Syalde Almora Car Accident: हादसे को याद कर भर आई 11 वर्षीय अर्णव की आंखें, रूंधे हुए गले से बयां की दास्तां…
Syalde Almora Car Accident
गौरतलब हो की बीते मंगलवार को अल्मोड़ा जिले के देघाट क्षेत्र में एक भीषण सड़क हादसा हो गया था जिसमें एक ही परिवार के तीन सदस्यों की मौत हो गई थी जबकि एक बच्चा इस दर्दनाक हादसे में घायल हो गया।मुनेंद्र सिंह सैनी का परिवार रुड़की के साउथ सिविल लाइन में पिछले करीब 13 सालों से रहता है मुनेंद्र सिंह के चचेरे भाई दिनकर सैनी ने बताया कि मुनेंद्र यहां अपनी पत्नी समेत अपने बेटे, बेटी के अलावा अपनी माँ उषा और पिता ईश्वर चंद्र सैनी के साथ रहते थे। बीते सोमवार तड़के मुनेंद्र सिंह सैनी रूड़की से अपने 11 वर्षीय बेटे अर्णव तथा 9 वर्षीय बेटी अदिति समेत अपनी पत्नी शशि सैनी के साथ रुड़की से अल्मोड़ा के लिए रवाना हुए थे। दरअसल उनके दोनों बच्चे रुड़की के एक निजी संस्थान में पढ़ रहे थे जिसके चलते उनकी पत्नी को अल्मोड़ा के देघाट मे नौकरी की वजह से तमाम तरह की दिक्कतें हो रही थी ऐसे में उन्होंने अल्मोड़ा में ही अपने बच्चों को पढ़ाने की प्लानिंग की थी जिस वजह से बच्चों की छुट्टी चलने के दौरान दोनों को लेकर अपने साथ जा रहे थे ताकि वहां के स्कूलों से भी बच्चों को रूबरू करवाया जा सके लेकिन जैसे ही उनकी कार अल्मोड़ा जिले के स्याल्दे विकासखंड में भिकियासैंण-देघाट सड़क पर चौनिया बैंड के पास पहुंची तो अनियंत्रित होकर सीधे डेढ़ सौ मीटर गहरी खाई में जा गिरी
Almora road accident news
जिसमें मुनेंद्र सिंह और उनकी पत्नि शशि समेत उनकी 9 वर्षीय बेटी अदिति की मौत कार में सवार 11 वर्षीय बच्चे अर्णव के सामने हो गई। इस भयावह घटना ने मासूम अर्णव को झकोर कर रख दिया।गर्मियों की छुट्टियां बिताने मां के साथ देघाट आ रहे अर्णव को शायद यह एहसास नहीं होगा कि आगे जिंदगी भर के लिए गम उसका इंतजार कर रहे है। कुछ देर पहले वह अपनी छोटी बहन के साथ शरारत करते हुए अपने माता पिता से डांट खा रहा था लेकिन इसी बीच अचानक जब खाई मे उसकी बेहोशी टूटी तो उसकी दुनिया पूरी तरह से बिखर चुकी थी। उसने बहन को उठाने की कोशिश की जब वह नहीं उठी तो उसने मां को झकझोरा, लेकिन मां ने भी आज पलटकर लाडले की बात का जवाब नहीं दिया । इधर शाम अब काली रात का रूप लेती जा रही थी। हादसे मे बचें अर्णव को दूर-दूर तक कोई सहारा नजर नहीं आया तो वह चिल्लाया, लेकिन उसकी आवाज खाई में जंगल में गुम हो गई। अर्णव कहता है इस बीच रात के एक पहर फिर उसके जीवन में उम्मीद की एक किरण जगी जब उसके पापा धीरे से कराहे। वह दौड़कर पापा के पास पहुंचा उन्हें उठाने में मदद की। इसके बाद पापा ने कलेजे के टुकड़े को गले से लगा लिया तो अर्णव को लगा अब पापा सब ठीक कर देंगे। उसने पापा के सिर पर लगा खून पोंछा और उन्हें सहारा देकर अपनी माँ और छोटी बहन के पास लेकर गया। पापा ने कुछ देर शशि को फिर अपनी बेटी को निहारा , लेकिन दोनों पर कोई असर नहीं हुआ तो फफक कर रो पड़े। अब अर्णव को एहसास हुआ कि मां और बहन उससे कभी बात नहीं करेंगे।
roorkee Munendra Saini Accident अर्णव ने बताया कि अंधेरे में ये जद्दोजहद चलती रही और कुछ देर बाद पापा भी शांत हो गए। इसके कुछ देर बात जब उजाला हुआ तो उसने फिर पापा को उठाने की कोशिश की, लेकिन अब उसे एहसास हो गया था कि पापा भी नहीं रहे। इसके बाद वह गांव की तरफ चला , बीजौली गांव में जिस शख्स को उसने पहली बार यह कहानी सुनाई उसे बात पर विश्वास नहीं हुआ लेकिन बच्चे का हुलिया देख वह समझ गया इसके बाद ग्रामीण मौके पर पहुंचे और पुलिस को सूचना दी गई। मुनेंद्र सैनी की मां उषा सैनी करीब 62 साल की है जो कि रुड़की के साउथ सिविल लाइन में रहती है इस हादसे के बारे में बीते मंगलवार को सभी परिजनों और रिश्तेदारों को पता चल गया जिसके चलते उनके घर पर बहुत सारे लोगों का आना-जाना लगा रहा सभी उषा को यह दिलासा दे रहे थे कि मुनेंद्र को मामूली चोट लगने की सूचना मिली तो वह कुशलक्षेम के लिए के लिए आए है और मुनेंद्र की मां को दिलासा दे रहे थे की सब ठीक हो जाएगा क्योंकि उन्हें पता था की जैसे ही इस दु:खद घटना की खबर उन्हें लगेगी वह सदमे मे चली जाएगी लेकिन माँ को कहाँ पता था की उनका बेटा ,बहू और नातिन अब इस दुनिया को छोड़ चुके है।दुर्घटना का शिकार हुई स्टाफ नर्स शशि सैनी 3 माह पहले ही गई अल्मोड़ा के देघाट सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात हुई थी और कुछ दिन पूर्व ही वह बच्चों से मिलने घर गई थी। गर्मी की छुट्टियां थी तो बच्चों ने देघाट घूमने की जिद्द की जिसके चलते बच्चों की जिद के आगे माँ कमजोर पड़ गई और अपने पति के साथ देघाट की ओर निकल गई लेकिन देघाट पहुंचने से पहले ही हादसा हो गया जिसमें शशि समेत उनके पति और बेटी की जान चली गई।
सुनील चंद्र खर्कवाल पिछले 8 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे राजनीति और खेल जगत से जुड़ी रिपोर्टिंग के साथ-साथ उत्तराखंड की लोक संस्कृति व परंपराओं पर लेखन करते हैं। उनकी लेखनी में क्षेत्रीय सरोकारों की गूंज और समसामयिक मुद्दों की गहराई देखने को मिलती है, जो पाठकों को विषय से जोड़ती है।