उत्तराखण्ड: अमर प्रेमकथा ‘राजुला मालुशाही’ पर आधारित नाटक ‘सुनपत शौके की च्येली’ का मंचन
रंगमंच विशेषज्ञ डाॅ सुवर्ण रावत ने कहा सुनपत शौके की च्येली का उत्तरांचलिय गीत-संगीत-नृत्य के साथ बच्चों का अभिनय सराहनीय था। दराँती से फ़सल काटती ग्रामीण महिलाएं, मेले के में चूड़ी, दुपट्टा, जलेबी, गुब्बारे से सज्जी दुकानें, चोंच में चिट्ठी लिए उड़ान भरती घुघुती (स्वप्न-दृश्य), बागेश्वर के मंदिर की पूजा-अर्चना जैसे बहुत से दृश्य सुश्री मीना पांडे के सफल निर्देशन में अपना प्रभाव छोड़ने में क़ामयाब रहे। रंगकर्मी राकेश शर्मा ने नाटक पर चर्चा करते हुए कहा- “हम जानते हैं कि रंगमंच यह जानने मे सहायक है कि हम कौन हैं? और क्या बन सकते हैं? मुझे इसी प्रक्रिया से कार्य करती दिखी मीना पांडे। इस कार्यशाला में उन्होंने एक कुमाऊँनी नाटक का निर्देशन किया जिसमे भाग लेने वाले बच्चे उत्तराखंडी ना होकर अन्य प्रदेशों से थे। मुझे यह कहते कोई दुविधा नही है कि ये बच्चे हमारी आज की पीढी से बेहतर कुमाऊँनी बोल रहे थे, मीना जी इस कार्यशाला मे बच्चों को यह समझाने में सफल रही कि जो आप जानते हो और जो आप नही जानते हो उसे पूरी ईमानदारी से स्वीकारो, बच्चे उसे स्वीकारते दिखे। ध्वनि प्रभाव व वेश भूषा से नाटक ने दर्शको को बाँध कर रखा।”
(rajula malushahi story Hindi)
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लोकगायक शिव दत्त पंत ने कहा- “सुनपत शौके की च्येली” कुमाऊनी नाटक की बहुत सुंदर प्रस्तुति स्कूल के बच्चों द्वारा दी गई, कुमाऊनी बोली में सुंदर डायलॉग सुनने को मिला और अपने उत्तराखंड की संस्कृति की सुंदर झलक देखने को मिली।” वहीं वरिष्ठ कवि रघुबरदत्त शर्मा ‘राघव’ ने नाटक देखने के बाद अपने विचार रखते हुए कहा “अभिभूत हूँ उत्कृष्ट निर्देशिका के रुप में मीना पाण्डेय का कर्म काैशल देखकर…वास्तव में गिरीश बिष्ट हंसमुख की कथा “सुनपत शौके की च्येली” का जितना सुंदर नाट्य रुपांतरण कर अपने सहयोगी भुवन गोस्वामी के साथ थियेटर तक इन्होनें उतारा है, उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। यह भी बताते चलें कि सुनपत शौके की च्येली नाट्य प्रस्तुति में अपने कुशल निर्देशन का दिग्दर्शन कराने वाली मीना पांडे एक प्रतिष्ठित कवियत्री ,साहित्यिक पत्रिका की संपादक और संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार से जूनियर फैलोशिप भी प्राप्त कर चुकी हैं। उत्तराखंड की प्रतिष्ठित संस्था मोहन उप्रेती शोध संस्थान की आप संस्थापक सदस्य भी है।
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