युवा उत्तराखण्डियों की सशक्त भू-कानून (uttarakhand bhu kanoon), इनर लाइन परमिट, अनुच्छेद 370 और मूल निवास 1950 लागू करने की मांग को दरकिनार कर राजनीतिक दल अलाप रहे फ्री बिजली का राग..
उत्तराखण्ड की राजनीति एक बार फिर वर्ष 2000 की तरह करवट लेने लगी है। जी हां… यह वहीं समय था जब राज्य आंदोलन अपनी चरम सीमा पर था। समूचे प्रदेश में अलग राज्य का मुद्दा गरमाया हुआ था। राज्य आंदोलनकारी उत्तराखण्ड को अलग राज्य घोषित करते हुए गैरसैंण को इसकी राजधानी घोषित करने की मांग सरकार से कर रहे थे परन्तु सरकार ने दबाव में आकर उत्तराखण्ड को उत्तरांचल के नाम से अलग राज्य तो घोषित कर दिया पर राजधानी के नाम पर देहरादून नाम का झुुुुनझुना राज्य की जनता के हाथों में थमा दिया। जिसका आज तक कोई समाधान नहीं हो पाया। ठीक वैसी ही परिस्थितियां आज एक बार फिर राज्य की जनता के सम्मुख उत्पन्न होने लगी है। बीस वर्षों बाद जाग्रत हुई राज्य की युवा जनता सरकार के सम्मुख सशक्त भू-कानून (uttarakhand bhu kanoon), इनर लाइन परमिट, मूल निवास 1950 और अनुच्छेद 371 को उत्तराखण्ड में लागू करने की मांग रख रहीं हैं। सोशल मीडिया पर युवाओं द्वारा इसके समर्थन में व्यापक अभियान चलाया जा रहा है। युवा सड़कों पर उतरकर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं परन्तु इसके उलट राजनीतिक दल एक बार फिर उत्तराखण्ड की जनता के सम्मुख अब फ्री बिजली का नया राग अलाप रहे हैं।
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आगामी विधानसभा चुनावों में सत्ता हथियाने के लिए राजनीतिक दल खेल रहे फ्री बिजली का दांव, भाजपा 100 यूनिट, कांग्रेस 200 यूनिट और आम आदमी पार्टी 300 यूनिट बिजली प्रतिमाह फ्री देने को तैयार:-
विदित हो कि आम आदमी पार्टी के आगामी विधानसभा चुनाव में उतरने की घोषणा ने राज्य में फ्री बिजली के मुद्दे को बेहतर हवा दी है। सर्वप्रथम कांग्रेस के वरिष्ठ एवं जनप्रिय नेता हरीश रावत ने इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए सत्ता में आने पर जनता को प्रतिमाह 200 यूनिट फ्री बिजली देने की घोषणा की। अभी यह बात लोगों तक अच्छे से पहुंच भी नहीं पाई थी कि सत्तारूढ़ दल के ऊर्जा मंत्री हरक सिंह रावत ने प्रदेशवासियों को 100 यूनिट फ्री बिजली देने की घोषणा कर दी। राज्य की जनता को इससे भी संतोष नहीं करना पड़ा। बीते रविवार को आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रही सही कसर पूरी करते हुए सत्ता में आने पर प्रदेशवासियों को 300 यूनिट फ्री बिजली देने की न सिर्फ घोषणा की बल्कि इसको लागू करने की गारंटी भी आम जनमानस को दी। राजनेताओं के इस शिगूफे को देखकर तो यही लगता है कि फ्री बिजली के आगे जनता के शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और रोजगार की बदहाल व्यवस्था एवं पलायन जैसे अहम मुद्दे शायद कहीं गुम हो गए हों। शायद इसी कारण नेताओं को राजनीति की आंखों से ये सब दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। इसे देखते हुए यह कहना बिल्कुल भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि युवा उत्तराखण्डियों की इन सभी मांगों पर राजनीतिक दल फ्री बिजली का दांव खेल रहे हैं।
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राजधानी के नाम पर देहरादून की तरह इस बार भी राजनीतिक दलों के झांसे में आ गए उत्तराखण्डी तो शायद ही फिर कभी हो पाएगा पहाड़ का भला:-
आज पहाड़ की खस्ता हालत शायद ही किसी से छिपी हुई हों। पहाड़ में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल स्थिति में है। यहां के अस्पताल मात्र रेफरल सेंटर बनकर रह गए हैं। स्कूलों में जरूरी सुविधाओं का अभाव है। शिक्षकों की भारी कमी है। रोजगार के अभाव में पहाड़ के युवा अपनी मातृभूमि से पलायन करने को मजबूर हैं। अलग राज्य बनने के बीस वर्षों बाद भी पहाड़ के कई गांव आज भी सड़क सुविधा से वंचित हैं जिस कारण ग्रामीण कई बार मरीजों को डंडी, डोली के सहारे अस्पताल पहुंचाना पड़ता है। कुल मिलाकर सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार आदि ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं पहाड़ के लोग जिनकी अभी भी बाट जोह रहे हैं। परंतु राजनैतिक दलों को इन सब की फ्रिक कहा। इसी कारण युवाओं के शसक्त भू-कानून, इनर लाइन परमिट, अनुच्छेद 371, मूल निवास 1950 को लागू करने की मांग को दरकिनार कर राजनीतिक दल जनता को फ्री बिजली का प्रलोभन दे रहे हैं। सत्ताधारी दलों सहित विपक्ष ने यदि बीते 20 वर्षों में आम जनमानस की चिंता की होती तो शायद आज उन्हें फ्री बिजली-पानी जैसे शिगूफे छोड़ने की जरूरत नहीं पड़ती। आगे क्या होता है ये तो भविष्य के गर्भ में ही छिपा है परन्तु यदि हम राजधानी के नाम पर देहरादून की तरह इस बार भी राजनीतिक दलों के झांसे में आ गए तो शायद ही उत्तराखण्ड और उत्तराखण्डियों का भला हो पाएगा।