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Uttarakhand: girija devi temple Garjiya Devi shailputri Avtar ramnagar history and worship
Image : सांकेतिक फोटो ( Garjiya Devi shailputri Avtar)

Uttarakhand

नैनीताल

उत्तराखंड में मां गर्जिया देवी को पूजा जाता है शैलपुत्री हिमालय की पुत्री पार्वती के रुप में…

Garjiya Devi shailputri Avtar : हिमालय पुत्री उमा पार्वती गिरिराज की कन्या है मां गिरिजा, देवभूमि में गर्जिया देवी को पूजा जाता है शैलपुत्री के रूप में, रामनगर से 12 दूर है स्थित….              Garjiya Devi shailputri Avtar: देवभूमि उत्तराखंड में अनेकों ऐसे मंदिर है जो देवियों को समर्पित है जहाँ पर अक्सर नवरात्रियों के दौरान सभी भक्तों का माँ के दर्शन व आशीर्वाद पाने के लिए हुजूम उमड़ा रहता है। उन्हीं में से एक प्रसिद्ध मंदिर नैनीताल जिले के रामनगर में स्थित है मां गर्जिया देवी का मंदिर जिन्हे हिमालय की पुत्री शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि देवी गिरिजा गिरिराज हिमालय की पुत्री है जो भगवान शिव की अर्द्धागिनी है। दरअसल यह मंदिर एक छोटी सी पहाड़ी पर बना हुआ है जहाँ की प्राकृतिक सौंदर्यता और खूबसूरत वातावरण हर किसी का मन मोह लेता है।

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बता दें गर्जिया देवी मंदिर जिसे गिरिजा देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है ये मन्दिर नैनीताल जिले के ढिगला रोड पर रामनगर से लगभग 15 km की दूरी पर स्थित है जो एक छोटी सी पहाड़ी के ऊपर बना हुआ। यह मन्दिर बेहद खूबसूरत दिखाई देता हैं और यहाँ का वातावरण शांति एवं रमणीयता का एहसास दिलाता है। वैसे तो सभी मन्दिर बेहद खास होते है लेकिन इस मन्दिर की खासियत और इतिहास इसे और भी खास और बेहद खूबसूरत बनाता है । गिरिजा के दो रूप माने जाते हैं जिनमें से पहला रूप भगवान शिव की अर्धांगिनी गौरा और उमा अथवा गिरिजा तथा दूसरा असुरों को नष्ट करने वाला स्वरूप माना जाता है ।बताते चलें यह मंदिर ढिकुली गांव से 3 किलोमीटर आगे कोसी नदी के बीचों बीच बने एक टापू के ऊपर स्थित है।

गर्जिया माता मंदिर का इतिहास

गर्जिया माता मन्दिर का इतिहास बहुत पौराणिक माना जाता है यहां कुर्मांचल की सबसे प्राचीन बस्ती ढिकुली थी जहां पर वर्तमान समय में रामनगर बसा हुआ है| कोसी के किनारे बसी इस नगरी का नाम तब बैराड़ बदन या परत नगर था कत्यूरी राजाओं के आने से पूर्व यहां पहले गुरु राजवंश के राजा राज करते थे जो प्राचीन इंद्रप्रस्थ आधुनिक दिल्ली साम्राज्य की छत्रछाया में रहते हैं। गर्जिया क्षेत्र का लगभग 3000 वर्षों का अपना इतिहास रहा है, प्रख्यात कत्यूरी राजवंश, चंद्र राजवंश गोरख वंश विशेष है इन सभी ने यहां की पवित्र भूमिका सुख भोगा है। वर्ष 1940 से पूर्व यह भयंकर जंगलों से भरा पड़ा था सर्वप्रथम जंगल जंगलात विभाग के कर्मचारियों और कुछ लोगो द्वारा टीले पर मूर्ति को देखा गया था | जंगलात के तत्कालीन बड़े अधिकारी भी यहां पर आए कहा जाता है की टीले के पास मां दुर्गा का वाहन शेर भयंकर गर्जना किया करता था कई बार शेर को इस टीले की परिक्रमा करते हुए भी लोगों द्वारा देखा गया है। जिस टीले पर गर्जिया माता मंदिर स्थित है वह कोसी नदी की बाढ़ में कहीं ऊपर से बहकर आ रहा था, मंदिर को टीले के साथ बहते हुए देख भैरव देव द्वारा उसे रोकने का प्रयास किया गया ” थि रौ, बहना” थि रौ, अर्थात ठहरो बहन ठहरो यहां पर मेरे साथ निवास करो तभी से गर्जिया में देवी उपटा में निवास कर रही है। माना जाता है कि इस मंदिर में जो एक बार आता है उसकी मनोकामना माता जरूर पूरी करती है। यहां पर स्त्रियां जाकर अटल सुहाग की कामना करती है तथा निसंतान दंपती संतान प्राप्ति के लिए माता के चरणों में झोली फैलाती हैं।यहीं पर भैरवनाथ का मंदिर भी स्थित है जो बिना देवी की पूजा अधूरी मानी जाती है। ये मन्दिर माता पार्वती को समर्पित हैं। गिरिराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उन्हें गिरजा नाम से बुलाया जाता है ।

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