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Kotdwar history in hindi: गढ़वाल के प्रवेश द्वार कोटद्वार का इतिहास है बेहद रोचक

Kotdwar history in hindi: खोह नदी के किनारे बसे होने के कारण पहले खोहद्वार कहलाता था यह शहर, गोरखा शासन के बाद से कहलाया जाने लगा कोटद्वार, जाने इसका रोचक इतिहास…

हरी-भरी वादियों एवं घने जंगलों के बीच स्थित कोटद्वार से आज हर कोई परिचित है। लैंसडाउन के पहाड़ों की तरफ जाना हो या नजीबाबाद के शहरी इलाकों की तरफ कोटद्वार इन सबके लिए प्रमुख केंद्र स्थल है जहां से आप शहर एवं पहाड़ दोनों की तरफ बढ़ सकते हैं। कोटद्वार उत्तराखंड के पौड़ी जिले में स्थित एक छोटा सा शहर है जो कि खोह नदी के तट पर बसा हुआ है। वर्तमान में यह घनी आबादी वाला क्षेत्र और पौड़ी जिले का सबसे बड़ा शहर है जिसे गढ़वाल का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। पहाड़ी क्षेत्रों की ओर जाने वाले सभी मार्ग कोटद्वार से ही होकर कर जाते हैं जिस कारण यह गढ़वाल का प्रवेश द्वार कहलाता है। चाहे दुर्गा देवी मंदिर हो या कश्मीर का गुलमर्ग कहलाए जाने वाला चरेख बुग्याल हो आज सभी कोटद्वार शहर की शान है। आज यह घनी आबादी वाला पौड़ी जिले का सबसे बड़ा शहर है मगर आज का बना कोटद्वार शहर कभी एक छोटा सा गांव हुआ करता था। जिसका इतिहास बड़ा ही रोचक है तो चलिए एक नजर डालते हैं कोटद्वार की इतिहास पर:-
(Kotdwar history in hindi)
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कोटद्वार का पुरातन इतिहास बेहद रोचक Kotdwar History in Hindi 

पुरातन काल में कोटद्वार खोह नदी के तट पर बसा एक छोटा सा कस्बा एवं गांव हुआ करता था जिसका नाम कोटद्वार ना होके खोह द्वार था। क्योंकि उस समय यह शहर खोह नदी के तट पर बसा हुआ था। उस समय इस जगह को गढ़वाल में भाबर (घने जंगलों एवं जंगली जानवरों से भरा हुआ क्षेत्र) कहा जाता था। उस समय इस क्षेत्र पर मौर्य साम्राज्य एवं कत्यूरी राजवंश और गढ़वाल के पंवार वंश का शासन था। धीरे-धीरे कोटद्वार में गोरखाओं का शासन होने लगा। करीब 12 साल तक गोरखाओं ने इस जगह पर राज किया तब उन्होने कोटद्वार का नाम खोहद्वार से बदलकर खोह कोटद्वार कर दिया। उसके बाद अट्ठारह सौ पचास के करीब आते–आते इस जगह को खोह कोटद्वार से पुनः कोटद्वार ही कहा जाने लगा। ऐसे जगह का नाम बदलकर कोटद्वार कर दिया गया। यह जगह पहाड़ियों के काफी करीब थी जहां से होकर सभी पहाड़ी क्षेत्रों के लिए रास्ता जाता था। जिस कारण से कोटद्वार अर्थात “पहाड़ियों का द्वार” कहां जाने लगा। कोटद्वार का शाब्दिक अर्थ है पहाड़ों का द्वार। यहां से उत्तर की तरफ गढ़वाल क्षेत्र शुरू होने लग जाता है और यह गढ़वाल का अंतिम ऐसा शहर है जहां से शहर शुरू होने लगता है।
(Kotdwar history in hindi)
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उत्तराखंड एवं उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित कोटद्वार शुरू से ही गढ़वाल क्षेत्र का परिवहन एवं व्यापार केंद्र रहा है। धीरे-धीरे इस क्षेत्र पर अंग्रेजों ने अपना अधिकार जमा लिया और वह इस जगह पर व्यापार करने लगे। इतिहासकार बताते हैं कि अंग्रेजों का उत्तराखंड में सबसे अधिक व्यापार कोटद्वार में होता था। क्योंकि कोटद्वार में सभी पहाड़ी क्षेत्रों के लोग आकर सामान जैसे आटा, चावल, गुण, तेल आदि खरीदते थे। साथ ही हिमालई क्षेत्रों से लाई जाने वाली महंगी लकड़ियों का भी व्यापार इस क्षेत्र में किया जाता था। इस चीज को ध्यान में रखते हुए अंग्रेजों ने यहां पर रेलवे स्टेशन का निर्माण शुरू किया जिसके लिए शाहजहांपुर से कोटद्वार तक रेलवे लाइन बिछाई गई और 1890 में कोटद्वार में रेलवे स्टेशन का निर्माण हुआ जो कि देश का सबसे पुराना रेलवे स्टेशन है। 1897 में रेलवे लाइन बन जाने के बाद यह क्षेत्र खोह नदी के पश्चिमी तट की ओर विकसित होने लगा। इतिहासकार बताते हैं कि कोटद्वार पूर्व गढ़वाल क्षेत्र का प्रमुख परिवहन एवं व्यापार केंद्र रहा है और देहरादून, हल्द्वानी से ज्यादा अंग्रेजों का कोटद्वार में व्यापार होता था। शुरू में कोटद्वार में केवल व्यापार की दृष्टि से लकड़ी के परिवहन के लिए ट्रेनें चला करती थी। लेकिन बाद में इस रेलवे स्टेशन में पैसेंजर ट्रेनें भी चलने लग लगी।
(Kotdwar history in hindi)
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कोटद्वार में रेलवे स्टेशन का इतिहास (kotdwar railway station)

सर्वप्रथम 1901 में इस रेलवे स्टेशन पर पैसेंजर ट्रेन चली थी।उसके बाद 1909 में कोटद्वार को प्रथम नगर का दर्जा दे दिया गया था और उसी साल हुए जनगणना के अनुसार उस समय कोटद्वार की जनसंख्या 1029 के आसपास थी। 1940 -41 में कोटद्वार किसी छोटे गांव के समान हुआ करता था। वैसे तो इस नगर का विकास 1890 में रेल के आगमन से ही शुरू होने लग गया था। मगर इस शहर का वास्तविक विकास 1950 के दशक में जब यहां नगरपालिका का निर्माण हुआ तब होने लगा और 1951 में कोटद्वार नगर पालिका की स्थापना हुई। 1949 के आसपास इस क्षेत्र को नोटिफाई एरिया घोषित कर दिया गया। इस प्रकार धीरे-धीरे विकसित होता यह क्षेत्र आज का घनी आबादी एवं जनसंख्या वाला पौड़ी जिले का सबसे बड़ा शहर के साथ-साथ गढ़वाल का प्रवेश द्वार वर्तमान कोटद्वार बना।
(Kotdwar history in hindi)

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