uttarakhand: गर्भवती महिलाओं के लिए मौत का कुआं बना पिथौरागढ़ का महिला अस्पताल..
राज्य(uttarakhand) के पिथौरागढ़ जिले का महिला अस्पताल, यह वही अस्पताल है जिसमें अभी कुछ दिन पहले ही आपरेशन के तीन दिन बाद एक गर्भवती महिला नीलम (नेहा) बोरा की मौत हो गई थी। आज एक बार फिर से यह महिला अस्पताल विवादों में घिर गया है, दरअसल आज फिर एक गर्भवती महिला की डिलीवरी के बाद मौत हो गई। इस अस्पताल में अल्ट्रासाउंड के महिलाओं की बड़ी-बडी लाइनों में लगना तो अब आम बात हो चुकी है। ये तो बस चंद घटनाएं हैं जो पहाड़ के शानदार विकास की तस्वीरों को दिखाती है। अन्यथा ऐसी अनगिनत घटनाओं के उदाहरण आए दिन हमारे सामने आते रहते हैं जो वास्तव में अलग पहाड़ी राज्य(uttarakhand) के उद्देश्यों को सार्थक सिद्ध करते हैं। पहाड़ों की इस बेहाल स्थिति को देखकर आज अलग पहाड़ी राज्य की मांग करने वाली डी•डी•पांडे, विपिन त्रिपाठी जैसी तमाम राज्य की महान हस्तियां जीवित होती तो यकीनन वह भी कह उठते क्या इसी दिन के लिए हमने अलग राज्य(uttarakhand) की मांग की थी। दरअसल महिला अस्पताल में पिछले तीन महीनों में ये दो ही केस नहीं हुए अपितु दो महीने पहले भी चार गर्भवती महिलाओं को अस्पताल में डिलीवरी के बाद अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है।
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सुबह हुई नार्मल डिलीवरी फिर काल का ग्रास बन गई गर्भवती महिला:-
प्राप्त जानकारी के अनुसार मूल रूप से राज्य के पिथौरागढ़ जिले के धारचूला के गोठी गांव निवासी रिद्धिमा गर्ब्याल को परिजनों ने डिलीवरी के लिए महिला अस्पताल में भर्ती कराया था। आज सुबह महिला की नार्मल डिलीवरी हुई लेकिन कुछ ही देर बाद उसकी मौत हो गई। महिला की एकाएक मौत की खबर से परिजनों में कोहराम मच गया। रोते-बिलखते वह अस्पताल प्रबंधन को रिद्धिमा की मौत का आरोप लगा रहे थे। उनका कहना था कि चिकित्सकों और अस्पताल प्रबंधन ने महिला के प्रसव में जरूर कोताही बरती होगी तभी महिला की मौत हुई। इस दौरान परिजनों ने अस्पताल परिसर में जमकर हंगामा काटा। बताया गया मृतक महिला वर्तमान में परिवार सहित पिथौरागढ़ के विण में रहती थी। अब महिला की मौत का असल कारण तो जांच के बाद ही पता चलेगा परन्तु इस तरह की घटनाओं में अस्पताल के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए अस्पताल प्रबंधन पर लगे आरोपों को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। महिला अस्पताल की इन घटनाओं को देखकर अब यह कहना बिल्कुल भी ग़लत नहीं होगा कि गर्भवती महिलाओं के लिए यह अस्पताल अब मौत का कुआं बन चुका है। इन दुखद घटनाओं को देखकर आप समझ सकते हैं कि पिछले 19 वर्षों में राज्य के पहाड़ी जिलों का कितना विकास हुआ होगा। जब जिला मुख्यालयों की यह हालत है तो दूर-सूदुर स्थित गांवों की दर्दनीय बदहाल स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।
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