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Immense possibilities of tea cultivation garden in Uttarakhand! Can be a big source of employment. Tea Garden in Uttarakhand

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उत्तराखण्ड विशेष तथ्य

उत्तराखंड में चाय की खेती की अपार संभावनाएं ! रोजगार का हो सकता है एक बड़ा जरिया

Tea Garden in Uttarakhand: उत्तराखण्ड में अंग्रेजों ने 1835 में की थी चाय उत्पादन की शुरुआत, जाने इसके इतिहास से जुड़े कुछ रोचक तथ्य…

59926 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल तक फैला उत्तराखंड, भारत देश का एक ऐसा राज्य है जहां की 90% आबादी खेती पर निर्भर करती है और खेती ही इनके जीवन यापन का साधन है। राज्य के कुल क्षेत्रफल का 15% कृषि योग्य भूमि के अंतर्गत आता है। वर्तमान में राज्य में तरह तरह की खेती की जाती है। यहां की भूमि और जलवायु प्राकृतिक रूप से परिपूर्ण है जिसमें कई प्रकार के फल फूल, पेड़ पौधे और जड़ी बूटियां, हरे भरे धान और कई नगदी फसलें उगाई जाती है। इन्हीं में से आज हम बात करेंगे उत्तराखंड में उगायी जाने वाली चाय की खेती की। चाय की खेती नगदी फसल के अन्तर्गत आती है। इसके लिए 200 से 150 सेंटीमीटर वर्षा की आवश्यकता होती है जो की सीढ़ीनुमा खेतों में उगाई जाती है। इसके उत्पादन के लिए आद्र एवं उष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। उत्तराखंड की भूमि चाय उत्पादन के लिए सबसे अच्छी भूमियों में से एक मानी जाती है यहां चाय की खेती की अपार संभावनाएं हैं।
(Tea Garden in Uttarakhand)
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बता दें यहां की 15% कृषि योग्य भूमि में चाय की उपलब्धता 9000 हेक्टेयर है। मगर वर्तमान में यहां चाय की खेती महज 1141 हेक्टेयर में ही की जाती है जोकि बहुत कम है। अगर राज्य में बाकी बची भूमि पर चाय की खेती करने पर जोर दिया जाए तो करीब 7 लाख किलो से अधिक चाय का उत्पादन किया जा सकता था। जिससे राज्य को अच्छी आय के साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल जाता मगर अफसोस इन गुजरे कई सालों में किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया और ना ही पहल की। उत्तराखंड में चाय की खेती की बात की जाए तो यहां की भूमि अच्छी उर्वरक और गुणवत्ता वाली चाय का उत्पादन करती है जो कि स्वाद में अत्यधिक स्वादिष्ट होती है और अन्य राज्यों की चाय को भी मात देती है। वर्तमान में उत्तराखंड में 8 जिलों अल्मोड़ा, बागेश्वर, नैनीताल, चंपावत, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग, टिहरी, उत्तरकाशी में सरकारी स्तर पर चाय की खेती की जाती है जिसमें चाय का करीब 84 हजार किलोग्राम उत्पादन मिल जाता है। इसी के साथ राज्य में चाय के बागान पौड़ी, देहरादून ,चमोली समेत पिथौरागढ़ आदि में 18 ब्लॉको में 1 हजार से अधिक क्षेत्र में फैले हैं। तथा यहां पैदा होने वाली ऑर्गेनिक चाय को कनाडा, जापान और हॉलैंड द्वारा परीक्षण के बाद सर्वश्रे्ठ का घोषित किया गया है और साथ ही इन देशों में इसकी बहुत डिमांड भी है।
(Tea Garden in Uttarakhand)
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उत्तराखंड में चाय का इतिहास(History of Tea in Uttarakhand)

उत्तराखंड में चाय के इतिहास की बात करें तो उत्तराखंड में चाय की खेती का श्रेय अंग्रेजों को जाता है। सर्वप्रथम अंग्रेजों द्वारा उत्तराखंड में चाय की खेती की गई थी। अंग्रेजों द्वारा दिसंबर 1835 में कोलकाता से चाय के 2000 पौधे उत्तराखंड मंगाए गए थे और इन्हें कुमाऊं में अल्मोड़ा के लक्ष्मेश्वर और भीमताल के भरतपुर की नर्सरी में लगाया गया था। तत्पश्चात 1838 में उत्पादित चाय को जब कोलकाता भेजा गया तो इसे कोलकाता चेंबर ऑफ कॉमर्स ने हर मानकों पर खरा पाया और इसे असम, दार्जिलिंग जैसे शहरों में उगने वाली चाय से भी बेहतर माना। इसके बाद धीरे-धीरे चाय का उत्पादन उत्तराखंड में कई जगहों जैसे देहरादून, कौसानी, मल्लापुर समेत अनेक स्थानों पर होने लगा। आजादी से पहले उत्तराखंड राज्य में 11 हजार हेक्टेयर भूमि पर चाय की खेती होती थी मगर आजादी के बाद धीरे-धीरे चाय की खेती में कमी आने लगी लेकिन इसके बावजूद भी यहां की चाय अपनी गुणवत्ता से देश विदेश में महक बिखेरती ही रही। समय बीतता गया और वक्त के साथ उत्तराखंड में फलों के उत्पादन पर जोर देने लगा जाया जाने लगा और चाय की उत्पादन की मात्रा में कमी आने लगी। धीरे धीरे लोगों का इस और ध्यान खत्म होने लगा और उत्तराखंड में चाय की खेती एकदम विलुप्त होने लगी। परंतु अलग उत्तराखंड राज्य के गठन के उपरांत वर्ष 2004 में चाय के लिए एवं चाय की खेती में बढ़ोतरी हेतु चाय विकास बोर्ड का गठन किया गया। जिसके बाद राज्य में फिर से चाय की खेती की जाने लगी। जिसके लिए गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र में चाय उत्पादन के लिए अलग अलग बोर्ड का गठन भी किया गया और नर्सरी में फिर से चाय उगाए जाने लगी।
(Tea Garden in Uttarakhand)

