उत्तराखण्ड: जसुली दताल की धर्मशाला होगी हेरिटेज में तब्दील, जानिए इनका इतिहास
उत्तराखण्ड (uttarakhand) :आज से लगभग पौने दो सौ साल पहले पिथौरागढ़ जिले के दारमा घाटी के दांतू गांव में रहती थी जसुली दताल..
करीब दो-ढ़ाई सौ साल पहले तीर्थयात्रियों एवं राहगीरों के रात्रि विश्राम के लिए जगह-जगह धर्मशालाओं का निर्माण कराने वाली पुण्यात्मा और उसकी ऐतिहासिक धरोहरें आज अपनी पहचान को तरस रही है। बात आज से लगभग पौने दो सौ साल पहले की है जब रं (शौका) समुदाय से ताल्लुक रखने वाली जसुली शौक्याणी ने अंग्रेज़ कमिश्नर रेमजे के कहने पर उत्तराखंड (uttarakhand) के कुमाऊं-गढवाल के साथ ही हिमाचल, नेपाल और तिब्बत में भी जगह-जगह इन धर्मशालाओं का निर्माण कराया था। जब तक जरूरत थी तो आम राहगीरों से लेकर बड़े बड़े अफसरों तक सभी ने इन धर्मशालाओं का उचित उपभोग किया परंतु आज यही नेकी की धरोहरें जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है लेकिन अब जल्द ही इन प्राचीन धरोहरों के दिन बहुरने वाले हैं। जी हां.. ऐतिहासिक रानी जसुली शौक्याणी की अल्मोड़ा-हल्द्वानी हाइवे पर खीनापानी में स्थित धर्मशाला को अब नई पहचान मिलेगी। इसे हैरीटेज के रूप में विकसित किया जाएगा। इसके साथ ही पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पर्यटन विभाग धर्मशाला के समीप ही बहने वाली कोसी नदी पर भी विशेष कार्य कराने जा रहा है।
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कुमांऊ की सेठाणी जसुली शौक्याणी:- शौका समुदाय से संबंध रखने वाली जसुली दताल, आज से लगभग पौने दो सौ साल पहले राज्य (uttarakhand) के कुमाऊं की (वर्तमान पिथौरागढ़ जिले के) दारमा घाटी के दांतू गांव में रहती थी। जसुली दताल यानि जसुली शौक्याणी अथाह धन सम्पदा की इकलौती मालकिन थी। विदित हो कि दारमा और निकटवर्ती व्यांस-चौदांस की घाटियों में रहने वाले रं या शौका समुदाय के लोगों का सदियों से तिब्बत के साथ व्यापार चलता रहता था। इसी कारण शौका समुदाय के लोग काफी धनी होते थे। लेकिन कहते हैं धन ही सब कुछ नहीं होता और ऐसा ही कुछ जसुली दताल के साथ भी हुआ। अथाह सम्पत्ति की इकलौती मालकिन अपनी बालि-उम्र में ही विधवा हो गई। नियति का कहर यही नहीं थमा और जसुली के इकलौते पुत्र की भी असमय मृत्यु हो गई। अब आंसू, अकेलापन और हताशा ही जसुली के संगी बनकर रह गए थे। इस एकाकी जीवन में किसी का भी मन डोल सकता है कि अब यह अथाह संपत्ति किस काम की जब इसका कोई उत्तराधिकारी ही ना हो। ऐसा ही कुछ जसुली के साथ भी हुआ और वह एक दिन अपनी जिंदगी से हताश होकर एक दिन अपना सारा धन धौलीगंगा नदी में बहाने निकल पड़ी।
तत्कालीन कुमाऊँ कमिश्नर हैनरी रैमजे के समझाने पर जसुली ने किया था जगह-जगह धर्मशालाओं का निर्माण:- कहते हैं ना कि सब कुछ हमारी इच्छा से नहीं होता और ऐसा ही कुछ जसुली शौक्याणी के साथ भी घटित हुआ। दरअसल अपने जीवन से निराश और हताश होकर एक कठोर फैसला लेने के बाद जसुली जब अपनी सारी संपत्ति धौलीगंगा में प्रवाहित करने जा रही थी तो संयोग से उसी समय तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नर हेनरी रैमजे का काफिला उसी दुर्गम इलाके से गुजर रहा था। जब रैमजे को जसुली दताल के फैसले के बारे में पता चला तो वह दौडा-भागा जसुली के पास पहुंचा और उसे समझाने की भरसक कोशिश करने लगा। जसुली ने रोते-बिलखते