Dhari Devi Story Hindi: श्रीनगर गढ़वाल से 15 किलोमीटर आगे कलियासौड़ नामक स्थान पर स्थित है मां धारी देवी का प्रसिद्ध मंदिर, माना जाता है चारों धामों की रक्षक….
उत्तराखंड सदियों से चमत्कारों और देवताओं की भूमि रही है इसमें बिल्कुल संदेह नही है कि यहां की धरा में कई प्रकार के किस्से और चमत्कार देखने को मिलते हैं। आज हम आपको ऐसे ही चमत्कारों से भरी उत्तराखंड के एक मंदिर धारी देवी मन्दिर के बारे में बताएंगे। धारी देवी मंदिर उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल से 15 किलोमीटर आगे कलियासौड़ नामक स्थान पर स्थित है। यह अलकनंदा नदी के किनारे पर बसा हुआ एक प्राचीन मंदिर है।यह मंदिर भगवती दुर्गा के काली रूप को समर्पित है। चमत्कारों से भरा यह मंदिर द्वापरयुग से इस जगह पर स्थित है। मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में माता काली का रौद्र रूप है जो खुश होने पर भक्तों को आशीष देती है मगर क्रोधित होने पर तहस-नहस भी कर देती है। यही नही माता धारी को उत्तराखंड की रक्षक देवी भी कहा जाता है तथा यह उत्तराखंड में स्थित चारों धामों की भी रक्षा करती है। ऐसा कहा जाता है कि जो भी भक्तगण चार धाम की यात्रा करते हैं अगर वह धारी देवी मंदिर के दर्शन करके जाता है तो उसकी चार धाम की यात्रा अवश्य सफल होती है।
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दिन में तीन बार रूप बदलती है मां धारी देवी:-
चमत्कारों से भरी माता धारी के इस मंदिर में भक्तों को हर दिन चमत्कार देखने को मिलता है। ऐसा ही एक चमत्कार यह है कि माता धारी इस मंदिर में दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती है जिसमें वह सुबह एक बालिका के रूप में, दिन में एक नौजवान कन्या और रात्रि में एक वृद्ध महिला के रूप में रहती है। किवदंती के अनुसार माता धारी का यह रूप एक नारी के जीवन को दर्शाता है जिसमें वह पहले बालिका फिर जवान कन्या और तब एक वृद्ध महिला के रूप में नजर आती है। वैसे तो इस मंदिर में प्रतिदिन काफी संख्या में भक्तों की भीड़ लगी रहती है लेकिन नवरात्रि पर माता धारी देवी की विशेष कृपा पाने के लिए भक्तगण हजारों की संख्या में दूर-दूर से दर्शन करने के लिए आते हैं और माँ धारी देवी का आशिर्वाद प्राप्त करते हैं।
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धार गांव में विराजमान होने के कारण कहलाती है मां धारी देवी:-
पुराणों के अनुसार माता धारी देवी के सात भाई थे वह अपने भाइयों से अथाह प्रेम करती थी और अपने भाइयों को खुश करने के लिए तरह-तरह की प्रयत्न करती थी। लेकिन धारी देवी के बचपन से सांवली होने के कारण उनके भाइयों को वह बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। जैसे-जैसे माता धारी बढ़ी हुई उनका अपने भाइयों के प्रति प्रेम और बढ़ने लगा। समय के साथ माता की उन सात भाइयों में से दो भाइयों की जान चली गई फिर धीरे-धीरे उनमें से तीन और भाई खत्म हो गई जब बाकी बचे भाइयों ने किसी जानकार शास्त्री से अपनी जन्मपत्री दिखाई तो उन्होंने मां धारी को यानी कि उन सातों भाइयों की बहन को उनकी मृत्यु का कारण बताया। उन्होंने बताया कि तुम्हारी बहन तुम्हारे लिए सही नहीं है। तुम्हारी बहन ही तुम्हारे लिए मृत्यु का कारण बनेंगी। जानकार की बात सुनकर बाकी बचे भाई घबरा गए। उन्होंने अपनी बहन को यानी मां धारी देवी को मारने की साजिश रची और एक रात मौका पाकर अपनी बहन का गला काटकर अलकनंदा नदी में फेंक दिया। नदी में फेंकने के बाद माता का जो सर का ऊपरी हिस्सा था वह बहकर नीचे धारी गांव में आ पंहुचा और जो निचला हिस्सा था वो ऊपर कालीमठ नामक स्थान पर रहा। जब धारी देवी का ऊपरी हिस्सा अलकनंदा नदी के किनारे कलियासौड़ नामक स्थान पर धार गांव में पहुंचा तो माता ने नदी के समीप खड़े व्यक्ति को आवाज लगाई। कटे हुए सर से आवाज आते देख नदी के समीप खड़ा व्यक्ति आश्चर्य चकित रह गया और डर गया। तब धड़ से आवाज आई कि मैं एक कन्या हूं मुझे मेरे भाइयों द्वारा मारा गया है। मैं देवी हूं, मेरे धड़ को निकालकर सामने चटान पर रखकर मेरी पूजा करो। अगर तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हारी रक्षा करूंगी। इस प्रकार मां धारी देवी धार गांव के कारण धारी देवी कहलाई। तब से इस मंदिर को धारी देवी मंदिर कहा जाने लगा।
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चमत्कारों से भरे इस मंदिर के यही नही और भी कई चमत्कार हैं जिनमे से एक चमत्कार 2013 मे आई केदारनाथ धाम में बाढ़ के बारे में कहा जाता है। कहते हैं कि माता धारी अपने भक्तों पर खुश होने पर आ जाए तो व्यक्ति के जीवन को खुशियों से भर देती है। लेकिन अगर माता किसी भी कारण भक्तों से नाराज या रुष्ठ हो जाए तो उस इंसान के जीवन में प्रलय आ जाती है। ठीक ऐसा ही किस्सा एक 2013 में आई उत्तराखंड आपदा में देखने को मिला था। स्थानीय लोगों और तीर्थपुरोहितों के अनुसार उत्तराखंड में जो आपदा आई थी, वह माता धारी के रुष्ठ होने के कारण आई थी। क्योंकि केदारनाथ में बाढ़ आने से ठीक 3 घंटे पहले माता धारी देवी को उनके मूल स्थान से हटाकर अन्य स्थान पर रख दिया गया था। इसका कारण यह था कि अलकनंदा नदी पर बनने वाला जल विद्युत परियोजना के चलते अलकनंदा नदी का जलस्तर काफी बढ़ गया था। माता का यह मंदिर डूब ना जाए इसलिए मंदिर परिषद की सहमति से सरकार को यह मंदिर मूल स्थान से हटाना पड़ा। मूल स्थान से हटते ही अलकनंदा नदी में खतरनाक बाढ़ आ गई। जिसके साक्षी केदारनाथ आपदा के रूप में सभी लोग बने थे। तो यह थी उत्तराखंड की श्रीनगर गढ़वाल में स्थित अलकनंदा नदी के किनारे पर बसी माता धारी देवी मंदिर की कहानी। रहस्यों से भरे इस चमत्कारी मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर में मांगी गई मुराद कभी खाली नहीं जाती। जो कोई भी भक्त माता धारी को सच्चे मन से पुकारता है उसकी इच्छा अवश्य पूर्ण होती है।
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