IAS Anuradha pal biography: संघर्ष भरी है आईएएस अधिकारी अनुराधा पाल की सफलता की कहानी, 2016 बैच की उत्तराखण्ड कैडर की आईएएस अधिकारी हैं अनुराधा पाल, बच्चों को ट्यूशन पढ़ा-पढाकर चुकाई कोचिंग की फीस, कठिन परिश्रम से हासिल किया आईआईएस का मुकाम, वर्तमान में निभा रही बागेश्वर के जिलाधिकारी की जिम्मेदारी…
“कामयाबी उन्ही को हासिल होती है जिनकें हौसलों में जान होती है
पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।”
चंद शब्दो की यह पंक्तियां राज्य की उस होनहार बेटी पर बिल्कुल सटीक बैठती है जिसने विपरीत परिस्थितियों से हार न मानकर न सिर्फ एक आईएएस अधिकारी बनने का मुकाम हासिल किया बल्कि वर्तमान में वह राज्य के एक जिले के जिलाधिकारी की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रही हैं। जी हां… बात हो रही है राज्य के बागेश्वर जिले के जिलाधिकारी की जिम्मेदारी संभाल रही आईएएस अनुराधा पाल की। बता दें कि बागेश्वर की 19वीं जिलाधिकारी की जिम्मेदारी निभा रही आईएएस अनुराधा मूल रूप से राज्य के हरिद्वार जिले के एक छोटे से गांव की रहने वाली है। आईएएस अनुराधा इससे पूर्व सीमांत पिथौरागढ़ जिले के मुख्य विकास अधिकारी की जिम्मेदारी भी कुशलता पूर्वक निभा चुकी है। उनकी कर्तव्यपरायणता एवं अपने कार्य के प्रति उनके सकारात्मक रवैए को देखते हुए ही उत्तराखंड शासन ने उन्हें प्रमोशन देते हुए बीते अक्टूबर माह में बागेश्वर जिले का नया जिलाधिकारी नियुक्त किया था।
(IAS Anuradha pal biography)
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बता दें कि 2016 बैच की उत्तराखण्ड कैडर की आईएएस अधिकारी अनुराधा पाल ने अपने सपनों का बोझ कभी भी गरीब माता-पिता पर तनिक भी नहीं डाला। गांव के एक बेहद साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाली अनुराधा के पिता दूध बेचकर परिवार का भरण पोषण करतें थे। बताते चलें कि अनुराधा ने जवाहर नवोदय विद्यालय हरिद्वार में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की थी, तत्पश्चात उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्यूनिकेशन में इंजीनियरिंग की डिग्री ली। अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के उपरांत ही अनुराधा ने महेद्रा टेक में नौकरी ज्वाइन कर ली थी इसके पश्चात उन्होंने लेक्चरर के रूप में कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी रुड़की जॉइन किया यहां उन्होंने तीन वर्ष तक अपनी सेवाएं दी।
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बता दें कि थोड़ा बहुत पैसा जमा करने के उपरांत उन्होंने नौकरी छोड़कर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने का फैसला लिया और दिल्ली आ गई। दिल्ली में रहते हुए भी उन्होंने कभी पिता पर पैसों का बोझ नहीं डाला। आईएएस की कोचिंग के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ा-पढाकर पैसे जुटाए और उनसे अपनी कोचिंग क्लास की फीस दी। वर्ष 2012 में उन्होंने पहली बार यूपीएससी की परीक्षा दी, जिसमें उन्हें सफलता भी मिली परंतु उन्हें 451वीं रैंक हासिल हुई। जिस कारण उन्हें आईआरएस अधिकारी बनने का मौका मिला। करीब दो सालों तक इस पद पर नौकरी करने के साथ ही उन्होंने आईएएस बनने की तैयारियों को जारी रखा। बार-बार असफल होने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी, अंततः अपने कठिन परिश्रम के बलबूते सिविल सेवा परीक्षा 2015 में हिंदी माध्यम की टॉपर बन गई। इस बार मेरिट सूची में उन्हें 62 वां रैंक मिली थी। बताते चलें कि हाल ही में जनता दरबार में किसानों को मुआवजा नहीं मिलने की शिकायत पर उन्होंने पीएमजीएसवाई बागेश्वर के अधिशासी अभियंता की सैलरी रोकने का भी आदेश दिया था।
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