लाॅकडाउन की मार, उत्तराखण्ड के युवा गुजरात से 2 लाख में गाड़ी बुक कर के पहुचें अपने पहाड़
लाॅकडाउन के कारण 45 दिनों तक होटल के कमरों में बंद होने को मजबूर हुए प्रवासी उत्तराखण्डी (uttarakhand migrant), गुजरात से बस बुक कर पहुंचे हल्द्वानी..
बीते डेढ़ माह से भी अधिक समय से जारी देशव्यापी लाॅकडाउन से हर कोई परेशान हैं। परंतु लाॅकडाउन की सबसे ज्यादा मार दैनिक मजदूरी करने वाले लोगों के साथ ही होटलों एवं दुकानों पर नौकरी करने वालों के साथ ही खुद छोटा-मोटा काम कर जीवन-यापन करने वाले लोगों पर पड़ी है। बता दें कि राज्य के अधिकांश प्रवासी (uttarakhand migrant) विभिन्न राज्यों में या तो दैनिक वेतन पर मजदूरी करते हैं या फिर होटलियर है। लाॅकडाउन होने के बाद जहां इनकी नौकरी चली गई वहीं ये सभी किराए के छोटे-छोटे कमरों में बिना सामाजिक दूरी के रहने को मजबूर भी हुए। आज हम आपको राज्य के ऐसे ही कुछ प्रवासियों की दुखद दास्तान बताने जा रहे हैं, जो 45 दिनों तक कमरों में कैद रहने के बाद 2 लाख में अपने साथियों के साथ निजी बस बुक कर गुुुजरात से उत्तराखण्ड पहुंचे। जी हां.. हम बात कर रहे हैं राज्य के पिथौरागढ़ जिले के उन 14 युवाओं की, जिनकी दुखद दास्तां सुनकर आपकी आंखें भी नम हो जाएंगी।
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45 दिनों से मुरझाए चेहरे हल्द्वानी पहुंचने पर खिले, वहां से प्रशासन की मदद से निशुल्क पहुंचे अपने घर:-
प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य के पिथौरागढ़ जिले के नाचनी क्षेत्र के रहने वाले 14 युवा गुजरात के विभिन्न होटलों में नौकरी करते थे। इन युवाओं में खुशाल सिंह, त्रिलोक सिंह, गोपाल बिष्ट, दीपक, लाल सिंह आदि शामिल हैं। गुजरात से लौटने के बाद नाचनी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले लोदियाबगढ़ के स्कूलों में क्वारंटीन किए गए इन युवाओं का कहना है कि लॉकडाउन के कारण नौकरी चलें गई और वे गुजरात में 45 दिन तक होटल के कमरों में कैद होकर रहना पड़ा। इतना ही नहीं इन 45 दिनों में से कई दिन तो उनके खाने की व्यवस्था भी नहीं हो पाई। लॉकडाउन-3 में कुछ छूट मिलने के बाद वे कुमांऊ के अन्य 39 लोगों के साथ 2 लाख रुपये में बस बुक कर हल्द्वानी पहुंचे। इस दौरान सामाजिक दूरी तो कहीं नजर नहीं आ रही थी परंतु सबके मन में एक ही धुन सवार थी कि बस कैसे भी अब घर पहुंचना है। खुशाल सिंह कहते हैं कि हल्द्वानी पहुंचने के बाद डेढ़ महीने में पहली बार उनके चेहरे खिले वरना लॉकडाउन के दौरान गुजरात में तो उनकी जिंदगी नरक से भी बदतर हो गई थी। हल्द्वानी से वे सभी प्रशासन के द्वारा उपलब्ध कराई गई सरकारी बसों से घर पहुंचे।
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