उत्तराखंड: 21 वर्षों बाद भी इन बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहा पहाड़, नेताजी से जरूर पूछिए ये सवाल
हम यह भी जानते हैं कि हर विषय का एक सीमित दायरा होता है। यह असंभव सा प्रतीत होता है कि जो शिक्षक गणित विषय की अव्वल दर्जे की शिक्षा देता है वह अन्य विषयों में भी उतना ही पारंगत हो। ऐसे में छात्र-छात्राए भी एक विषय में तो पारंगत हो जाते हैं परन्तु अन्य विषयों में उनकी दक्षता केवल पासिंग मार्क्स तक ही रह जाती है। सीमित ज्ञान के कारण वह प्रतियोगी परीक्षाओं में शहरी क्षेत्रों के छात्रों के समक्ष कहीं ठहर नहीं पाते। यहां हम यह नहीं कह रहे हैं कि पहाड़ के छात्रों में कोई हुनर नहीं है, या उनमें सीखने की ललक नहीं है। क्योंकि ऐसा होता तो पहाड़ से शिक्षा प्राप्त करने वाले युवा सफलता के ऊंचे मुकाम पर नहीं पहुंच पाते। परंतु एक सच्चाई यह भी है कि कुछ होनहार युवाओं को छोड़ दिया जाए तो पहाड़ के अधिकांश बेटे शिक्षा व्यवस्था की खामियों की भेंट चढ़ रहे हैं। इतना ही नहीं राज्य में कई ऐसे गांव भी है जहां बच्चों को अपनी जान जोखिम में डालकर विद्यालय तक पहुंचना पड़ता है।
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ऐसे में बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से पहाड़ के वाशिंदे गांवों को छोड़कर बड़े शहरों का रुख कर रहे हैं। उधर दूसरी ओर यह कहना बिल्कुल भी ग़लत नहीं होगा कि छोटे-बड़े सभी मंचों से बात-बात पर पलायन रोकने का राग अलापने वाली उत्तराखण्ड की अब तक की किसी भी सरकार या किसी भी राजनेता ने इस विषय पर बात करना भी उचित नहीं समझा है क्योंकि यदि सरकारों द्वारा पहाड़ की शिक्षा व्यवस्था को बदलने का प्रयास किया गया होता तो राज्य गठन के 21 वर्षों बाद भी माता-पिता को बच्चों के सुनहरे भविष्य की कामना लेकर गांव से पलायन नहीं करना पड़ता। इस विषय पर आप भी सोचिए, गहन चिंतन मनन कीजिए और चुनाव अभियान में वोट मांगने आने वाले सभी प्रत्याशियों, उनके समर्थकों से इसके बारे सवाल भी अवश्य कीजिए। यह आपका हक भी है और एक जागरूक नागरिक होने के नाते आपके वोट की सबसे बड़ी क़ीमत भी यही है।
(Uttarakhand Assembly Election 2022)
ये तो पहाड़ की महज एक समस्या है। पहाड़ में ऐसे अनेकों मुद्दे हैं जिन्हें लेकर गांव में रहने वाले लोगों को आए दिन मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। पहाड़ की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था, सड़क व्यवस्था, पलायन आदि अनेक दंश है जिनके बारे में हम अपने आगामी आलेखों के माध्यम से आपको अवगत कराते रहेंगे, क्योंकि मीडिया जगत से जुड़े होने के कारण समाज को जागृत करना, उनकी समस्याओं को अंधी गूंगी सरकारों तक पहुंचाना ही तो हमारा परम कर्तव्य है। पढ़ते रहिए देवभूमि दर्शन…