इस कठोर फैसले के कारण अर्थात अपनी हताशा भरी जिंदगी की पूरी कहानी अंग्रेज अफसर को सुनाई जिस पर कुमाऊं कमिश्नर रैमजे ने जसुली को पैसे को नदी में बहा देने के बजाय किसी जनोपयोगी काम में लगाने का सुझाव दिया। कहा जाता है कि रैमजे का सुझाव जसुली को खूब पसंद आया और उसने अपने फैसले को त्याग दिया। इसके बाद उसने अपनी सारी संपत्ति कुमाऊं कमिश्नर को दे दी। कहा तो यह भी जाता है कि इस घटना के बाद दारमा घाटी से वापस लौट रहे अँगरेज़ अफसर के पीछे-पीछे जसुली का धन लादे बकरियों और खच्चरों का एक लंबा काफिला चला और इसी से कुमाऊं कमिश्नर ने उत्तराखण्ड (uttarakhand) के कुमाऊँ- गढ़वाल से लेकर हिमाचल, नेपाल-तिब्बत तक राहगीरों की सुविधा के लिए अनेक धर्मशालाओं का निर्माण करवाया।
मुगलों की सराय शैली में हुआ था धर्मशालाओं का निर्माण, इसी के बाद अन्य कई नामों से प्रसिद्ध हुई जसुली दताल:- कुमाऊं गढ़वाल से लेकर नेपाल-तिब्बत तक निर्मित इन धर्मशालाओं का निर्माण मुगलों की सराय शैली में किया गया था। तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नर रैमजे ने सम्पूर्ण कुमाऊं-गढवाल सहित नेपाल के महेन्द्रनगर और बैतड़ी जिलों के अलावा तिब्बत में भी ऐसी कुछ धर्मशालाओं का निर्माण करवाया था। कहा जाता है कि जसुली दताल की संपत्ति से निर्मित कुल धर्मशालाओं की संख्या 200 से अधिक थी। इन धर्मशालाओं में ठहरने के साथ ही पीने के पानी वगैरह की भी समुचित व्यवस्था थी। जसुली के इस नेक सत्कार्य ने उसे खासा सम्मान और एक नई पहचान दी। इसके बाद जसुली दताल को क्षेत्रवासी जसुली लला (अम्मा), जसुली बुड़ी और जसुली शौक्याणी जैसे नामों से पुकारने लगे। कहा जाता है कि एक ज़माने तक ये धर्मशालाएं ठीक-ठाक हालत में थी लेकिन समय के साथ-साथ ये धर्मशालाएं खंडहरों में बदलती गईं, फिलहाल इनमें से कुछ ही लगभग सौ-डेढ़ सौ संरचनाएं बची हैं जिनमें दो अल्मोड़ा हल्द्वानी हाईवे पर खीनापानी में भी स्थित है।
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अल्मोड़ा-हल्द्वानी हाइवे पर खीनापानी में स्थित है ऐतिहासिक धर्मशालाएं, ऐसा है धर्मशालाओं का स्वरूप-: जसुली दताल की संपत्ति से निर्मित ऐतिहासिक धर्मशालाओं में से कुछ अल्मोड़ा-हल्द्वानी हाइवे पर खीनापानी में भी स्थित है। अब इन धर्मशालाओं को एक नई पहचान मिलने जा रही है दरअसल पर्यटन विभाग का कहना है कि इसे एक हैरीटेज के रूप में विकसित किया जाएगा। इसके लिए पर्यटन विभाग तेजी से प्रयास भी कर रहा है। पर्यटन विभाग का कहना है कि इसके लिए रं समाज की मदद भी ली जाएगी। बता दें कि अल्मोड़ा-हल्द्वानी हाइवे के किनारे खीनापानी में स्थित धर्मशाला में दस कमरे हैं। जिनकी लंबाई व चौड़ाई चार फीट तथा गोलाकार ऊंचाई छह फीट है। देखरेख के अभाव में इनमें से कुछ कमरे क्षतिग्रस्त हो चुके हैं तो कुछेक आज भी दुरुस्त हैं, वहीं दूसरी धर्मशाला हाईवे से करीब सौ मीटर ऊपर स्थित है। इसमें करीब चार कमरे हैं। जिसकी लंबाई-चौड़ाई एवं ऊंचाई छः-छ: फीट है। हाईवे के ऊपर बनी धर्मशाला झाड़ियों से छिपी होने के कारण दिखाई नहीं पड़ती है। पर्यटन विभाग का यह भी कहना है कि बीस लाख रुपये से जर्जर हालत में पहुंच चुकी इन धर्मशालाओं को बेहतर रूप दिया जाएगा और इसके साथ ही रानी जसुली से जुड़ी ऐतिहासिक जानकारियां लोगों तक पहुंचाने के लिए एक संग्रहालय भी तैयार किया जाएगा।