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वर्तमान में उत्तराखंड में चाय की खेती(Currently tea cultivation in Uttarakhand)

राज्य में फिलहाल 8 जिलों में चाय की खेती की जा रही है जो की अच्छी गुणवत्ता वाली चाय उत्पादित करती है। यहां की चाय न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि देश विदेशों में भी काफी मात्रा में पसंद की जाती है और अमेरिका, इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, हॉलैंड आदि देशों में निर्यात की जाती है वर्तमान में पुनः धीरे-धीरे विलुप्त होती चाय की खेती पर सरकार का ध्यान गया है। वर्ष 2004 में गठित चाय विकास बोर्ड ने प्रदेश के 9 जिलों में बागान विकसित करने की ठानी है जिसके लिए 48000 हेक्टेयर भूमि के चयन के साथ साथ परिक्षण भी हो चुका है। जल्द ही इन जमीनों पर चाय की खेती शुरू कर दी जाएगी ।जिसके तहत राज्य को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पहचान दिलाने के साथ ही बेरोजगारों को रोजगार और उत्तराखंड में हो रहे बंजर भूमि और पलायन को रोका जाएगा। सरकार के अनुसार इससे करीब 15 हजार लोगों को रोजगार दिया जाएगा और बंजर होती राज्य की भूमि में भी हरियाली आएगी। लगातार हो रहा शहरों की ओर पलायन को भी से रोका जा सकता है।
(Tea Garden in Uttarakhand)
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बता दें कि चाय एक ऐसी नकदी फसल है जिस की खेती करने से जमीन को कोई भी और किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता है और ना ही जानवर चाय को नुकसान पहुंचाते हैं।राज्य में फिलहाल 14 हजार हेक्टेयर भूमि पर चाय की खेती की जा रही है और साल भर 90 हजार किलोग्राम चाय का उत्पादन किया जा रहा है।सरकार अब तेजी से चाय की खेती का विस्तार कर रही है इसके लिए चयन जमीन का परीक्षण और जमीन देने वाले किसानों के परिवारों में से एक व्यक्ति को रोजगार भी दिया जाएगा। साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में उत्तराखंड की चाय को जैविक ग्राउंड के रूप में विशेष पहचान भी दिलाई जाएगी। सरकार द्वारा चाय की खेती के लिए कई जिलों जैसे- चंपावत में लोहाघाट, द्वारघाट, हवालबाग, पौड़ी में कलजीखाल, खिरसू, पाबू, अल्मोड़ा में धोलादेवी, भिकियासैंण, चौखुटिया, द्वाराहाट, हवालबाग, बागेश्वर में कपकोट, गरुड़, उत्तरकाशी में भटवाड़ी, पिथौरागढ़ में बेरीनाग, डीडीहाट और मुंसियारी, टिहरी में जाखणीधार, चंबा ,नरेंद्र नगर और चमोली में गैरसैंण,पोखरी,थराली, रुद्रप्रयाग में उखीमठ, अगस्तमुनि और जखोली आदि जगहों पर चाय की खेती के लिए नए स्तर पर जमीन का चयन किया गया है। जहां पर असम मणिपुर और केरल के तर्ज पर चाय के लिए बागान विकसित किए जाएंगे। आजकल बाजारों में ग्रीन टी की भी काफी मात्रा है जिस कारण चमोली जिले के नॉटी और नैनीताल के घोड़ाखाल तथा चंपावत में 485 हेक्टेयर क्षेत्र में ग्रीन टी तैयार की जा रही है जो कि काफी अच्छी गुणवत्ता वाली ग्रीन टी साबित हो रही है।
(Tea Garden in Uttarakhand)
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अतः स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि उत्तराखंड में चाय की खेती की अपार संभावनाएं हैं जरूरत है तो एक प्रभावी पहल की, जिससे इस और अधिक से अधिक ध्यान दिया जाए और यहां के अधिकतर हिस्सों में चाय की खेती की जाए। जिसे पलायन पर रोक तो लगेगी ही साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा और राज्य को भी अच्छे दर्जे का स्थान देश विदेशों में मिलेगा।
(Tea Garden in Uttarakhand)

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