जोशीमठ: लोग बोले क्या हम भी सीता मां की तरह समा जाएंगे पाताल में पता नहीं कैसा होगा प्रलय
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विकराल रूप लेते दरारों से पटे घर, बीच से फटती सड़कें, जमीन से स्वत: फूटती जल धारा और स्थानीय निवासियों की आंखों से बहती अविरल अश्रुओं की धारा, जिसमें अपने घरों को खोने के ग़म के साथ ही बच्चों के भविष्य की आंशका भी झलक रहा है। ये सभी विनाश के मुहाने पर खड़े उस जोशीमठ की दर्दनाक तस्वीरों को ही बयां कर रहे हैं जिसका जर्रा जर्रा अब थर्राने लगा है। लगातार विकराल रूप लेते इस भूधसाव को देखकर स्थानीय लोगों की रूह कांप रही है। लोगों को तबाही, बर्बादी और महाविनाश के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा है। लोगों की आंखों में जहां अपनी मातृभूमि को खोने का डर झलक रहा है वहीं शहर को इस कगार पर धकेलने वाले शासन प्रशासन के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश भी है। आज भले ही सरकार लोगों के साथ खड़े होने का दावा कर रही हों परन्तु इस विनाशलीला के कारणों की विस्तृत जांच में इस बात की पुष्टि हो ही जाएगी कि इससे लिए हमारी सरकारें भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। खैर यह तो भविष्य के गर्भ में है कि हमने किन कारणों से इस विनाशलीला को आमंत्रित किया है परन्तु वर्तमान में स्थानीय लोगों के मुख से निकलते ये शब्द जोशीमठ की भयावहता को बयां कर रहे हैं कि क्या हम भी सीता मां की तरह पाताल में समा जाएंगे। ऐसे में यह पूछना ग़लत नहीं होगा कि जोशीमठ कि धरती जिस प्रलय की ओर संकेत कर रही है वह विनाशलीला आखिर कितना नुक़सान पहुंचाएगी।
(Joshimath News Today)
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गौरतलब है कि विगत कई दिनों से जोशीमठ की धरती में भू धंसाव लगातार बढ़ता ही जा रहा है। स्थानीय प्रशासन द्वारा किए हालिया सर्वे के मुताबिक 600 से अधिक घरों में दरारों की पुष्टि हो चुकी है। इन दरारों की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है जहां लोग अब अपने घरों में जाने से भी डरने लगे हैं वहीं स्थानीय प्रशासन ने भी इन घरों को अब रहने लायक नहीं पाया है। ऐसे में प्रभावित परिवारों को विस्थापित करने की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। आपको बता दें कि बीते बीते रोज जहां सिंहधार वार्ड मे मां भगवती का मंदिर ढह गया था वहीं अब ज्योर्तिमठ परिसर सहित शंकराचार्य माधव आश्रम मंदिर के शिवलिंग में भी दरारें आ गई है। इतना ही नहीं परिसर के अन्य भवनों, लक्ष्मी नारायण मंदिर के आसपास भी बड़ी बड़ी दरारें देखने को मिल रही है। इसके अतिरिक्त आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी स्थित नृसिंह मंदिर परिसर में भी दरारें आ गई हैं। यह वही जगह है जहां बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद शंकराचार्य की गद्दी में विराजमान रहती है। ऐसे में संकटग्रस्त जोशीमठ के हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। वैज्ञानिकों की मानें तो अब जोशीमठ के अस्तित्व को बचाना असंभव है। जियोलॉजिस्ट एसपी सती ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा है कि इसमें बहुत देर हो चुकी है। अब शायद ही जोशीमठ का अस्तित्व लंबे समय तक बरकरार रह पाएगा। ऐसे में यह सवाल खड़ा होना लाजिमी है कि क्या जोशीमठ पाताल के गर्भ में समा जाएगा?
(Joshimath News Today)
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सुनील चंद्र खर्कवाल पिछले 8 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे राजनीति और खेल जगत से जुड़ी रिपोर्टिंग के साथ-साथ उत्तराखंड की लोक संस्कृति व परंपराओं पर लेखन करते हैं। उनकी लेखनी में क्षेत्रीय सरोकारों की गूंज और समसामयिक मुद्दों की गहराई देखने को मिलती है, जो पाठकों को विषय से जोड़ती है।
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