Aipan world Mamta joshi: दिव्यांग बच्चों को प्रशिक्षित कर उनके जीवन में ऐंपण के रंग उकेर रही ममता, ऐंपण कला में पारंगत कर बनाना चाहतीं हैं उन्हें आत्मनिर्भर….
Aipan world Mamta joshi
21वीं सदी के इस वैज्ञानिक युग में जहां एक ओर युवा आधुनिकता की दौड़ और सोशल मीडिया पर वायरल होने की चाहत में कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं वहीं उत्तराखण्ड के कुछ होनहार, लगनशील युवा ऐसे भी हैं जो अपनी मेहनत के बलबूते न केवल उत्तराखण्ड की परम्परागत प्राचीनतम विरासत को सहेजने का काम कर रहे हैं बल्कि इन्हें स्वरोजगार का जरिया बनाकर अपनी आर्थिकी मजबूत करने के साथ ही पहाड़ की विलुप्तप्राय लोक विरासतों को प्रचारित प्रसारित करने का भी कार्य कर रहे हैं। आज हम आपको राज्य की एक और ऐसी ही होनहार बेटी से रूबरू कराने जा रहे हैं जिन्होंने न सिर्फ कुमाऊं की विलुप्तप्राय ऐंपण कला को स्वरोजगार का जरिया बनाया है बल्कि अब वह अपनी इसी हुनरमंद ऐंपण कला से दिव्यांग बच्चों के जीवन में भी रंग भरने का काम कर रही है। जी हां… हम बात कर रहे हैं मूल रूप से राज्य के पिथौरागढ़ एवं वर्तमान में नैनीताल जिले के हल्द्वानी तहसील क्षेत्र में रहने वाली ऐंपण गर्ल ममता जोशी की। जो बीते चार वर्षों से विभिन्न वस्तुओं में पारम्परिक ऐपणों को उतार रही है। बता दें कि ऐंपण कला के जरिए अपनी आर्थिकी संवारने वाली ममता अब दिव्यांग बच्चों को भी ऐंपण कला का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का सराहनीय प्रयास कर रही है।
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देवभूमि दर्शन से खास बातचीत Mamta Joshi Aipan artist:-
देवभूमि दर्शन से खास बातचीत में ममता ने बताया कि वह मूल रूप से राज्य के पिथौरागढ़ जिले के बड़ाबे गांव की रहने वाली है तथा शादी के बाद से नैनीताल जिले के हल्द्वानी में रहकर अपने ऐंपण के कार्य को आगे बढा रही है। ममता बताती है कि हाल ही में उन्होंने हल्द्वानी लामाचोर में स्थित सेवालय नामक दिव्यांग बच्चों की संस्था में ऐंपण कला का प्रशिक्षण कैंप आयोजित किया। अपने इस प्रशिक्षण कैंप के जरिए उन्होंने दिव्यांग बच्चों को ऐंपण कला सिखाने का सराहनीय प्रयास किया है। अपनी इस पहल के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए ममता कहती हैं कि उनका प्रयास है कि ये दिव्यांग बच्चे, जो ना तो बोल सकते हैं ना ही सुन सकते हैं, उन्हें भविष्य में कभी भी ना तो लाचारी का अनुभव हो ना ही अपने जीवनयापन करने के लिए कभी किसी के आगे हाथ फैलाने पड़े। इसलिए उन्होंने इन दिव्यांग बच्चों को ऐंपण कला से प्रशिक्षित कर आत्म निर्भर बनाने का निर्णय लिया है।
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