सेना के बैंडों की मधुर धुनों के बीच बंद हुए द्वादश ज्योर्तिलिंगों में शामिल केदारनाथ धाम के कपाट
भगवान केदारनाथ के कपाट भैया दूज के पावन पर्व पर शुक्रवार को शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। मंदिर में पूजा अर्चना के बाद 8:30 बजे मुख्य द्वार बंद कर दिया गया। इससे पहले भगवान केदारनाथ की समाधि पूजा की गई जो ब्रह्म मुहूर्त से शुरू हुई। सेना के बैंडों की मधुर धुनों के बीच डोली ने गौरीकुंड को प्रस्थान किया। परंपरा के अनुसार मंदिर के मुख्य पुजारी एवं तीर्थ पुरोहितों एवं भक्तों की मौजूदगी में डोली गौरीकुंड को रवाना हुई।
बता दे की यात्रा के इतिहास में पहली बार सात लाख 30 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने बाबा केदार के दर्शन किए हैं। छह माह तक संचालित केदार यात्रा ने पहले दिन से ही रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी थी। केदारनाथ धाम में शुक्रवार तड़के पांच बजे से मंदिर के गर्भगृह में मुख्य पुजारी टी. गंगाधर लिंग ने बाबा केदार की विशेष पूजा-अर्चना शुरू की। भगवान का विशेष श्रृंगार कर भोग लगाया गया। बाद में स्वयंभू लिंग को समाधि रूप देते हुए भष्म से ढककर समाधि पूजा की गई। पहले दिन डोली रात्रि विश्राम के लिए रामपुर पहुंचेगी। शनिवार को डोली गुप्तकाशी पहुंचेगी। जबकि 11 नवंबर को भगवान केदारनाथ की चल विग्रह डोली पंचकेदार गद्दीस्थल ओमकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में विराजमान होगी जहां भगवान शिव की 6 महीने शीतकालीन पूजा अर्चना की जाएगी।
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चारधाम यात्रा के समापन पर पहुंचने के साथ ही मंदिरों के कपाट बंद होने का सिलसिला भी जारी है। गंगोत्री धाम, यमुनोत्री धाम और केदारनाथ धाम के कपाट बंद हो चुके हैं। बदरीनाथ धाम के कपाट 20 नवंबर को बंद होंगे। अब शीतकाल के छह माह तक मां की पूजा-अर्चना गौरी गांव के चंडिका मंदिर में संपन्न होगी। इस दौरान एक सौ से अधिक भक्तों मां गौरा के दर्शन किए। केदारनाथ यात्रा का अहम पड़ाव गौरीकुंड है। यहां से ही केदारनाथ धाम के लिए पैदल यात्रा शुरू होती है। यहां भी केदारनाथ मंदिर जाने वाले यात्री मां की पूजा करते हैं। इस मंदिर के दर्शन के बगैर केदारनाथ यात्रा अधूरी मानी जाती है।
