Diya Arya Writer Bageshwar: आर वी पब्लिकेशन से जल्द प्रकाशित होने जा रही है दिया की एक और किताब, छोटी सी उम्र में बेटियों, महिलाओं की बड़ी समस्याओं को उजागर कर रही है उत्तराखण्ड की ये बेटी….
Diya Arya Writer Bageshwar
देश प्रदेश के दूरस्थ क्षेत्रों में आज भी बेटियों को अभिशाप माना जाता है। धीरे धीरे भले ही समय बदल रहा हों परंतु राज्य के दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी हालात जस के तस बने हुए हैं। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज भी बाल विवाह, भ्रूण हत्या एवं बेटियों महिलाओं से भेदभाव की खबरें अक्सर सामने आती हैं। वास्तव में यह समस्या पहाड़ के लिए अपने आप में सबसे बड़ा अभिशाप है। आज हम आपको राज्य की एक ऐसी होनहार बेटी से रूबरू कराने जा रहे हैं जो छोटी सी उम्र में अपनी कलम का जादू बिखेरकर महिला समाज की इन समस्याओं को उजागर करने का काम कर रही है। जी हां… हम बात कर रहे हैं मूल रूप से राज्य के बागेश्वर जिले के कपकोट तहसील क्षेत्र की रहने वाली दिया आर्या की, जो एक बाल लेखिका हैं। इतनी छोटी उम्र में जब खेलने कूदने के दिन होते हैं उस समय से दिया ने समाज की बड़ी समस्या को समझना शुरू कर दिया इसी का सकारात्मक परिणाम है की आज उनके पास लेखनी का ऐसा हुनर है कि उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुके हैं।
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देवभूमि दर्शन से खास बातचीत:-
Diya Arya young Writer
देवभूमि दर्शन से खास बातचीत में दिया आर्या ने बताया कि वह एक बेहद सामान्य परिवार से ताल्लुक रखती है। उनकी माता का नाम कविता देवी और पिता का नाम रमेश राम है । जो गांव में ही खेतीबाड़ी कर अपने परिवार की आजीविका चलाते हैं। उन्होंने बताया कि वह राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय उत्तरौड़ा (कपकोट) से शिक्षा ग्रहण कर रहीं हैं। दिया कहती हैं कि उन्होंने 12 वर्ष की उम्र से लेखन कार्य शुरू कर दिया था। वह भविष्य में लेखन कला के क्षेत्र में ही अपना कैरियर बनाने की बात कहते हुए कि बतौर शिक्षिका वह विघालयो में बच्चों को आलेख व कविताएं लिखना भी सिखाना चाहती है। एक लेखक बनने के शुरुआती दिनों को याद करते हुए दिया बताती है कि उन्हें लेखन कार्य शुरू करने की प्रेरणा उनकी मां से उस समय मिली थी, जब वह समाज के ताने और आलोचनाएं सुनकर थक गई थी।
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बातचीत में दिया बताती है कि बेटियों से भेदभाव पर आधारित उनकी एक और नई किताब ‘बेटियां वरदान या अभिशाप’, आर वी पब्लिकेशन से प्रकाशित हुई है। आपको बता दें कि इससे पूर्व भी उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। जिनमें मां प्रथम गुरु, अहसास, थका हुआ सफर, अंधेरा जग आदि शामिल हैं। अपनी इस उपलब्धि का श्रेय अपने माता-पिता एवं परिजनों को देते हुए दिया कहती हैं कि उन्हें इस कार्य में अपने परिवार का विशेष सहयोग मिल रहा है। इसके अतिरिक्त वह बहुत से सम्मेलनों, पुस्तक मेलों में आदि में भी प्रतिभाग कर चुकी हैं। जिनमें किताब कौतिक हल्द्वानी, किताब कौतिक रानीखेत , तरंग , हरफनमौला साहित्यिक गोष्ठि, हिंदी साहित्य गोष्ठी, मातृभाषा समूह आदि शामिल हैं।