उत्तराखंड में ऐपण राखियां सजेंगी भाईयों के कलाईयों पर हो रही है बाजार में डिमांड
ऐपण लोक कला सम्पूर्ण उत्तराखंड की प्राचीन लोक कला है जिसका प्रयोग पहले मांगलिक कार्यों, धार्मिक अनुष्ठानों, विशेष त्योहारों और शादी समारोह जैसे खास मौकों पर किया जाता था। इस विधि द्वारा घर के आंगन,देहरी व दीवारों को सजाया जाता था। फिर धीरे-धीरे बाजार में यह स्टेशनरी, फाइल कवर, फोल्डर पेन, स्टैंड, दुपट्टा, बैग, पूजा की थाली, नेम प्लेट, चाबी का छल्ला, पोस्टर समेत अन्य कई उत्पादों को प्रिंट करने के रूप में प्रयोग किया जाने लगा।लेकिन धीरे-धीरे यह कला सिर्फ इन्हीं चीजों तक सीमित नहीं बल्कि रक्षाबंधन त्यौहार के मौकों पर पहनाई जाने वाली ऐपण राखियों के लिए भी बाजार में प्रचलित होने लगा है।
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दरअसल इस विधि द्वारा कुमाऊं की दो बेटियां पिथौरागढ़ की रहने वाली ममता जोशी और रामनगर की रहने वाली मीनाक्षी खाती द्वारा ऐपण राखियां बनायी जा रही है। इन दोनों कुमाऊं की बेटियों ने इस कला का प्रयोग सिर्फ पुराने चीजों तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि राखियां बनाकर इसको नया रूप दे दिया और इसे सभी के द्वारा खूब सराहा जा रहा है। ऐपण विधि द्वारा बनाई गई राखियां दिखने में काफी आकर्षक है जिस कारण हर किसी को इसकी खूबसूरती और कला आकर्षित कर रही है और बाजार में इसकी अच्छी खासी डिमांड आ रही है। कुमाऊं की इन दोनों बेटियों के मेहनत और ऐपण कला को नए रूप में प्रदर्शित करने के कारण आज इन्हें उत्तराखंड में ऐपण गर्ल के नाम से भी जाना जाता है।
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आपको बता दें कि ऐपण कला कुमाऊं व गढ़वाल की सदियों से ही प्रचलित गौरवमई परंपरा रही है इस विधि में लाल मिट्टी और पिसे हुए चावल के पानी का प्रयोग किया जाता है जिसके लेप से वस्तु को रंगीन बनाया जाता है, जिससे कि वह काफी आकर्षक लगती है। आज उत्तराखंड में बिकने वाली ऐपण राखियां उत्तराखंड तक ही नही बल्कि भारत के अन्य राज्यों और शहरों जैसे दिल्ली, लखनऊ, मुंबई इत्यादि में भी बिकने लगी है और इसे खूब पसंद भी किया जा रहा है। मीनाक्षी खाती द्वारा बनाए जाने वाली राखी से न सिर्फ भाइयों की कलाइयां सजी है बल्कि इससे हमारी लोक संस्कृति और लोकभाषा-मातृभाषा को भी बढ़ावा मिला है। मीनाक्षी ने अपनी राखियों में भाइयों के लिए गढ़वाली कुमाऊनी शब्दों जैसे भूला, भेजी, दादा, ददी, ददा जैसे शब्दों का प्रयोग भाई के प्रति बहन के स्नेह के लिए किया है। जिस कारण रक्षाबंधन पर पहने जाने वाली यह राखियां और भी आकर्षक हो गई है। उन्होंने अपनी कला से विशेष राखियां तैयार की हैं।
उत्तराखण्ड : इस रक्षाबंधन पर भाई – बहनों के कलाइयों पर मीनाक्षी की ऐपण राखियाँ बढ़ाएगी शोभा
सिर्फ ममता या मीनाक्षी ही नहीं बल्कि धीरे-धीरे कुमाऊं में कई स्कूलों एवं कॉलेजों की लड़कियां इस कला में अपना हुनर दिखा रही है और इसकी बाजार में अच्छी खासी भी डिमांड होने लगी है और लोगों को इसके द्वारा बनी हुए चीजें और राखियां बहुत पसंद भी आ रही है जिस की भरमार कुमाऊं के बाजारों जैसे कि हल्द्वानी नैनीताल अल्मोड़ा आदि में दिखने लगी है और इन बाजारों में ऐपण राखियों से बाजार भी सजने लगा है।
तो यह थी उत्तराखंड की बाजारों में बिकने वाली ऐपण विधि से तैयार की गई ऐपण राखियां। जो कि आज उत्तराखंड में ही नही बल्कि देश विदेशों में भी खूब पसंद की जा रही है।