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Uttarakhand: Why is Shiva incarnate Golu (Gwel) devta called the judge of God full stoy?? Golu Devta Story

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Golu Devta Story: शिव अवतारी गोलू (ग्वेल) देवता क्यों कहे जाते हैं देवभूमि के न्यायाधीश ?

Golu Devta Story: लोकगाथा जागर में शिव स्वरूपा, कृष्ण अवतारी, दूधाधारी आदि नामों पुकारा जाता है गोलू देवता को, माना जाता है न्याय का देवता, चिट्ठियां लिखकर आज भी लगाई जाती है न्याय की गुहार….

वैसे तो देवभूमि उत्तराखंड में अनेक मंदिर और धाम है जिनका विश्व भर में जिक्र होता है लेकिन यहां के प्रत्येक घरों में कुछ स्थानीय देवता ऐसे भी हैं जिन्हें लोग अपने कुल देवता और ईस्ट देवता के रूप में पूजते हैं। इन्हीं कुल देवताओं में से आज हम बात करेंगे उत्तराखंड में पूजे जाने वाले शिव अवतारी “गोलू देवता”(Golu Devta) की जो देवभूमि के न्यायाधीश देवता या न्याय के देवता (God Of Justice) कहलाते है और लोगों के साथ होने वाले किसी भी प्रकार का अन्याय का तुरंत समाधान कर उन्हें न्याय दिलाते हैं। भूमि देवता, कूल देवता, ईस्ट देवता, ग्राम देवता , भूम्याल देवता , लोकदेवता इत्यादि कई नामों से विख्यात गोलू देवता भगवान गौर भैरव (शिव) के अवतारी माने जातें हैं और उत्तराखंड में न्याय देवता के साथ-साथ बड़े ही चमत्कारी देवता माने जाते हैं। आज भी उत्तराखंड में जब लोग कोर्ट कचहरी या जीवन से थक हार जाते हैं तो इनकी दरबार की ओर न्याय के लिए रुख करते हैं। गोलू देवता सच्चे न्यायमूर्ति हैं जो भक्तों की सभी समस्याओं को सुनकर उनका फैसला तुरंत करते हैं। ये किसी भी भक्त को खाली हाथ नहीं भेजते हैं कहते हैं कि गोलू के दरबार में आज नहीं तो कल न्याय होना तय रहता है। इसी विश्वास और श्रद्धा के चलते आज उत्तराखंड के प्रत्येक घरों में गोलू देवता कुल देवता के रूप में पूजे जाते हैं। तो चलिए आज हम आपको बताएंगे कि गोलू देवता का उत्तराखंड में इतिहास क्या है और यह देवभूमि के न्यायधीश कैसे कहलाए।
(Golu Devta Story)
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उत्तराखंड में गोलू देवता का इतिहास (Histroy Of Golu Devta In Uttrakhand):-

