पांच माह बाद भी राज्य के लापता हवलदार राजेंद्र सिंह नेगी (Rajendra Negi) की कोई खबर नहीं, इतने संवेदनशील मुद्दे पर आखिर क्यों शासन-प्रशासन और राष्ट्रीय मीडिया है मौन???
आज समूचा उत्तराखण्ड हैरान और परेशान हैं। परेशान इसलिए कि आज एक हफ्ते बाद भी उसके जाबांज सपूत लापता हवलदार राजेंद्र सिंह नेगी (Rajendra Negi) की कोई खबर नहीं है और हैरान इसलिए कि देवभूमि की धरती से उत्तराखंड को सैन्य धाम का दर्जा देने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित पक्ष-विपक्ष के सभी नेता इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। इस चुप्पी पर सवाल तो बनता ही है कि क्या देश की सेना से प्रेम दिखावा था? क्या देश के सैनिक की कोई अहमियत नहीं है। सबसे खास बात तो यह है कि छोटी-छोटी बातें अपने ट्विटर अकाउंट से शेयर करने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर ना तो कुछ ट्विट किया है और ना ही वह कुछ बोले ही है। अब हम तो पूछेंगे कि क्या देश के हुक्मरान इसलिए चुप है कि अभी कहीं चुनाव नहीं है? जहां राज्य के नेताओं सहित पूरी भारत सरकार कानों में उंगली डाल कर सोई हुई है वहीं राजेंद्र के परिजनों के आंखों से नींद का नामोनिशान गायब है। गौरतलब है कि 11वीं गढ़वाल राइफल्स में हवलदार के पद पर तैनात एवं राज्य के चमोली जिले के पजियाणा गांव निवासी राजेंद्र सिंह नेगी बीते 9 जनवरी को बर्फ में फिसलकर लापता हो गए थे और तब से उनकी कोई खबर नहीं है।
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अखबार के एक टुकड़े तक सिमट कर रह गई उत्तराखण्ड के जवान के लापता होने की खबर:-
जनता को सरकार से उम्मीद होती है और ऐसी ही कुछ उम्मीद राजेंद्र के परिजनों को भी दिल्ली की गद्दी पर बैठे हुक्मरानों से थी लेकिन ना तो अभी राजेंद्र की कोई खबर आई है और ना ही हुक्मरानों का कोई संदेश… सबसे बड़ी दुःख की बात तो यह है कि जहां प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत एक बार केन्द्र सरकार से बात करके चैन की नींद सो रहे हैं वहीं नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश और सोशल मीडिया के बाजीगर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अभी तक इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। कोई उत्तरायणी मेले में ढोलकी बजाकर, झोडा-चांचरी गाकर मेलों की शोभा बढ़ाने में व्यस्त हैं तो कोई अपने नए प्रदेश की अध्यक्ष की ताजपोशी करने में। देश के वीर सपूत हवलदार राजेंद्र के लापता होने की खबर आज केवल राज्य में प्रकाशित दैनिक अखबारों के एक छोटे से टुकड़े तक ही सीमित रह गई। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के नाम से जाना जाने वाला राष्ट्रीय मीडिया भी इस संवेदनशील मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। ना तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के किसी भी न्यूज चैनल पर यह खबर चल रही है और ना ही इस मुद्दे पर सरकार से कोई सवाल पुछा जा रहा है। नेताओं के बाद सवाल राष्ट्रीय मीडिया से भी पूछे जाने चाहिए कि क्या मुद्दे टीआरपी तय होने के बाद दिखाएं जाते हैं? सबकी जुबां पर बस अब एक सवाल है, कि क्या विंग कमांडर अभिनन्दन और हवलदार राजेंद्र के लापता होने में कोई अंतर है?