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Uttarakhand: there will be devastation, the city will drown due to landslide sinking, now no one can save Joshimath. Joshimath landslide sinking

उत्तराखण्ड

चमोली

संपादकीय

हमें फर्क नहीं पड़ता: मचेगी तबाही डूब जाएगा शहर जोशीमठ को अब कोई नहीं बचा सकता

Joshimath landslide sinking: जोशीमठ की तबाही की दास्तां पढ़िए इस विस्तृत रिपोर्ट में, भू-वैज्ञानिकों के साथ ही कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने स्वीकारा, अब जोशीमठ के अस्तित्व को बचाना नामुमकिन….

एक तरफ बर्बाद बस्तियाँ – एक तरफ हो तुम। एक तरफ डूबती कश्तियाँ – एक तरफ हो तुम।
एक तरफ हैं सूखी नदियाँ – एक तरफ हो तुम। एक तरफ है प्यासी दुनियाँ – एक तरफ हो तुम।
अजी वाह! क्या बात तुम्हारी, तुम तो पानी के व्योपारी,
खेल तुम्हारा, तुम्हीं खिलाड़ी, बिछी हुई ये बिसात तुम्हारी,
सारा पानी चूस रहे हो, नदी-समन्दर लूट रहे हो,
गंगा-यमुना की छाती पर, कंकड़-पत्थर कूट रहे हो,
उफ!! तुम्हारी ये खुदगर्जी, चलेगी कब तक ये मनमर्जी,
जिस दिन डोलगी ये धरती, सर से निकलेगी सब मस्ती,
महल-चौबारे बह जायेंगे, खाली रौखड़ रह जायेंगे
बूँद-बूँद को तरसोगे जब – बोल व्योपारी – तब क्या होगा?