गोलू देवता जिन्हें गोरिल , गोरिया , ग्वाल देवता , ग्वेल देवता, गोलू महाराज, गोल्ज्यू महाराज, न्याय कारी देवता, कृष्ण अवतारी , दूधाधारी आदि नामों से भी जाना जाता है। उनके संबंध में उत्तराखंड में कई कहानियां प्रचलित हैं। मगर इनमें सबसे अधिक प्रचलित जो कहानी है वह कहती है कि गोलू देवता मूल रूप से नेपाल के रहने वाले थे वह चंपावत के कत्यूरी वंश के राजा झालूराई और उनकी धर्मपत्नी पंचदेवों की बहन रानी कलिंगा की इकलौती संतान थी। राजा झालराई मूल रूप से नेपाल के रहने वाले थे और 7 वीं सदी से लेकर 12 वीं सदी तक उत्तराखंड के चंपावत जिले में उनका शासन काल था। राजा झालूराई बचपन से ही करुणामई एवं दीन दुखियों की सेवा करने वाले थे और भगवान भैरवनाथ के परम भक्त थे। उनके प्रजा में किसी को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं था हर तरफ हरियाली एवं सुख सुविधाओं से परिपूर्ण राजपाट हुआ करता था। राजा की प्रजा हर प्रकार के सुख भोग रही थी और राजा का राज दरबार भी हर प्रकार से सुखी था मगर राजा को एक ही कष्ट था और चिंता थी जिसे सोचकर अक्सर राजा झालूराई दुखी हो जाते थे।
(Golu Devta Story)
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दरअसल राजा की सात रानियां थी मगर सात रानियां होने के बावजूद भी उनकी एक भी संतान नहीं थी। राजा को हर वक्त यह चिंता सताती थी कि भविष्य में उनका राजपाट कौन संभालेगा ? उनका कुल आगे कौन बढ़ाएगा ? जब हर प्रकार से यत्न करने के बाद भी राजा को कहीं सफलता हाथ नहीं लगी तो उन्होंने ज्योतिष ज्ञान का सहारा लेना उचित समझा। तब ज्योतिषी ने उन्हें भगवान भैरव नाथ की पूजा करने का आदेश दिया। राजा ने भैरवनाथ को प्रसन्न कर उनसे संतान प्राप्ति की इच्छा जताई तो भैरवनाथ ने कहा कि हे राजा तुम्हारी किस्मत में कोई संतान सुख नहीं है मगर मैं खुद तुम्हारे संतान के रूप में जन्म लूंगा उसके लिए तुम्हारी सभी सातों रानियां योग्य नहीं है तुम्हें आठवीं रानी लानी होगी। तब भैरवनाथ की बात सुनकर राजा अत्यंत प्रसन्न हुए और आठवीं रानी की खोज में निकल पड़े। कई समय बाद एक दिन राजा जब जंगल से कहीं गुजर रहे थे तो उन्हें बड़ी प्यास लगने लगी। जब वह जंगल में एक तालाब किनारे पानी पीने लगते हैं तो एक सुंदर युवती उन्हें तालाब के पानी पीने से रोकती हैं और कहती है कि यह मेरा तालाब है तुम इसका पानी नहीं पी सकते। राजा युवती की बात सुनकर उसे अपना परिचय देते हुए कहते हैं कि – “ मैं चंपावत का राजा झालूराई हूं” कृपया मुझे यहां का पानी पीने दीजिए। युवती को राजा की बातों पर यकीन नहीं होता तो वह राजा से कहती है कि मैं कैसे मान लूं तुम चंपावत के राजा झालूराई हो। अगर तुम चंपावत के राजा हो तो सामने लड़ रही दो सांडो को छुड़ाकर दिखाओ तब में मानूंगी कि तुम एक राजा हो। जब काफी यत्न के बाद राजा दोनों सांडों की लड़ाई नहीं छुड़ा पाए तब युवती ने ही उन दोनों की सींग पकड़कर उन्हें अलग किया युवती का साहस देख राजा उससे उसका परिचय पूछने लगे तब युवती ने बताया कि वह पंचदेव की बहन है उसका नाम कलिंगा है। युवती की योग्यता और सुंदरता पर मोहित होकर राजा ने उसके पांचों भाई पंच देवों से विवाह का प्रस्ताव रखा और उसे विवाह कर अपने साथ अपने राज्य में ले आए। कलिंगा अत्यंत रूपवान एवं धर्म परायण थी। राजा कलिंगा से अत्यंत प्रेम करते थे जिस कारण राजा की अन्य रानियां कलिंगा से ईर्ष्या करते थे।
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गोलू देवता का जन्म (Born History Of Golu Devta):-

