उत्तराखंड: महिलाओं ने पहाड़ में पिरूल को बना लिया स्वरोजगार उत्पाद ऑनलाइन तक बिक रहे
Pirul self employment Uttarakhand: चंपावत की महिलाओं ने पिरूल को बनाया स्वरोजगार,उत्पाद बनाकर कर रही है ऑनलाइन बिक्री
उत्तराखंड पर्वतीय क्षेत्रों में जहां हर वर्ष पिरूल की वजह से जंगल के जंगल आग से धधक उठते हैं वही अब यही पिरूल पहाड़ में महिलाओं के रोजगार का जरिया भी बन रहा है। जी हां चंपावत में कुछ महिलाएं पिरूल से प्रदूषण मुक्त उत्पाद बना रहे हैं और उन्हें सीधे बाजार में भी उतार रही हैं। बता दे महिलाएं अब कि चीड़ की पत्तियों से निकलने वाले पिरूल से टोकरी, बैग, पर्स, टोपी, टी कोस्टर, राखी से लेकर आभूषण ( जैसे कि कर्णफूल और गले का हार) बनाकर बेच रहे हैं। इन सामानों की बढ़ती हुई मांग ग्रामीणों के लिए आमदनी का अच्छा जरिया भी बन रहा है। बताते चलें कि चंपावत जिले में अत्यधिक चीड़ के पेड़ पाए जाते हैं जहां 95 हजार हेक्टेयर में से 27292 हेक्टेयर पर चीड़ के जंगल स्थापित हैं। वही चंपावत, लोहाघाट, काली कुमाऊं, देवीधुरा, भिंगराड़ा वन क्षेत्र में मुख्य रूप से चीड़ के ही पेड़ अधिक हैं।(Pirul self employment Uttarakhand)
पाइन प्लस रूलर संस्था द्वारा लोहाघाट और खेतीखान क्षेत्र के कुछ गांवों में पिरूल को रोजगार से जोड़ा गया है। संस्था की सरयू पोहरकर का कहना हैं कि उनकी संस्था ज्वलनशील चीड़ की पत्तियों के पिरूल से पर्यावरण अनुकूल उत्पाद बना रही हैं। इसके लिए स्थानीय ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षण के साथ साथ प्रेरित भी कर रही है।जंगल से पिरूल को इकट्ठे करने से लेकर बनाने तक का काम इन्ही गांवो की 40 महिलाओ द्वारा किया जा रहा हैं। पिछले साल से पिरूल से बने इन उत्पादों की ऑनलाइन और सीधे बिक्री भी शुरू की गई है। वही डीएफओ आरसी कांडपाल का कहना हैं कि पिरूल के उत्पाद बनाने से महिलाओं की घर के काम के साथ ही नियमित आय भी हो रही है। जिससे पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिल रही है। वन विभाग की जायका योजना से भी इसमें सहायता की जारी है।