प्रख्यात रंगकर्मी, लोकविद, राज्य आंदोलनकारी और जनकवि गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ की प्रसिद्ध कविता की यह पंक्तियां आज विलुप्तप्राय होने की कगार पर खड़े जोशीमठ के हालातों को बयां कर रही है। खैर हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है ना। क्योंकि अगर हमें, हमारी सरकारों को कोई फर्क पड़ता तो शायद आज जोशीमठ आपदा के मुहाने पर खड़ा नहीं होता। अगर हमने लोककवि गिर्दा की इन पंक्तियों को गंभीरता से लिया होता तो शायद आज जोशीमठ इस विध्वंस को नहीं झेल रहा होता। इस खबर का शीर्षक पढ़कर आप भले ही हम पर आरोप लगा रहे हों कि इन विपरीत परिस्थितियों में हम कैसी खबर प्रकाशित कर रहे हैं। परंतु वास्तविकता यही है कि हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारी संवेदनाएं पूरी तरह मर चुकी है। क्योंकि अगर ऐसा ना होता तो जोशीमठ शहर का यह दर्द केवल वहां के वाशिंदों तक ही सीमित नहीं रह पाता है।‌ हमारे लिए इससे निंदनीय क्या हो सकता है कि हल्द्वानी में अतिक्रमण हटाने की खबर रातों रात राष्ट्रीय खबर बन जाती है। राष्ट्रीय मीडिया चैनलों पर इसको लेकर वाद-विवाद (डिबेट) कार्यक्रम आयोजित की जाती है, दिल्ली से लेकर जम्मू कश्मीर तक के नेताओं की तमाम प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती हैं परंतु जोशीमठ के वाशिंदों को अपना दर्द उत्तराखण्ड सरकार तक पहुंचाने के लिए भी सड़कों पर उतरना पड़ता है।
(Joshimath landslide sinking)
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वो तो गनीमत है कि आज सोशल मीडिया का दौर है तब जाकर कहीं जोशीमठ का यह विध्वंस सुर्खियों में अपनी जगह बना पाया है अन्यथा पहाड़ के विध्वंस की यह खबर भी पहाड़ की अनेक समस्याओं की तरह स्थानीय समाचार पत्रों तक ही सीमित रह जाती। क्योंकि हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है। जोशीमठ, जिसे ज्योर्तिमठ के नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि यही हिंदु धर्म को एकसूत्र में पिरोने वाले जगद्गुरु शंकराचार्य की आत्मज्योति जाग्रत हुई थी। उन्होंने ही इस शहर की नींव रखी थी। गेटवे ऑफ हिमालया, गेटवे ऑफ बद्रीनाथ, गेटवे ऑफ ओली, गेटवे ऑफ फूलों की घाटी, न जाने कितने ही ऐतिहासिक, पौराणिक, आध्यात्मिक एवं पर्यटनों स्थलों के द्वार कहें जानें वाला यह जोशीमठ शहर आज एक बड़ी आपदा से जूझ रहा है। लोगों के घर जमींदोज होने की कगार पर है, सड़कें धंस रही है। मकान टेढे-मेढ़े हो रहे हैं। यहां तक की पहाड़ के लोगों की आस्था के प्रतीक क‌ई मंदिर धराशाई हो चुके हैं जबकि क‌ई अन्य प्रमुख मंदिरों पर आज संकट के काले‌ बादल भी‌ मंडरा रहे हैं जिनमें ज्योर्तिमठ परिसर के लक्ष्मी नारायण मंदिर, टोटकाचार्य गुफा, त्रिपुर सुंदरी राजराजेश्वरी मंदिर और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की गद्दी स्थल भी शामिल है। इसके अतिरिक्त आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी स्थित नृसिंह मंदिर परिसर में भी दरारें आ गई हैं। परंतु हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है ना।
(Joshimath landslide sinking)
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कहां गए खुद को हिन्दू धर्म के रक्षक बताने वाले वे लोग। जो इतना सबकुछ होने के बाद भी इस संबंध में कोई आवाज नहीं उठा पा रहे हैं। यह सवाल आपसे भी है और खुद से भी, कि क्या यह संकट केवल जोशीमठ के लोगों पर आया है? क्या हमें अपने इस ऐतिहासिक, पौराणिक एवं आध्यात्मिक शहर से कोई लेना देना नहीं है।‌ वैसे तो हम भगवान बद्रीविशाल के दर्शनों के लिए हमेशा लालायित रहते हैं।‌ उत्तराखण्ड के इस क्षेत्र में बसे अनेक पर्यटन स्थलों का लुत्फ उठाते रहते हैं परन्तु आज जब इन पर्यटन स्थलों सहित बद्रीनाथ धाम के द्वार कहें जानें वाले इस शहर पर संकट आया है तो हम‌ खामोश है।‌ हमारी यह खामोशी बहुत कुछ बयां करती है। यह खामोशी इसलिए हैं क्योंकि यह कोई साम्प्रदायिक मुद्दा नहीं है, अगर ऐसा होता तो राजनीतिक दलों में आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका होता, राष्ट्रीय मीडिया चैनलों पर इस संबंध में डिबेट कार्यक्रम आयोजित किए जाते। सोशल मीडिया पर हैशटैग चलाकर इस मुद्दे को बड़े जोरों शोरों से हाईलाइट किया जाता। परंतु यह हमारा हमारे पहाड़ का दुर्भाग्य ही है कि यहां होने वाली किसी भी अप्रिय घटना से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।
(Joshimath landslide sinking)
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भले ही आज उत्तराखंड सरकार जोशीमठ को बचाने के हरसंभव प्रयास करने का दावा कर रही हों परन्तु सच्चाई यही है कि जोशीमठ को अब कोई नहीं बचा सकता। अब यह शहर बस कुछ ही दिनों/महीनों का मेहमान है। उसके बाद हो जाएगा यह भी दफन इतिहास के पन्नों में। लेकिन हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। हम यूं ही अंधाधुंध विकास के नाम पर पहाड़ों का विनाश करते रहेंगे। स्थानीय लोगों के विरोध करने पर उन्हें कभी सामरिक महत्व की दुहाइयां दी जाएंगी तो कभी किसी अन्य बहानों से बरगलाने की कोशिश की जाएगी। परंतु आज का कटु सत्य यही है कि जोशीमठ को बचाना अब किसी चमत्कार के वश में भी नहीं है। इसे अब वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं।
(Joshimath landslide sinking)
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इस संबंध में जियोलॉजिस्ट एसपी सती का कहना है कि अब जोशीमठ शहर के अस्तित्व को बचाना असंभव ही है, इस ओर कदम बढ़ाने में हम काफी देर कर चुके हैं। इसलिए सरकार को पहले जोशीमठ शहर में रह रहे लोगों को बचाने पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जोशीमठ शहर के अस्तित्व पर जो यह खतरा मंडरा रहा है अब उसे टाला नहीं जा सकता है। इसके अतिरिक्त खुद उत्तराखण्ड सरकार में कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि अब जोशीमठ को बचाना बेहद कठिन है। उन्होंने कहा कि कहा कि जोशीमठ की स्थिति वास्तव में चिंताजनक है। अब जोशीमठ रहने के लायक नहीं है। खैर हमारी सरकारों को कोई फर्क नहीं पड़ता ना क्योंकि ऐसा होता तो 47 वर्ष पहले 1976 में आई मिश्रा कमीशन की वह रिपोर्ट कागजों के ढेर में ही नहीं पड़ी रहती जिसमें इस विनाशलीला के बारे में पहले ही बता दिया गया था। शेष फिर……
(Joshimath landslide sinking)

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