सैन्य परम्परा का निर्वहन करते हुए नौसेना (Indian Navy) में लेफ्टिनेंट बनेगा तन्मय, एनडीए (NDA) की प्रवेश परीक्षा में हासिल किया 11 वां स्थान..
सदा से देवभूमि के साथ ही वीरभूमि के रूप में जानी जाने वाली उत्तराखण्ड की पावन धरती में आज भी वीरों की कोई कमी नहीं है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां के युवा सेना में शामिल होकर देश सेवा करने को हमेशा लालायित रहते हैं। चाहे प्राचीन काल हो या फिर आजादी से पूर्व अंग्रेजी हुकूमत का जमाना, या हो आजादी के बाद का भारतवर्ष, उत्तराखण्ड के वाशिंदे कभी भी इस पावन धरा की रक्षा में अपना सर्वोच्च बलिदान करने से पीछे नहीं रहे। इतिहास भी इसका गवाह रहा है। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान जहां यहां के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, देश को आजादी दिलाने के लिए दुश्मनों से लोहा लेने से भी नहीं चूके वहीं वर्तमान में सीमा पर तैनात उत्तराखण्ड के जवानों की साहस और वीरता की कहानियां तो देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी मशहूर है। आज हम आपको एक और ऐसे ही युवा से रूबरू करा रहे हैं जिसके दादा केशरी चंद्र ने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिलाते हुए वीरगति प्राप्त की, और अब पोता परिवार की इस सैन्य परम्परा का निर्वहन करते हुए नौसेना (Indian Navy) में लेफ्टिनेंट बनने जा रहा है। जी हां.. हम बात कर रहे हैं राज्य के देहरादून निवासी तन्मय शर्मा की, जिनका चयन हाल ही में एनडीए (NDA) में हुआ है। सबसे खास बात तो यह है कि देशभर से चयनित 662 युवाओं के बीच तन्मय ने 11वां स्थान हासिल किया है। उनकी इस उपलब्धि से जहां परिवार में हर्षोल्लास का माहौल है वहीं क्षेत्रवासियों में भी खुशी की लहर है।
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नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से प्रेरित होकर तन्मय के दादा ने भी लड़ी थी आजादी की लड़ाई:-
प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य के देहरादून जिले के जौनसार-बावर क्षेत्र के क्वाया गांव निवासी तन्मय शर्मा का चयन एनडीए में हो गया है। बता दें कि बीते सोमवार को जारी एनडीए परीक्षा के फाइनल परिणामों में पूरे देश में 11वां स्थान हासिल करने वाले तन्मय ने राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज (आरआइएमसी) से पढ़ाई की है। उनके पिता नवीन चंद्र शर्मा, कैनरा बैंक दिल्ली में चीफ मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं जबकि तन्मय की मां अमिता शर्मा एक शिक्षिका हैं। एनडीए में चयनित होने के बाद अब तन्मय तीन साल का कठिन प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे, जिसके बाद वह नौसेना में लेफ्टिनेंट बन जाएंगे। सबसे खास बात तो यह है कि तन्मय के दादा वीर शहीद केसरी चंद भी स्वतंत्रता आंदोलन में खासे सक्रिय रहे थे। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से प्रेरित होकर आजादी की लड़ाई में कूदने वाले शहीद केसरी चन्द को 1941 में अंग्रेजी हुकूमत ने न सिर्फ भारत-बर्मा सीमा पर इंफाल के पास बंदी बनाया बल्कि उन पर दिल्ली की अदालत में मुकदमा भी चलाया गया। जहां अंग्रेजी हुकूमत से माफ़ी न मांगने पर उन्हें तीन मई 1945 को सूली पर चढ़ा दिया गया। देश के इस वीर सपूत शहीद केसरी चंद की स्मृति में प्रतिवर्ष चकराता के रामताल गार्डन में मेला लगाया जाता है। अब उनके पौत्र ने पूरे देश में 11वां स्थान हासिल कर न सिर्फ क्षेत्र का नाम रोशन किया है बल्कि समूचे उत्तराखण्ड का गौरव भी बढ़ाया है।
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