क्या है मूल निवास 1950, उत्तराखंड में लागू स्थाई निवास से कैसे है अलग ,जरूर जानिए????
Sthayi Niwas praman patra in uttarakhand : नित्यानंद स्वामी सरकार ने स्थाई निवास के साथ ही मूल निवास 1950 को भी किया था लागू….
Sthayi Niwas praman patra in uttarakhand
अब बात आती है कि जब उत्तरांचल की अंतरिम सरकार ने स्थाई निवास के साथ ही मूल निवास 1950 को लागू किया था, तो आज यह केवल स्थाई निवास तक ही कैसे सीमित रह गई। दरअसल वर्ष 2010 में तत्कालीन भाजपा सरकार के समय उत्तराखण्ड के उच्च न्यायालय एवं देश के सर्वोच्च न्यायालय में मूल निवास को लेकर दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई। हालांकि इन दोनों ही याचिकाओं में राज्य गठन के समय उत्तराखण्ड में रह रहे लोगों को यहां का मूल निवासी घोषित करने की मांग की गई थी। जिस पर फैसला देते हुए दोनों ही अदालतों ने राष्ट्रपति के नोटिफिकेशन की बाधय्ता को बनाए रखते हुए मूल निवास 1950 को जारी रखने का आदेश दिया।
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अगस्त 2012 में हाईकोर्ट ने पलटा था फैसला, तभी से बंद हो गई उत्तराखण्ड में मूल निवास 1950 की व्यवस्था (Mool niwas Praman patra Uttarakhand)…
Mool niwas Praman patra Uttarakhand
परंतु वर्ष 2012 में जब उत्तराखण्ड में कांग्रेस की सरकार थी, उस समय अगस्त 2012 में इसी तरह की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए नैनीताल हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने अदालतों की पूर्व आदेशों को पलटकर फैसला सुनाया कि राज्य गठन यानी 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड में रह रहे सभी लोगों को ही यहां का मूल निवासी माना जाएगा। हालांकि यह सिंगल बेंच का फैसला था, लेकिन तत्कालीन सरकार ने न तो इसे डबल बेंच में चुनौती दी और न ही सुप्रीम कोर्ट की ओर रुख किया। इसके बाद से ही उत्तराखंड सरकार ने मूल निवास प्रमाण पत्र बनाना भी बंद कर दिया और उत्तराखंड में केवल स्थाई निवास प्रमाण पत्र को लागू कर दिया। कानून के तकनीकी पहलुओं की जानकारी रखने वाले जानकारों की मानें तो सिंगल बेंच द्वारा दिए इस फैसले में कई खामियां हैं, यदि इसे अदालत में चुनौती दी जाएगी तो अदालत अपना पूर्ववती फैसले को ग़लत बताते हुए मूल निवास 1950 की अवधारणा को पुनः स्पष्ट कर सकती है। क्योंकि देश के अन्य राज्यों में अभी भी मूल निवास 1950 लागू है, अर्थात 1950 से उस राज्य में रहने वाले लोगों के बच्चों को ही उस राज्य का मूल निवासी माना जाता है।