Surkanda Devi Story Hindi: सुरकंडा देवी की कहानी, सुरकंडा देवी कैसे पहुंचे, क्यों हैं मां सुरकंडा उत्तराखंड में प्रसिद्ध?
Surkanda Devi Story Hindi: उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है क्योंकि यह भूमि देवताओं की सबसे पवित्र भूमि मानी जाती है और यहाँ देवी देवता निवास करते है। उत्तराखंड मे यूं तो आपको बहुत सारे मन्दिर देखने को मिल जायेंगे लेकिन कुछ ऐसे मन्दिर भी यहाँ पर मौजूद है जो आपको अपनी और आकर्षित करने पर मजबूर कर देंगे और आपका मन भी यहाँ जाने के लिए विचलित कर देंगे ।जी हाँ आप बिल्कुल सही समझ रहे है आज हम आपको उस ही मन्दिर की जानकारी देने वाले है जिस स्थान पर आपका कभी ना कभी जाने का मन अवश्य करेगा और आप यहाँ जाए बगैर संतुष्ट नहीं होने वाले जिस पवित्र स्थान या मन्दिर की बात आज हम करने जा रहे हैं उस मन्दिर का नाम हैं ,सुरकंडा देवी आप सभी मे से अधिकतर लोगों ने सुरकंडा देवी मन्दिर के बारे मे अपने दोस्तों या फिर अपने परिवार के सदस्यों से सुना होगा या फिर आप यहां कभी स्वयं माता के दर्शन करने के लिए गए होंगे और माता के दर्शन करने पर आपको ऐसा प्रतीत हुआ होगा की आपने सब कुछ माता के दरबार मे आकर अर्जित कर लिया और साथ ही यहां के दर्शन करके आपको एक अलग ही सुख की अनुभूति भी हुई होगी। तो चलिए जो लोग किसी कारणवश यहाँ नही पहुँच पाए है उन्हें थोड़ा इस प्रसिद्ध मंदिर के बारे मे जानकारी देते हैं और साथ ही रुबरु करवाते है माता की अलौकिक शक्तियों से की आखिर क्यों प्रसिद्ध है यह मंदिर लेकिन उससे पहले आपको इस मन्दिर की कहानी से परिचित करवाते है।
सुरकंडा देवी की कहानी-(Surkanda Devi Story Hindi):
सुरकंडा देवी की कथा माता सती से जुड़ी हुई है ऐसा कहा जाता है की माता सती ने अपने वर के रूप मे भगवान शिव को चुना था लेकिन सती के पिता राजा दक्ष अपनी पुत्री के इस फैसले से ना खुश थे। ऐसा कहा जाता है कि राजा दक्ष ने सभी देवताओं के लिए एक भव्य वैदिक यज्ञ रखा था लेकिन उस यज्ञ मे भगवान शिव और माता सती को आमंत्रित नहीं किया था और इतना ही राजा दक्ष ने भगवान शिव को अपमानित किया जिसे देखकर माता सती को क्रोध आया और माता सती ने खुद को अग्निकुंड में झोंक दिया, यह जानते हुए कि इससे अपवित्र हो जाएगा।माता सती सर्वशक्तिमान देवी मानी जाती है ऐसा कहा जाता है की माता ने उसी समय माता सती ने देवी पार्वती के रूप मे पुनर्जन्म लेने के लिए उसी समय अपने प्राण त्यागे थे। सती के देह त्याग को देखकर भगवान शिव अपनी पत्नी के दुख वियोग में आकर क्रोधित हो गए और उन्होंने सती के शरीर को अपने कंधे पर उठाकर अपना विनाशकारी तांडव नृत्य करना शुरू कर दिया था। यह देखकर सभी देवता भयभीत हो गए थे और उन्होंने भगवान विष्णु से विनती की कि भगवान शिव को किसी तरह से शांत कराया जाए , इस प्रकार जहां-जहां भगवान शिव विचारण करते थे उनके पीछे-पीछे भगवान विष्णु भी चलते थे और उन्होंने एक दिन मौका पाकर अपना सुदर्शन चक्र घुमाया और माता सती के शव को नष्ट किया इस प्रकार से माता सती की अंग के टुकड़े अलग -अलग स्थान पर गिरे ऐसा माना जाता है कि माता सती के शरीर के 51 टुकड़े भारतीय उपमहाद्वीप में बिखरे हैं, जिन्हें शक्तिपीठ कहा जाता हैं । ऐसा माना जाता है की जब शिव सती के शरीर को लेकर कैलाश पर्वत वापस जा रहे थे तो सती का सिर इस स्थान पर गिरा जिसका नाम तब सुरकंडा पड़ा।
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सुरकंडा देवी मंदिर एक प्रसिद्ध मंदिर है ,जो टिहरी जिले के चंबा शहर से 24 किलोमीटर और मसूरी से 40 किलोमीटर दूर कद्दूखाल के पास स्थित है।
सड़क मार्ग से– यह कद्दूखाल का निकटतम शहर है और मसूरी से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यहाँ पर आप अपनी निजी वाहनों से या फिर गाड़ी बुकिंग कर के जा सकते है ।
रेल द्वारा– 67 km की दूरी पर स्थित देहरादून रेलवे स्टेशन से पर्यटक देहरादून से मसूरी होते हुए सीधे सुरकंडा की गाड़ी बुक कर सकते है।
हवाई मार्ग द्वारा – देहरादून जॉली ग्रांट निकटतम हवाई अड्डा है जो सुरकंडा देवी से 100 km की दूरी पर स्थित है और यहाँ आसानी से टैक्सी उपलब्द हो जाती है।
जानिए क्यों प्रसिद्ध है उत्तराखंड का सुरकंडा मन्दिर(Why surkanda Devi famous in uttarakhand)