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उत्तराखण्ड आन्दोलन के प्रबल नायक डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट के निधन से प्रदेश हुआ स्तब्ध





उत्तराखण्ड में जल , जंगल और धरा की लड़ाई लड़ने वाले और उत्तराखण्ड आन्दोलन के एक प्रबल नायक डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट अब हमारे बीच नहीं रहे। उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और राज्य आंदोलनकारी डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट का शनिवार तड़के चार बजे अपने अल्मोड़ा स्थित आवास पर निधन हो गया। वहीं उनके निधन से परिवार में कोहराम मचा हुआ है। वह 71 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से शुगर और गुर्दे की तकलीफ से परेशान थे। हाल ही में उनका एम्स में भी इलाज चला था, जिसके बाद वह अपने घर पर ही स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे। शनिवार दोपहर को अल्मोड़ा में उनके पार्थिव शरीर को जनवादी गीतों के साथ उन्हें हजारों लोगों ने विश्व नाथ घाट पर अंतिम विदाई दी। उनकी अंतिम यात्रा उनके निवास स्थान से सुबह 11 बजे शुरू हुई, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शरीक हुए।




जन्म और राजनीयिक सफर – उत्तराखंड जनसंघर्ष वाहिनी के अध्यक्ष रहे बिष्ट का जन्म 4 फरवरी 1947 में अल्मोड़ा के खटल गांव (स्याल्दे) में हुआ था। उनका राजनीतिक सफर 1972 में अल्मोड़ा कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष के तौर पर शुरू हुआ। उस समय छात्रसंघ अध्यक्ष बनने के लिए पूरा सिनेमा हॉल बुक कर छात्रों को फिल्म दिखाते थे, तब शमशेर केवल 50 रुपये खर्च कर छात्रसंघ अध्यक्ष बन गए थे। डॉ बिष्ट ने पर्वतीय युवा मोर्चा, उत्तराखंड लोकवाहनी के संस्थापक होने के साथ नशा नहीं रोजगार दो, वन बचाओ समेत राज्य आंदोलन में सक्रिय रहे। साथ ही नदियों को बचाने व बड़े बांधों के खिलाफ जिंदगी भर संघर्षरत रहे।





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नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन में वह 40 दिन जेल में रहे। जंगलों की नीलामी के खिलाफ 27 नवंबर 1977 को नैनीताल में हुए प्रदर्शन में वह आगे रहे। इस प्रदर्शन के बाद रहस्यमय तरीके से नैनीताल क्लब जलकर खाक हो गया था। जब पौड़ी में जुझारू पत्रकार उमेश डोभाल की हत्या हुई तो पौड़ी से लेकर दिल्ली तक शराब माफिया मनमोहन सिंह नेगी का खौफ था और कोई भी उसके खिलाफ बोल नहीं रहा था। ऐेसे में अल्मोड़ा से डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट और रघु तिवारी ने आकर खौफ के सन्नाटे को तोड़ते हुए पौड़ी की सड़कों पर मनमोहन के खिलाफ नारे लगाये और उमेश डोभाल के हत्यारों को पकड़ने के लिये आंदोलन को तेज किया।वह एक ऐसी शख्सियत थे, जो कि सत्ता के दमन से कभी नहीं डरे और हमेशा जनता के पक्ष में आवाज बुलंद करते रहे। डॉ. बिष्ट के निधन से  से पूरा उत्तराखण्ड स्तब्ध है। उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन में उनके योगदान हमेशा स्मरणीय रहेंगे।

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