Golu Devta Story: शिव अवतारी गोलू (ग्वेल) देवता क्यों कहे जाते हैं देवभूमि के न्यायाधीश ?
गोलू देवता का जन्म (Born History Of Golu Devta):-
धीरे-धीरे समय बीता और कलिंगा गर्भवती हो गई चारों और राज दरबार में खुशियां मंडराने लगी। लेकिन जब रानियों को इस बात का पता लगा तो सोचने लगी कि कहीं इसके बाद राजा उन्हें छोड़ ना दे या फिर हमेशा के लिए कलिंगा का ना हो जाए इसके लिए हमें कुछ करना पड़ेगा। सातों रानियों ने कलिंगा को बच्चे होने के संबंध में तरह-तरह से डराने और भय पैदा करना शुरू कर दिया। साथ ही वह बच्चे को मारने की भी तरह-तरह की तैयारियां करने लगी। फिर वह समय आया जब रानी कलिंगा ने बच्चे को जन्म दे दिया लेकिन ईर्ष्या से भरी राजा की अन्य रानियों ने वह बच्चा गायों के बांधने की जगह उनके पैरों के नीचे फेंक दिया था कि वह बच्चा मर जाए। लेकिन गोलू देवता बचपन से ही चमत्कारों से भरे हुए थे वह चमत्कारी बालक मरने की जगह गायों का दूध पीने लगा और खिलखिला कर हंसने लगा। गुस्साई रानियों ने तिल मिलाकर उस बालक को नमक के ढेर में डाल दिया ताकि नवजात शिशु गल कर मर जाए मगर वहां भी फिर इस बालक ने चमत्कार दिखाया और इस बार भी उसे कुछ नहीं हुआ। जब तरह तरह के यत्न करने के बाद भी रानी इस बालक को मार नहीं पाई तो थक हारकर रानियों ने इसे एक बॉक्स में रखकर नदी में प्रभावित कर दिया। इधर सातों रानियों ने आकर राजा झालूराई और कलिंगा को बताया कि महारानी कलिंगा ने सिलबट्टे को जन्म दिया है। राजा और महारानी कलिंगा इस बात को सुनकर बड़े दुखी हुए और दोनों अपनी किस्मत को कोसने लगे।
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इधर रानियों द्वारा नदी में प्रभावित बालक एक निसंतान दंपतियों को मिला जो कि मछुआरे थे। निसंतान होने के कारण उन्हें जब यह बालक मिला तो उन्होंने भगवान का आशीर्वाद समझकर बालक को रख दिया। वह बालक का बड़े लाड प्यार से पालन पोषण करते थे और उसके साथ जीवन हंसी खुशी जीवन व्यतीत करने लगे। धीरे-धीरे बालक बड़ा होने लगा बालक को घोड़ा बहुत पसंद आता था वह अक्सर अपने माता-पिता से उसके लिए घोड़ा लाने की जिद क्या करता था। दोनों मछुआरे माता-पिता गरीब होने के कारण जब असली घोड़ा नहीं खरीद पाए तो उन्होंने बेटे को एक नकली लकड़ी यानी काठ का घोड़ा खरीद कर दे दिया। बालक जब धीरे-धीरे बड़ा होने लगा तो उसे सपने में अपनी माता कलिंगा नजर आती थी जो कहती थी कि तू मेरा संतान है। यह बात बार-बार बालक को बार बार परेशान करने लगी थी तो वह अपने मछुआरे माता-पिता से अपने असली माता पिता के बारे में पूछने लगा मछुआरों ने बताया कि वह हमें नदी में मिला था उसकी असली मां बाप कौन है यह हम भी नहीं जानते। फिर समय बीतता गया और बालक बड़ा होकर अपनी काठ की घोड़े में इधर-उधर घूमने लगा क्योंकि बालक स्वभाव से ही चमत्कारी था तो बालक के पास स्थित काठ का घोड़ा भी सामान्य घोड़े की तरह चलता फिरता था।
