पिता खुद सेना में भर्ती न हो पाए तो 27 साल बाद बेटे को वर्दी में लेफ्टिनेंट बनकर देख, गौरवान्वित हुए पिता
उत्तराखण्ड के युवाओ में देश भक्ति कितनी कूट कूट कर भरी है , और सेना में भर्ती होने के कितने बुलंद हौसले है , इस बात का अंदाजा शनिवार (8 दिसंबर ) के भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) देहरादून से पासआउट आंकड़ों से ही लगाया जा सकता है। जहाँ उत्तराखण्ड अन्य राज्यों से क्षेत्रफल और जनसंख्या में भी छोटा है , वही उत्तराखण्ड ने 26 जाबांज कैडेट देश को दिए भारतीय सेना को जाबांज कैडेट देने में उत्तराखण्ड चौथे स्थान पर है। इन आंकड़ों से उत्तराखण्ड के युवाओ का देशभक्ति के प्रति जूनून साफ झलकता है।
बता दे की इन 26 कैडेट में से एक हल्द्वानी के तीन पानी अशोक विहार निवासी मयूर नगरकोटी भी है , जो शनिवार को भारतीय सेना में अफसर बन गए। उनके पिता की चाहत थी कि वे सेना में जाकर देश सेवा करे लेकिन किन्हीं कारणों से यह सपना पूरा नहीं हो पाया। जब मयूर के पिता का सेना में जाने का सपना पूरा नहीं हुआ तो वो परिवहन विभाग में ही नौकरी करने लगे और मयूर के पिता गोविंद सिंह नगरकोटी वर्तमान में परिवहन विभाग में लिपिक के पद पर कार्यरत हैं। भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) देहरादून में मयूर को बेस्ट इन ड्रिल कैडेट पुरस्कार भी मिला है। जब 27 साल बाद बेटे को वर्दी में देखा तो पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। हालांकि उनके तीनों भाई हरेंद्र नगरकोटी, देवेंद्र नगरकोटी और साकेत सिंह नगरकोटी सेना में हैं। मयूर के दादा नाथू सिंह भी सेना से सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।
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अफसर बनने के बाद बेटे मयूर ने उनका सपना पूरा कर दिया है। मयूर के पिता अपने पिता का सपना पूरा नहीं कर सके लेकिन मयूर ने दादा और पिता दोनों का सपना पूरा कर दिखाया। मयूर अब लेफ्टिनेंट मयूर हो गए है। मयूर को बचपन से ही दादा और पिता ने हमेशा उनके लक्ष्य को प्राप्त करने में हर कदम पर उनका सहयोग किया , अब बेटे के लेफ्टिनेंट बनने पर पुरे परिवार में खुशी का माहौल है। लेफ्टिनेंट मयूर की बहन कीर्ति पंतनगर विवि से पीएचडी कर रही हैं ,और बड़े भाई विशाल इसरो में यांत्रिक अभियंता है।
