देवभूमि उत्तराखण्ड अब पलायन भूमि में तब्दील हो चुकी है अगर ऐसा कहा जाए तो इसमें कोई संदेह नहीं है , जी हा आंकड़े गवाह है इस तथ्य के की विगत 15 से 16 सालो में उत्तराखण्ड से पलायन दर में कितनी तेजी आई है। ये तो साफ है की उत्तराखण्ड के पर्वतीय जनपदों से मूलभूत सुविधाओं के अभाव से लोग पलायन कर रहे हैं। अगर बात करे अल्मोड़ा जनपद की तो वर्ष 2001 से 2011 तक दस सालों में करीब 70 हजार लोग पैतृक गांव से पलायन कर चुके है। इतना ही नहीं 646 पंचायतों से 16207 लोगों ने स्थायी रूप से गांव छोड़ दिया है। इसका खुलासा पलायन आयोग की ताजा रिपोर्ट में हुआ है। वर्ष 2001 से 2011 तक जनपद के 1022 ग्राम पंचायतों में 53611 लोगों ने पूर्ण रूप से पलायन नहीं किया है। ये लोग समय-समय पर अपने पैतृक गांव आते हैं। जबकि 646 पंचायतों में 16207 लोगों ने स्थायी रूप से पलायन किया है। अब इन लोगों के दोबारा वापस गांव लौटने की संभावनाएं नहीं हैं।
सीएम की अध्यक्षता में पलायन आयोग का खुलासा : बता दे की सोमवार को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में सीएम आवास पर पलायन आयोग की दूसरी बैठक आयोजित की गई। बैठक में मुख्यमंत्री ने अल्मोड़ा जनपद की पलायन रिपोर्ट का विमोचन किया। रिपोर्ट के अनुसार पिछले दस सालों में ,भिकियासैंण, चौखुटिया, सल्ट, स्याल्दे विकासखंड से सबसे ज्यादा लोगों ने पलायन किया है। इन ब्लाकों के कई गांवों में सड़क, पेयजल, बिजली, स्वास्थ्य और आजीविका के मख्य साधन नहीं है, जिससे लोग जनपद मुख्यालय और प्रदेश के अन्य शहरी क्षेत्रों में जाकर बस गए हैं।
किस वजह से हुआ पलायन
2011 के बाद जनपद के 80 गांवों में मूलभूत सुविधाओं के अभाव में 50 प्रतिशत आबादी कम हुई है।
सड़क, असुविधा की वजह से 63 गांवों में पलायन
बिजली असुविधा की वजह से 11 गांवों में पलायन
पेयजल असुविधा की वजह से 34 गांवों में पलायन
71 गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की असुविधा की वजह से 50 प्रतिशत आबादी घटी है।