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Dunagiri temple Dwarahat is the second Vaishno Shaktipeeth in Kumaon, Uttarakhand, after 'Vaishno' Devi

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उत्तराखण्ड विशेष तथ्य

उत्तराखंड: द्वाराहाट का दूनागिरी मंदिर ‘वैष्णो देवी’ का वो शक्तिपीठ जहाँ होती है हर मुराद पूरी

द्वाराहाट की ऊंची चोटी पर स्थित है मां दूनागिरी(DUNAGIRI TEMPLE DWARAHAT) का भव्य मंदिर, मां की महिमा का बखान सुनकर दूर-दूर से दर्शनों को आते हैं श्रृद्धालु..

यूँ तो उत्तराखंड में कई ख़ूबसूरत पर्यटक स्थल है, जहाँ सैलानी दूर दराज़ से आते रहते हैं। यहां की हसीन वादियां और विशाल पहाड़ भी अद्भुत एहसास दिलाकर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। ख़ूबसूरती के साथ-साथ यहाँ भक्ति और आस्था का भी अटूट सम्बन्ध मिलता है। बात अगर भक्ति और आस्था की करें और देवभूमि उत्तराखण्ड का नाम ना आए ऐसा कदापि नहीं हो सकता। उत्तराखण्ड की पावन धरती पर क‌ई पौराणिक मन्दिर तथा सिद्ध शक्तिपीठ स्थित है, इन्हीं शक्तिपीठ में से एक है “द्रोणगिरी वैष्णवी शक्तिपीठ“। जिसे दूनागिरी माता मन्दिर भी कहा जाता है। वैष्णो देवी शक्तिपीठ के बाद दूनागिरी मन्दिर (DUNAGIRI TEMPLE DWARAHAT) को दूसरा वैष्णों देवी शक्तिपीठ कहा जाता हैं। मान्यता है कि मां भगवती के इस पावन धाम में माँ की दो पिण्डियॉ और महादेव माता पार्वती के साथ विराजमान हैं। दूनागिरी माता का यह प्रसिद्ध मन्दिर राज्य के अल्मोड़ा ज़िले के द्वाराहाट नगर पंचायत से 15 किमी आगे एक चोटी में स्थित है। बताया जाता है कि देवदार, अकेशिया और सुरई समेत विभिन्न प्रजाति के पेड़ पौधों के ‌बीच दूनागिरी मंदिर क्षेत्र में कई प्रकार की जीवनदायिनी जड़ीबूटियॉ पाई जाती है।
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हनुमान जी द्वारा संजीवनी बूटी ले जाते समय यहां टूटकर गिरा था पर्वत का एक हिस्सा, आज भी रात में जगमगाती हुई प्रतीत होती है यहां औषधियां:-

वैसे तो दूनागिरी मंदिर के निर्माण के विषय में अलग-अलग पौराणिक कथाएं प्रचलित है पर अधिकांश स्थानीय लोगों के अनुसार रामायण काल में जब हनुमान जी द्रोणांचल पर्वत से संजीवनी बूटी ले जा रहे थे तो पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा वहाँ पर गिर गया बाद में उसी पर्वत पर दुनागिरी मंदिर बन गया। एक अन्य मान्यता के अनुसार पाण्डवों के गुरू द्रोणाचार्य के द्वारा यहाँ पर तप करने के कारण इस पर्वत का नाम द्रोण पर्वत पड़ा, कई जानकारों के अनुसार वर्तमान में भी इस पर्वत पर रात में औषधियॉ जगमगाती हुई प्रतीत होती हैं। दुनागिरी शक्तिपीठ में माता की वैष्णवी रुप में पूजा होती है इस भव्य मंदिर के दर्शन करने के लिए भक्तों को लगभग 500 सीढ़ियाँ चढ़नी होती है। सबसे खास बात तो यह है कि यहॉ प्रसाद के रूप में पूरा नारियल चढ़ाया जाता है क्योंकि टूटे हुए नारियल को बलि को एक रुप में माना जाता है और मॉ वैष्णवी को बलि नहीं चढ़ती हैं। दूनागिरी मंदिर में हमेशा अखण्ड ज्योति जलती रहती है जिसके दर्शनों के लिए भक्त दूर-दूर से यहां आते हैं।
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नवविवाहित जोड़े मां के दर्शन कर लेते हैं अखंड सौभाग्य का आर्शीवाद, मनोकामनाएं पूर्ण होने पर भक्तों द्वारा चढाया जाता है चाँदी के छत्र और घंटियाँ:-

देवभूमि के अधिकांश मंदिरों की तरह मां दूनागिरी के इस मंदिर में भी नवरात्री के दिनों में विशेष पूजा अर्चना होती है। कहा जाता है कि इस मंदिर में मॉगी हुई हर मनोकामना पूर्ण होती है। मनोकामना पूर्ण होने के पश्चात भक्तों द्वारा मां दूनागिरी के इस पावन धाम में चाँदी के छत्र और घंटियाँ चढ़ाई जाती है। मंदिर के प्रांगण में लगी हुई हजारों घंटीया और चांदी के छत्र भी मां की इसी महिमा का बखान करते है। बता दें कि कुमाऊँ क्षेत्र के अधिकांश नवविवाहित जोड़े जहां सबसे पहले माता‌ के दर्शनों के लिए दूनागिरी मंदिर आते है एवं मन्दिर की परिक्रमा कर अखण्ड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त करते है वहीं नि:संतान महिलाएँ मॉ के सम्मुख अखण्ड दीप जलाकर संतान की कामना करती है, जिसके फलस्वरूप उन्हें मॉ की कृपा से उनको संतान रत्न की प्राप्त भी होती है। ऊंची चोटी और हरे-भरे पेड़ों की छांव में स्थित मां दूनागिरी मन्दिर के आध्यात्मिक वातावरण में भक्तों को अलौकिक शान्ति की प्राप्ति भी होती है। यहां वर्ष भर भंडारे का आयोजन होता रहता है जिसका प्रसाद दूर-दूर से आए श्रृद्धालु मां दूनागिरी के आशीर्वाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

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