uttarakhand: डोली में सात किमी दूर स्वास्थ्य केंद्र ले जा रहे थे महिला को लेकर खेत में हुआ सुरक्षित प्रसव (delivery of baby)..
उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के बाद बीते 19 वर्षों में राज्य के पर्वतीय जिलों का कितना विकास हुआ है इसका जीता जागता उदाहरण एक बार फिर हमारे सामने आया है जिसमें ग्रामीण एक गर्भवती महिला को डोली पर ले जाते हैं और रास्ते में खेतों के बीचों-बीच वह एक बच्चे को जन्म(delivery of baby) देती है। राज्य के पिथौरागढ़ जिले की यह भयावह घटना जहां बीते 19 वर्षों में सत्ता पर आसीन नेताओं के तमाम वादों को खोखला साबित करती है। वहीं हम सब के हृदय को भी झकझोरती हुई नजर आती है। जहां आज सरकारें अधिकांश गांवों में सड़क होने का दावा करती है वहीं राज्य के विभिन्न हिस्सों से समय-समय पर प्राप्त होने वाली ऐसी भयावह तस्वीरें उनके दावों को आईना दिखाते हुए नजर आती है। रिवर्स माइग्रेशन का कार्यक्रम चलाने वाली एवं बात-बात पर पलायन रोकने की बात करने वाली सरकारों को अब यह सोचना चाहिए कि क्या ये चीजें पलायन का सबसे बड़ा कारण नहीं है? सबसे खास बात तो यह है कि जिस गांव से प्रसव (delivery of baby) की यह भयावह घटना सामने आ रही है वह एक स्वतंत्रता सेनानी का गांव है।
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प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य के पिथौरागढ़ जिले के बेरीनाग तहसील के सिमायल गांव में रहने वाली कमला देवी पत्नी दीवान कुमार को बीते बृहस्पतिवार को प्रसव पीड़ा हुई। इस पर परिजन और आशा वर्कर दीपा देवी उसे डोली में सात किमी दूर स्वास्थ्य केंद्र ले जाने लगे लेकिन तभी बीच रास्ते में थारा गांव के पास कमला की हालत ज्यादा खराब होने लगी और उसका दर्द असहनीय हो गया। इस पर आशा वर्कर दीपा देवी ने खेतों में काम कर रही बुजुर्ग महिलाओं को बुलाया और उनके सहयोग से कमला का खेत में ही सुरक्षित प्रसव कराया गया। वो तो भगवान का शुक्र है कि प्रसव सुरक्षित हुआ और जच्चा-बच्चा दोनों पूरी तरह सही सलामत हैं वरना सरकारों के द्वारा किए गए इस तरह के विकास से तो किसी भी मरीज की जान शामत पर आ सकती है। उक्त भयाभह घटना को देखकर गांव वालों आक्रोशित नजर आए और उनका रोष जायज भी था। बताया गया है कि सिमायल गांव के लिए सड़क स्वीकृत तो हुई है परन्तु इसमें वन विभाग का कुछ अड़गा है। आक्रोशित ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र सड़क की स्वीकृति नहीं मिली तो उन्हें आंदोलन करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
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