राज्य सरकार और मोदी की महत्वाकांक्षी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन परियोजना में बनने वाले रेलवे स्टेशनों में उत्तराखण्ड की पर्वतीय संस्कृति की झलक नजर आएगी। ये उत्तराखण्ड की संस्कृति और पर्यटन के प्रचार प्रसार को बढ़ावा देने के लिए खुशी की बात है, की प्रदेश सरकार ने रेल विकास निगम से इस रेल मार्ग पर बनने वाले सभी रेलवे स्टेशनों को पर्वतीय शैली में बनाने को कहा है। रेल विकास निगम ने उनके इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया है। वैसे ऋषिकेश में इस परियोजना का पहला रेलवे स्टेशन तैयार भी हो चूका है जिसे न्यू ऋषिकेश स्टेशन नाम दिया गया है।
बता दे की सरकार ने तय किया है कि साल 2024 तक इस रेल नेटवर्क को पूरी तरह तैयार कर 2025 से इस पर ट्रेन चलानी भी शुरू कर दी जाएगी। कर्णप्रयाग रेल लाइन को पर्वतीय जिलों के साथ ही सामरिक दृष्टि से भी बेहद अहम माना जा रहा है। जिस से आर्थिकी स्थिति तो सुधरेगी ही, साथ में यह परियोजना दो अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से सटे इस हिमालयी राज्य के सीमांत क्षेत्रों में सामरिक स्थिति मजबूत करने में मददगार साबित होगी। कुल मिलाकर पलायन से बेहाल उत्तराखंड में रिवर्स पलायन के लिए इसे उत्तराखण्ड लाइफलाइन रेलवे परियोजना कह सकते है। इस मार्ग में वीरभद्र, न्यू ऋषिकेश, शिवपुरी, बयासी, देवप्रयाग, मलेथा, श्रीनगर, धारी देवी, रुद्रप्रयाग, घोलतीर, गौचर व कर्णप्रयाग 12 रेलवे स्टेशन हैं।
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पर्वतीय शैली में तैयार होंगे रेलवे स्टेशन – इस रेल परियोजना की सबसे खास बात तो ये है की सरकार की इच्छा इस रेल लाइन पर पड़ने वाले स्टेशनों को पर्वतीय स्वरूप देने की है। इसलिए इन्हें पर्वतीय शैली में तैयार किया जाएगा। रेल विकास निगम की इच्छा इन सभी रेलवे स्टेशनों में उत्तराखंड की पर्वतीय संस्कृति को प्रस्तुत करने की है। इसके लिए इन रेलवे स्टेशनों पर प्रदेश के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों, पर्यटन स्थलों व संस्कृति आदि को दर्शाया जाएगा। हालांकि, यह सभी कार्य काष्ठ (लकड़ी) के न होकर निर्माण कार्यो में प्रयुक्त होने वाली निर्माण सामग्री से ही किए जाएंगे। रेल विकास निगम ने न्यू ऋषिकेश रेलवे स्टेशन को इस तर्ज पर विकसित करने का काम भी शुरू कर दिया है। इस रेलवे स्टेशन का गुबंद केदारनाथ जी तरह डिजाइन किया गया है।