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एक दिन वह बालक जंगल में अपने काठ के घोड़े से नदी किनारे भ्रमण कर रहा था तब वह उन सातों रानियों को बात करते सुनता है कि कैसे उन्होंने रानी कलिंगा के बच्चे को मारने का प्रयत्न किया और कैसे रानी कलिंगा को बताया कि तुमने सिलबट्टे को पैदा किया है। यह सुनकर गोलू देवता उनके नजदीक जाते हैं और बोलते हैं कि हटो मुझे अपने काठ के घोड़े को पानी पिलाना है। तो रानी खिलखिला कर हंसते हुए कहती है कि कैसा पागल बालक है भला कोई काठ का घोड़ा पानी पीता है। तब बालक कहता है कि जब “तुम्हारे राज्य में रानी सिलबट्टे को जन्म दे सकती है तो मेरा काठ का घोड़ा पानी क्यों नहीं पी सकता”। यह सुनकर रानियां घबरा गई और महल की तरफ दौड़ने लगी। फिर बालक महल की तरफ गया और राजा को सारी बात बताई और कहा कि मैं तुम्हारा पुत्र हूं और रानियों ने ना सिर्फ मां कलिंगा बल्कि तुम्हें भी धोखे में रखा। जिसके बाद राजा झालुराई ने सभी रानी को सजा देकर इस बालक को अपना पुत्र माना और यही बालक आगे चलकर ग्वाल देवता, गोलू देवता, गोरिया और गोरिल कहलाए। राजा झालूराई के मरणोपरांत गोलू देवता ने ही चंपावत का राज पाठ संभाला। और आगे चलकर समस्त चंपावत और उसके अन्य क्षेत्रों के न्याय प्रिय राजा कहलाए।
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उत्तराखंड के न्यायधीश एवं न्याय के देवता गोलू देवता (Golu Devta God Of Justice In Uttarakhand):-
राजा गोलू(Golu) अपने जनता को बहुत प्यार करते थे।वे उनकी हर समस्या को सुलझाते थे एवं उसका सटीक न्याय करते थे। वह बहुत न्याय प्रिय राजा थे वह अपनी प्रजा की समस्याओं एवं अन्याय के प्रति लड़ने के लिए जगह-जगह घूमा करते थे और जहां कहीं भी किसी को भी किसी भी प्रकार की समस्या हो उसके लिए जन अदालत लगाते थे। उनके द्वारा किया गया फैसला कभी भी किसी निर्दोष को सजा नहीं देता था वह हमेशा दोषी को ही सजा देते थे। इस प्रकार बचपन से ही न्यायमूर्ति एवं करुणा से भरे गोलू देवता बड़े होकर उत्तराखंड के न्यायाधीश एवं न्यायमूर्ति कहलाए।आज भी गोलू देवता को उत्तराखंड में अटूट श्रद्धा के साथ माना जाता है और जिस किसी को भी न्याय नहीं मिलता वह इनके दरबार की ओर रुख कर अर्जियां लिखकर अपनी समस्या बताते हैं। और गोलू देवता भी भक्तों के लिए तुरंत न्याय करते हैं। आज भी उत्तराखंड में इनके प्रसिद्ध मंदिर चंपावत का प्रसिद्ध गोलू मंदिर, विश्वविख्यात अल्मोड़ा का चितई गोलू देवता मंदिर जो कि चिट्टियां लिखने में घंटियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है एवं नैनीताल जिले में घोड़ाखाल मंदिर है। जहां भक्तों द्वारा कोर्ट कचहरी से थक हार कर एवं किसी भी प्रकार से न्याय न मिलने पर इन के दरबार में जाकर घंटी उन चिट्ठियों द्वारा न्याय मांगा जाता है और गोलू देवता के प्रति लोगों का विश्वास कितना है यह इस बात से ही स्पष्ट देखा जा सकता है कि मंदिर के प्रांगण में चढ़ाई गई घंटियों की एवं लिखे गए अर्जियों की संख्या लाखों में है।
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