़िक एरा यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में बीटेक कर रहा हूँ और मुझे ट्रैकिंग का बहुत शोक है और इस बार मैं आपके साथ अपनी ट्रैकिंग “ गौरी कुंड से केदारनाथ” की खूबसूरत वीडियो देवभूमि दर्शन के माध्यम से शेयर करना चाहता हूँ। वो कहते हैं ना जिंदगी जीने का असली मज़ा तो यात्रा करने में ही है। बस इसी चीज को ध्यान में रख कर हमने भी गौरी कुंड से केदारनाथ यात्रा करने का मन बना लिया। मैंने अपने एक दोस्त के साथ यहा यात्रा करने की योजना बनाई। पहले हम अपनी गाडी से गौरी कुंड पहुंचे। गौरी खुद केदारनाथ यात्रा की सबसे पहली सीढी मानी जाती है। फिर हमने जय भोले का नाम लेकर अपनी यात्रा को शुरू किया।
गौरी कुंड में पहले एक कुंड हुआ करता था जहाँ पर लोग स्नान कर अपनी यात्रा को शुरू करते थे, पर ये कुंड आपदा के समय टूट गया थ। हमारी शुरुआत एक खूबसूरत से झरने से हुई , मौसम भी काफी अच्छा था , धुप भी काफी अच्छी खिली थी। हमारे साथ काफी लोग यात्रा शुरू कर रहे थे, जिसमे से कुछ पैदल और कुछ घोड़े के साथ। बस हमारे दिमाग में यही था, की पुरे 18 किमी. का ट्रेक एक ही दिन में कैसे पूरा होगा। बड़े बड़े पहाड़ देख कर और केदार वैली की नदी देख कर मन में एक सुकून सा मिल रहा था। चलते चलते लोगों से पता चला की केदार वलय को वैली ऑफ़ वाटरफॉल्स कहा जाता है, क्यूंकि यहाँ जगह जगह पर बहुत सारे वाटरफॉल्स दीखते हैं। हमारा सबसे पहला चेकपॉइंट था, जंगलचटटी जो गौरी कुंड से 3.5 कम था। यहाँ हमने थोड़ी देर बैठ कर चाय की चुस्किया ली और फिर निकल पढ़े आगे की यात्रा के लिए।
फिर एकदम से मौसम बदल गया बारिश होने लगी पर हम अपने साथ रेनकोट लेके आए थे, जो हमे किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा सबसे रोमांचक करने वाला रास्ता तो वो था , जहाँ हम पत्थर के बने रस्ते से पानी के ऊपर निकले, फिर अगला चेकपॉइंट था भीमबली , यहाँ से केदारनाथ 10 किमी. दूर था।फिर हमने आगे जाकर देखा की पुराना रास्ता कैसा है , जो की आपदा के वक़्त टूट चूका था ,और सिर्फ 14 किमी. का था।फिर हम रामबाड़ा पहुंचे , हमने लगभग 10 किमी. तय कर दिया था। अगला चेकपॉइंट था ,लिंचोली , जहाँ तक हमने 14 किमी. पार कर लिया था। फिर हमे थोड़े ही आगे साइन बोर्ड दिखा जिसमें लिखा था, केदारनाथ 1.5 किमी. तो मन में ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। थोड़ी ही आगे जाकर हमे केदारनाथ जी का भव्य मंदिर दिखने लगा और घंटियों की आवाज़ सुनते ही ह्रदय गद- गद हो उठा। यहाँ पहुँच कर ऐसा लगा जैसे हम जन्नत में पहुंच गए हो। अंत में हमने मंदिर के दर्शन करे और अगले दिन वापस लौट गए।
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