Ramesh Babu Goswami Biography : पिता की विरासत को बखूबी से आगे बढ़ा रहे हैं उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक रमेश बाबू गोस्वामी, अपने गीतों के जरिए जीत रहे लोगों का दिल…
Ramesh Babu Goswami Biography उत्तराखंड में कई सारे प्रसिद्ध लोक गायक हैं जो राज्य की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उन्हीं में से एक प्रसिद्ध लोक गायक रमेश बाबू गोस्वामी भी है जो उत्तराखंड के पारंपरिक गीतों को नए ढंग से प्रस्तुत कर लाखों लोगों का दिल जीत रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के लोक गायक सांस्कृतिक पहचान को जीवित रखने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ले जाने का कार्य भी कर रहे हैं जो पूरे प्रदेश के लिए बेहद गर्व की बात है। रमेश बाबू गोस्वामी ने अपने प्रसिद्ध गीतों के माध्यम से देश ही नहीं बल्कि विदेशी लोगों को भी खूब थिरकाया है। दरअसल रमेश बाबू गोस्वामी अपने स्वर्गीय पिता गोपाल बाबू गोस्वामी की विरासत को बखूबी से आगे बढ़ा रहे हैं जो अपने पिता के द्वारा गाए हुए गानों को नया रूप देकर उसे नई पीढ़ी के सामने प्रस्तुत करने मे सफल रहे है।
Ramesh babu goswami Birth: बता दें रमेश बाबू गोस्वामी का जन्म 25 जून 1988 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया के चांदी खेत गांव में हुआ था। जो सुर सम्राट गोपाल बाबू गोस्वामी व मीरा गोस्वामी के सुपुत्र है। रमेश बाबू गोस्वामी की प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर में हुई इसके बाद उन्होंने राजकीय इंटर कॉलेज चैखुटिया से हाई स्कूल तथा इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की तत्पश्चात उन्होंने बी .ए व एम. ए की शिक्षा राजकीय महाविद्यालय नैनीताल से उत्तीर्ण की। अपने पिता के देहांत के बाद रमेश बाबू गोस्वामी ने विरासत को आगे बढ़ाया और गोपुली गीत के माध्यम से उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश विदेश में अपनी गायकी की अमिट छाप छोड़ी है। दुबई, मुंबई, दिल्ली उत्तराखंड में रमेश बाबू अपनी प्रतिभा को बेहतर तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं और अपने स्वर्गीय पिता का नाम रोशन कर रहे हैं। रमेश बाबू अभी तक कई सारे गीतों में अपनी आवाज दे चुके हैं जिनमें से चैमास एगो रे, लौटी आ रे अपणा यूं पहाड़, बांद अमरावती, पूंगरी माया, ओ घस्यारी, स्याली ओ रंगीली स्याली, तिलंगा तेरी लंबी लटी तथा हिन्दी गीत ‘सौंगन्ध मुझे इस मिट्टी की’ गीत प्रमुख है।
रमेश बाबू लोक गायक होने के साथ-साथ ताइक्वांडो के कुशल खिलाड़ी भी रहे हैं जिन्होंने 2003 में जनपद स्तर में दो बार गोल्ड पदक हासिल किए तथा राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भी दो बार गोल्ड पदक प्राप्त किए हैं। जिसके चलते उनका चयन नेशनल के लिए हुआ और उन्होंने मणिपुर में प्रतिभाग कर अंत विश्वविद्यालय में भी स्वर्ण पदक जीता। अन्य खेल कूदो मे भी वह 100 से ऊपर प्रथम पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। रमेश बाबू जब 11 वर्ष के थे तो उनके सिर से पिता का साया उठ गया था जिसके चलते वह अपने पिता को ज्यादा सुन ना सके। उनके पिता जब छुट्टी पर दो-चार दिन के लिए घर आते थे तो 24 घंटे का वक्त भी रमेश बाबू अपने पिता के साथ नहीं गुजार पाते थे क्योंकि उनके चाहने वालों की भीड़ घर पर उमड़ी रहती थी। जिस प्रकार से गोपाल बाबू गोस्वामी ने लाखों लोगों के दिलों में जगह बनाई थी ठीक उसी प्रकार से अब रमेश बाबू भी अपने पिता के पदचिन्हों पर चलकर लाखों लोगों का दिल जीत रहे हैं।