धीरे-धीरे समय बीता और कलिंगा गर्भवती हो गई चारों और राज दरबार में खुशियां मंडराने लगी। लेकिन जब रानियों को इस बात का पता लगा तो सोचने लगी कि कहीं इसके बाद राजा उन्हें छोड़ ना दे या फिर हमेशा के लिए कलिंगा का ना हो जाए इसके लिए हमें कुछ करना पड़ेगा। सातों रानियों ने कलिंगा को बच्चे होने के संबंध में तरह-तरह से डराने और भय पैदा करना शुरू कर दिया। साथ ही वह बच्चे को मारने की भी तरह-तरह की तैयारियां करने लगी। फिर वह समय आया जब रानी कलिंगा ने बच्चे को जन्म दे दिया लेकिन ईर्ष्या से भरी राजा की अन्य रानियों ने वह बच्चा गायों के बांधने की जगह उनके पैरों के नीचे फेंक दिया था कि वह बच्चा मर जाए। लेकिन गोलू देवता बचपन से ही चमत्कारों से भरे हुए थे वह चमत्कारी बालक मरने की जगह गायों का दूध पीने लगा और खिलखिला कर हंसने लगा। गुस्साई रानियों ने तिल मिलाकर उस बालक को नमक के ढेर में डाल दिया ताकि नवजात शिशु गल कर मर जाए मगर वहां भी फिर इस बालक ने चमत्कार दिखाया और इस बार भी उसे कुछ नहीं हुआ। जब तरह तरह के यत्न करने के बाद भी रानी इस बालक को मार नहीं पाई तो थक हारकर रानियों ने इसे एक बॉक्स में रखकर नदी में प्रभावित कर दिया। इधर सातों रानियों ने आकर राजा झालूराई और कलिंगा को बताया कि महारानी कलिंगा ने सिलबट्टे को जन्म दिया है। राजा और महारानी कलिंगा इस बात को सुनकर बड़े दुखी हुए और दोनों अपनी किस्मत को कोसने लगे।
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इधर रानियों द्वारा नदी में प्रभावित बालक एक निसंतान दंपतियों को मिला जो कि मछुआरे थे। निसंतान होने के कारण उन्हें जब यह बालक मिला तो उन्होंने भगवान का आशीर्वाद समझकर बालक को रख दिया। वह बालक का बड़े लाड प्यार से पालन पोषण करते थे और उसके साथ जीवन हंसी खुशी जीवन व्यतीत करने लगे। धीरे-धीरे बालक बड़ा होने लगा बालक को घोड़ा बहुत पसंद आता था वह अक्सर अपने माता-पिता से उसके लिए घोड़ा लाने की जिद क्या करता था। दोनों मछुआरे माता-पिता गरीब होने के कारण जब असली घोड़ा नहीं खरीद पाए तो उन्होंने बेटे को एक नकली लकड़ी यानी काठ का घोड़ा खरीद कर दे दिया। बालक जब धीरे-धीरे बड़ा होने लगा तो उसे सपने में अपनी माता कलिंगा नजर आती थी जो कहती थी कि तू मेरा संतान है। यह बात बार-बार बालक को बार बार परेशान करने लगी थी तो वह अपने मछुआरे माता-पिता से अपने असली माता पिता के बारे में पूछने लगा मछुआरों ने बताया कि वह हमें नदी में मिला था उसकी असली मां बाप कौन है यह हम भी नहीं जानते। फिर समय बीतता गया और बालक बड़ा होकर अपनी काठ की घोड़े में इधर-उधर घूमने लगा क्योंकि बालक स्वभाव से ही चमत्कारी था तो बालक के पास स्थित काठ का घोड़ा भी सामान्य घोड़े की तरह चलता फिरता था।
(Golu Devta Story)
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एक दिन वह बालक जंगल में अपने काठ के घोड़े से नदी किनारे भ्रमण कर रहा था तब वह उन सातों रानियों को बात करते सुनता है कि कैसे उन्होंने रानी कलिंगा के बच्चे को मारने का प्रयत्न किया और कैसे रानी कलिंगा को बताया कि तुमने सिलबट्टे को पैदा किया है। यह सुनकर गोलू देवता उनके नजदीक जाते हैं और बोलते हैं कि हटो मुझे अपने काठ के घोड़े को पानी पिलाना है। तो रानी खिलखिला कर हंसते हुए कहती है कि कैसा पागल बालक है भला कोई काठ का घोड़ा पानी पीता है। तब बालक कहता है कि जब “तुम्हारे राज्य में रानी सिलबट्टे को जन्म दे सकती है तो मेरा काठ का घोड़ा पानी क्यों नहीं पी सकता”। यह सुनकर रानियां घबरा गई और महल की तरफ दौड़ने लगी। फिर बालक महल की तरफ गया और राजा को सारी बात बताई और कहा कि मैं तुम्हारा पुत्र हूं और रानियों ने ना सिर्फ मां कलिंगा बल्कि तुम्हें भी धोखे में रखा। जिसके बाद राजा झालुराई ने सभी रानी को सजा देकर इस बालक को अपना पुत्र माना और यही बालक आगे चलकर ग्वाल देवता, गोलू देवता, गोरिया और गोरिल कहलाए। राजा झालूराई के मरणोपरांत गोलू देवता ने ही चंपावत का राज पाठ संभाला। और आगे चलकर समस्त चंपावत और उसके अन्य क्षेत्रों के न्याय प्रिय राजा कहलाए।
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उत्तराखंड के न्यायधीश एवं न्याय के देवता गोलू देवता (Golu Devta God Of Justice In Uttarakhand):-

राजा गोलू(Golu) अपने जनता को बहुत प्यार करते थे।वे उनकी हर समस्या को सुलझाते थे एवं उसका सटीक न्याय करते थे। वह बहुत न्याय प्रिय राजा थे वह अपनी प्रजा की समस्याओं एवं अन्याय के प्रति लड़ने के लिए जगह-जगह घूमा करते थे और जहां कहीं भी किसी को भी किसी भी प्रकार की समस्या हो उसके लिए जन अदालत लगाते थे। उनके द्वारा किया गया फैसला कभी भी किसी निर्दोष को सजा नहीं देता था वह हमेशा दोषी को ही सजा देते थे। इस प्रकार बचपन से ही न्यायमूर्ति एवं करुणा से भरे गोलू देवता बड़े होकर उत्तराखंड के न्यायाधीश एवं न्यायमूर्ति कहलाए।आज भी गोलू देवता को उत्तराखंड में अटूट श्रद्धा के साथ माना जाता है और जिस किसी को भी न्याय नहीं मिलता वह इनके दरबार की ओर रुख कर अर्जियां लिखकर अपनी समस्या बताते हैं। और गोलू देवता भी भक्तों के लिए तुरंत न्याय करते हैं। आज भी उत्तराखंड में इनके प्रसिद्ध मंदिर चंपावत का प्रसिद्ध गोलू मंदिर, विश्वविख्यात अल्मोड़ा का चितई गोलू देवता मंदिर जो कि चिट्टियां लिखने में घंटियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है एवं नैनीताल जिले में घोड़ाखाल मंदिर है। जहां भक्तों द्वारा कोर्ट कचहरी से थक हार कर एवं किसी भी प्रकार से न्याय न मिलने पर इन के दरबार में जाकर घंटी उन चिट्ठियों द्वारा न्याय मांगा जाता है और गोलू देवता के प्रति लोगों का विश्वास कितना है यह इस बात से ही स्पष्ट देखा जा सकता है कि मंदिर के प्रांगण में चढ़ाई गई घंटियों की एवं लिखे गए अर्जियों की संख्या लाखों में है।
(Golu Devta Story)

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