उत्तराखण्ड के लक्ष्य सेन, भारत को 7 साल बाद पदक दिलाकर जूनियर बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियनशिप के सेमीफाइनल में पहुंचे
उत्तराखण्ड के युवा हमेशा से ही प्रदेश और देश को गौरवान्वित करते आए है , बता दे की चार नवंबर से कनाडा में आयोजित प्रतियोगिता में एशियन जूनियर चैंपियन लक्ष्य सेन ने शानदार प्रदर्शन किया। भारत के युवा बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन ने बैडमिंटन विश्व जूनियर चैंपियनशिप्स में अपना पहला मेडल जीता। भारतीय शटलर को थाईलैंड के कुनलावुत वितिदसार्न के हाथों सेमीफाइनल मुकाबले में शिकस्त झेलनी पड़ी। लक्ष्य सेन ने विश्व जूनियर्स में एकमात्र मेडल जीतकर भारत के 7 साल से मेडल के लिए पड़े हुए सूखे को समाप्त कर दिया।
भारत को 7 साल बाद दिलाया मेडल : सेन ने इस साल की शुरुआत में एशियाई जूनियर चैंपियनशिप के फाइनल में थाई शटलर को मात दी थी। दोनों शटलर्स के बीच अब तक केवल एक ही मुकाबला हुआ, जिसमें सेन ने जीत दर्ज की। लक्ष्य सेन का मुकाबला क्वार्टर फाइनल में मलेशिया के चेन शीयान चिंग से हुआ। इसमें लक्ष्य ने सीधे सेटों में 21-8, 21-14 से हराकर सेमीफाइनल का टिकट प्राप्त किया। इससे पूर्व प्री-क्वार्टर फाइनल में लक्ष्य ने हांगकांग के चेन शियन चिंग को कड़े संघर्ष में 15-21, 21-17 व 21-14 से हराकर क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई। भारत की तरफ से सेन एकमात्र शटलर हैं, जिन्होंने सेमीफाइनल में कदम रखा है। सेमीफाइनल में अब लक्ष्य का मुकाबला विश्व चैंपियन थाईलैंड के कनलवात से होगा। लक्ष्य के प्रदर्शन पर उत्तराखंड बैंडमिंटन संघ के पदाधिकारियों ने उन्हें शुभकामनाएं दी हैं। सबसे खाश बात तो ये रही की भारत का कोई और शटलर इस बार मेडल नहीं जीत सका। वैसे, बैडमिंटन जूनियर विश्व चैंपियनशिप में भारत ने सात साल बाद मेडल जीता। इससे पहले 2011 में समीर वर्मा ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था। साई प्रणीत और एचएस प्रणॉय ने 2010 में ब्रॉन्ज मेडल जीता जबकि साइना नेहवाल ने 2008 में गोल्ड मेडल जीता था।
Lakshya Sen assures himself of first medal at the World Junior Championship by moving into the semishttps://t.co/997xxrcMlS
— Express Sports (@IExpressSports) November 17, 2018
पिता की देखरेख में लक्ष्य ने सीखी बैडमिंटन की बारीकियां- बता दे की लक्ष्य के पिता डीके सेन बैडमिंटन के जाने-माने कोच हैं। और वर्तमान में प्रकाश पादुकोण अकादमी से जुड़े हैं। अपने पिता की देखरेख में लक्ष्य ने बचपन से ही बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया और वह मात्र चार साल की उम्र में स्टेडियम जाने लगे। लक्ष्य सेन के पिता के साथ साथ दादा सीएल सेन भी बैडमिंटन के उस्ताद है उन्हें अल्मोड़ा में बैडमिंटन का भीष्म पितामह कहा जाता है। उन्होंने कुछ दशक पहले अल्मोड़ा में बैडमिंटन की शुरुआत की। उनकी इस उपलब्धि से आज पुरे उत्तराखण्ड के नाम का परचम पूरे विश्व में लहराया है।
